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नये सिरे से संविधान की लड़ाई छेड़ती कांग्रेस

26 व 27 दिसम्बर, 2024 को कर्नाटक के बेलगावी में कांग्रेस द्वारा आयोजित अधिवेशन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के कारण पहले दिन के बाद रद्द कर दिया गया था

नये सिरे से संविधान की लड़ाई छेड़ती कांग्रेस
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26 व 27 दिसम्बर, 2024 को कर्नाटक के बेलगावी में कांग्रेस द्वारा आयोजित अधिवेशन पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के कारण पहले दिन के बाद रद्द कर दिया गया था। लेकिन मंगलवार 21 जनवरी को कांग्रेस की ओर से उसी स्थल पर महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण कर यह संदेश दिया गया है कि 'जय बापू जय भीम जय संविधान' का जो नारा पार्टी ने दिया है, उसे वह कतई छोड़ने नहीं जा रही है बल्कि पहले के मुताबिक कहीं अधिक जोर-शोर से वह उठाएगी। यह अधिवेशन वहीं आयोजित किया गया था जहां इन्हीं तारीखों पर महात्मा गांधी ने कांग्रेस की अध्यक्षता की थी और वह उनके जीवन काल का एकमेव अधिवेशन था जिसमें उन्होंने यह महत्वपूर्ण दायित्व सम्हाला था। वह स्थल अब 'सुवर्ण सौध' कहलाता है। उन्हीं क्षणों की याद में ठीक 100 वर्षों के बाद कर्नाटक कांग्रेस ने यह अधिवेशन आयोजित किया था ताकि उस ऐतिहासिक विरासत से सब अवगत हो सकें तथा गांधीवादी मूल्यों के लिये संगठन की लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सके।

हाल के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी द्वारा जिस प्रकार से संविधान को कमजोर किया गया है और उसकी ओर से संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर को अपमानित करने का काम हो रहा है, उसके खिलाफ कांग्रेस की लड़ाई की शुरुआत बेलगावी से शुरू की गयी । कहा जा सकता है कि वह लड़ाई कांग्रेस न भूली है और न ही वह उसे छोड़ रही है। इसके विपरीत अब यह लड़ाई गांधी के साथ अंबेडकर तथा संविधान को बचाने की ही लड़ाई बन गयी है। इस लड़ाई का एक मोर्चा इसी माह की 27 तारीख को अंबेडकर के जन्म स्थान महू (मध्यप्रदेश) में खोला जायेगा जहां पार्टी एक बड़ा अधिवेशन करने जा रही है। इसमें कांग्रेस के तमाम बड़े नेता शामिल होने जा रहे हैं जहां से 'जय बापू जय भीम जय संविधान' आंदोलन की विधिवत शुरुआत होगी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल व प्रियंका गांधी के अलावा कांग्रेस कार्यसमिति (वर्किंग कमेटी) के सभी सदस्य, कांग्रेस शासित राज्यों के सारे मुख्यमंत्री तथा पूर्व मुख्यमंत्री आदि इसमें शिरकत करने जा रहे हैं। एक तरह से इसे ही बेलगावी से छेड़े गये अभियान की नयी शुरुआत मानी जा रही है क्योंकि उसके साथ ही कांग्रेस के लोग संविधान बचाने का नारा लेकर देश भर में जायेंगे। देश के सभी जिलों में कांग्रेस कार्यकर्ता प्रभात फेरियां निकालेंगे और संविधान के महत्व से जनता को अवगत करायेंगे।

बेलगावी तथा महू से उठने वाले स्वरों से भाजपा की बदहवासी अभी से दिखने लगी है क्योंकि पार्टी 24 या 25 जनवरी को मध्यप्रदेश में ही सम्मेलन कर कांग्रेस को जवाब देना चाहती है लेकिन अब तक उसकी न तो रूपरेखा बन पाई है और न ही उसका संदेश स्पष्ट हो पाया है। लोकसभा के पिछले सत्र में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा जिस प्रकार से अंबेडकर का अपमान किया गया था, उससे देश भर में शाह के खिलाफ आक्रोश है। याद हो कि राज्य सभा में संविधान पर चर्चा के दौरान अमित शाह ने कहा था कि, 'आजकल अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर कहना फैशन हो गया है।' उन्होंने विपक्षी सदस्यों पर तंज कसा था कि 'यदि इतनी बार भगवान का नाम लिया जाये तो सात जन्मों का स्वर्ग मिल सकता है।' इसका कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने जमकर विरोध किया था तथा शाह से माफी और इस्तीफा देने की मांग की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मांग की गयी थी कि वे शाह को मंत्रिमंडल से तत्काल बर्खास्त करें। इसे लेकर देश भर में कई जगह पर प्रदर्शन हुए थे।

संविधान को बचाने का मुद्दा अब कांग्रेस का प्रमुख मिशन बन चुका है जिसे लेकर वह भाजपा पर हमलावर है। लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा का लक्ष्य खुद के बलबूते 370 तथा अपने गठबन्धन (एनडीए) को मिलाकर 400 सीटें पाने का था। भाजपा के कई बड़े नेताओं तथा उम्मीदवारों ने साफ कहा था कि मोदी को इतने सांसद इसलिय़े चाहिये ताकि संविधान को बदला जा सके। इस मामले ने नतीजों को प्रभावित किया। ऐसा माना जाता है कि संविधान के जरिये लाभान्वित होकर विकास की मुख्य धारा में आने वाले कई वर्गों ने भाजपा विरोधी प्रत्याशियों को वोट नहीं दिया और आज लोकसभा में भाजपा-एनडीए की जो घटी हुई सीटें दिख रही हैं वह सम्भवत: इसी के कारण है। हालांकि यह भी आरोप है कि यह सदस्य संख्या और भी कम होती, यदि तकरीबन 80 सीटों पर ईवीएम का कथित खेला नहीं होता। मोदी सरकार आज दो क्षेत्रीय पार्टियों (आंध्रप्रदेश की तेलुगु देसम पार्टी तथा बिहार की जनता दल यूनाइटेड) पर टिकी है जो उसके इसी संविधान विरोधी रवैये का परिणाम है।

कांग्रेस जानती है कि मोदी के कमजोर हो जाने के कारण संविधान के बदले जाने का कार्यक्रम केवल कुछ समय के लिये बढ़ा है। उस पर से खतरा पूरी तरह से टला नहीं है। अनेक ऐसे व्यक्तियों या संगठनों से संविधान विरोधी बातें उठती रहती हैं जिनका सम्बन्ध भाजपा, उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अथवा किसी अनुषांगिक संगठन से निकलता है। यह इस बात की ज़रूरत दर्शाता है कि संविधान के समर्थन में एक लम्बी लड़ाई बनती है ताकि देश ने नागरिक अधिकारों के साथ जिन समानता, धर्मनिरपेक्षता, बन्धुत्व, सामाजिक न्याय आदि के मूल्यों को आत्मसात किया है वे पूरी तरह महफूज़ और अक्षुण्ण बने रहें।


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