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रासायनिक खादों के खतरे और जैविक विकल्प

मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में किसानों के सामने खाद की किल्लत एक गंभीर समस्या बन गई है

रासायनिक खादों के खतरे और जैविक विकल्प
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- पवन नागर

इस योजना का न केवल किसानों पर सकारात्मक असर होगा, बल्कि पर्यावरण और हमारे जीवन स्तर पर भी इसके फायदे होंगे। अगर हम अब भी रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते रहेंगे, तो हमारा भविष्य खतरे में पड़ सकता है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए हमें सरकार और किसान दोनों की ओर से कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।

मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में किसानों के सामने खाद की किल्लत एक गंभीर समस्या बन गई है। हर साल जब रबी सीजन की शुरुआत होती है, तब किसान अपनी फसलों के लिए जरूरी खादों की तलाश में परेशान हो जाते हैं। अक्टूबर और नवंबर महीने के समाचार-पत्रों के अनुसार, 'डीएपी' (डाई अमोनियम फॉस्फेट) खाद की भारी कमी और उसकी कालाबाजारी के कारण किसानों ने जगह-जगह चक्काजाम तक कर दिए हैं। कई जगहों पर लंबी-लंबी कतारें लगती हैं और किसान इस खाद को पाने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं, लेकिन यह समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सरकार और किसानों के बीच संवाद की कमी और इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदमों की नितांत आवश्यकता है।

कृषि में रासायनिक खादों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। विशेष रूप से 'डीएपी' खाद, जिसका उपयोग बीजों के साथ मिलाकर किया जाता है, फसलों की जड़ें मजबूत करता है और पौधों को बढ़ने में मदद करता है। गेहूं, चना, मसूर जैसी रबी फसलों के लिए यह खाद अत्यधिक आवश्यक है। इस खाद की कमी के कारण किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है और अगर समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तो यह खाद संकट और भी विकराल रूप ले सकता है।

हालांकि, सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, फिर भी पिछले 10 वर्षों में इस दिशा में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया है। किसान अभी भी रासायनिक खादों के इस्तेमाल पर निर्भर हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि हमारे देश की मिट्टी दिन-ब-दिन उर्वरता खोती जा रही है। रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की जलधारण क्षमता में कमी आ रही है, जिससे भूमिगत जल-स्तर में भारी गिरावट आई है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट के कारण यह स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है।

कृषि में रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग, विशेष रूप से 'यूरिया' और 'डीएपी' न केवल किसानों के लिए आर्थिक संकट पैदा करता है, बल्कि यह देश की कृषि नीति और पर्यावरण के लिए भी खतरा है। यह खाद आयात की जाती है और उस पर भारी सब्सिडी दी जाती है, जिससे सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। यदि रासायनिक खादों के उपयोग को नियंत्रित किया जाए, तो सरकार का भारी खर्च बच सकता है, साथ ही किसानों को भी इन खादों की कालाबाजारी से मुक्ति मिल सकती है।

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार को एक ठोस योजना बनानी चाहिए, जिसके तहत हर किसान से कम-से-कम एक एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित किया जाए। यह योजना न केवल खाद की किल्लत को खत्म करने में मदद करेगी, बल्कि किसानों को शुद्ध और पोषणयुक्त खाद्यान्न भी उपलब्ध कराएगी, जिससे उनकी सेहत में सुधार होगा और उन्हें रासायनिक खादों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

आइए, अब एक उदाहरण से समझते हैं कि प्राकृतिक खेती से किस तरह से रासायनिक खादों की खपत कम की जा सकती है। मान लीजिए कि देशभर में 14 करोड़ किसान हैं और प्रत्येक किसान अपने एक एकड़ खेत में 150 किलोग्राम 'डीएपी' खाद का इस्तेमाल करता है। यदि एक किलोग्राम 'डीएपी' की कीमत 27 रुपये है, तो एक किसान को 150 किलोग्राम 'डीएपी' खरीदने के लिए 4050 रुपये खर्च करने होंगे। यदि हम पूरे देश की 14 करोड़ एकड़ भूमि पर इसका हिसाब करें, तो कुल खर्च 56,700 करोड़ रुपये खर्च होगा।

इसी तरह, 'यूरिया' खाद का भी व्यापक उपयोग हो रहा है। यदि प्रत्येक किसान 300 किलो 'यूरिया' प्रति एकड़ इस्तेमाल करता है, तो उस पर भारी खर्च हो रहा है। यदि इसे जोड़ दें तो कुल मिलाकर 79,212 करोड़ रुपये का खर्च रासायनिक खादों पर हो रहा है।

इस समस्या का समाधान एक साधारण योजना के माध्यम से किया जा सकता है। अगर किसान अपने एक एकड़ खेत में प्राकृतिक खेती करने के लिए राजी हो जाते हैं, तो न केवल खाद पर होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा में भी योगदान मिलेगा। इस प्रकार सरकार को किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें इस दिशा में सहायता देने के लिए ठोस योजना बनानी चाहिए।

प्राकृतिक खेती के लिए सरकार को एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू करना चाहिए, जिसमें कुछ चयनित जिलों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया जाए। इसके अलावा किसानों को इस योजना में भाग लेने के लिए वित्तीय सहायता भी दी जा सकती है। प्राकृतिक खेती से जुड़े खर्चों की भरपाई के लिए सरकार किसानों को सम्मान निधि या अन्य वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है, ताकि वे इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित हो सकें।

इस योजना का न केवल किसानों पर सकारात्मक असर होगा, बल्कि पर्यावरण और हमारे जीवन स्तर पर भी इसके फायदे होंगे। अगर हम अब भी रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते रहेंगे, तो हमारा भविष्य खतरे में पड़ सकता है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए हमें सरकार और किसान दोनों की ओर से कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।

अगर देशभर में कम-से-कम एक एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं, तो यह कृषि क्षेत्र के लिए एक नया मोड़ साबित हो सकता है। इसके अलावा, जब किसान इस बदलाव को समझेंगे और इसके लाभ को देखेंगे, तो वे खुद भी रासायनिक खादों का प्रयोग कम करने के लिए प्रेरित होंगे।
इस तरह, अगर सरकार और किसान मिलकर प्राकृतिक खेती की दिशा में कदम बढ़ाते हैं, तो न केवल खाद की किल्लत खत्म होगी, बल्कि देश का पर्यावरण भी संरक्षित रहेगा और हम एक स्वस्थ और समृद्ध समाज की ओर कदम बढ़ा सकेंगे।

किसानों के सामने खाद की किल्लत, रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल और उसके दुष्परिणामों को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ें। इस दिशा में ठोस कदम उठाने से न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी, बल्कि पर्यावरण की स्थिति भी सुधरेगी। सरकार और किसानों के साथ मिलकर अगर यह कदम उठाया जाए तो हम खाद संकट से निकल सकते हैं और एक स्वस्थ, खुशहाल और आत्मनिर्भर राष्ट्र की ओर बढ़ सकते हैं।
(लेखक कृषि परिवर्तन 'त्रैमासिक पत्रिका' के संपादक हैं। )


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