अंबेडकर-विमर्श को आगे बढ़ाये कांग्रेस
सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी 20 दिसम्बर को खत्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दो दिन 'संविधान की 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा' के नाम से आयोजित विशेष चर्चा को अपने लिये कांग्रेस की आलोचना का सुअवसर मान रही थी

सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी 20 दिसम्बर को खत्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दो दिन 'संविधान की 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा' के नाम से आयोजित विशेष चर्चा को अपने लिये कांग्रेस की आलोचना का सुअवसर मान रही थी, लेकिन उल्टे वह केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर के लिये दिये गये अपमानजनक वक्तव्य से बुरी तरह से फंस गयी है। देश भर में शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूरी भाजपा की आलोचना हो रही है। इतना ही नहीं, भाजपा के वे सारे सहयोगी दल जो सत्ता के भागीदार बने बैठे हैं, वे भी खुद को इस विवाद में असहाय महसूस कर रहे हैं।
गृह मंत्री के बयान ने देश भर में उन लोगों को उद्वेलित कर दिया है जो एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज में विश्वास रखते हैं और मानते हैं कि संविधान ने इन मूल्यों पर आधारित देश बनाने का काम किया है। इस मुद्दे को लेकर विपक्षी गठबन्धन इंडिया ने कांग्रेस के नेतृत्व में 19-20 दिसम्बर को संसद परिसर में प्रदर्शन किया था जिसे भाजपा सांसदों ने हिंसक विवाद में बदल दिया। इसमें हाथा-पाई और धक्का-मुक्की हुई थी। भाजपा के दो सांसद कथित तौर पर घायल हो गये और इस आधार पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। इसके खिलाफ़ देश भर में कांग्रेसी कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आये थे। शाह से माफी व इस्तीफे की मांग के कारण हुए हंगामे के बाद संसद के दोनों सदनों को शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दिया गया। हालांकि ऐसा करने से यह विवाद थमने से रहा क्योंकि कांग्रेस ने इसे अब 'संविधान बनाम मनुस्मृति' का विमर्श बना दिया है। पार्टी 24 दिसम्बर को देशव्यापी प्रदर्शन करेगी तथा 26 जनवरी तक शाह के विरूद्ध अभियान चलायेगी।
संविधान की लड़ाई जहां एक ओर देश के कोने-कोने तक फैल गई है, उसे कांग्रेस के आसन्न अधिवेशन में नयी धार मिल सकती है। कर्नाटक के बेलगावी (पहले बेलगांव या बेलगाम) में कांग्रेस का अधिवेशन 26 व 27 दिसम्बर को पहले से तय था। यह विशेष सम्मेलन ठीक 100 साल पहले इसी शहर में हुए कांग्रेस अधिवेशन की याद में किया जायेगा जिसकी अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी। उल्लेखनीय है कि अपने जीवन काल में गांधीजी ने केवल इसी अधिवेशन की सदारत की थी। कांग्रेस तथा देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इस बैठक का विशेष महत्व रहा है जिसमें अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिये आजादी का संघर्ष तेज़ करने सहित अनेक महत्वपूर्ण फैसले लिये गये थे। वैसे तो बेलगावी सम्मेलन की तैयारियां लम्बे समय से चल रही थीं और देश की जो राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां हैं, उन पर विचार-विमर्श करने के साथ भाजपा-एनडीए की निरंकुश कार्यप्रणाली के खिलाफ लड़ाई की रूपरेखा बनाना भी पहले से तय था, परन्तु माना जा रहा है कि इस अधिवेशन में संसद के भीतर शाह द्वारा अंबेडकर के किये अपमान तथा राहुल पर हुई एफआईआर के कारण अंबेडकर-विमर्श को नयी धार मिलेगी। इसके साथ ही पार्टी अपने स्तर पर तथा इंडिया के साथ तालमेल बनाकर देशव्यापी आंदोलन के कार्यक्रम बना सकती है। पार्टी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि अब यह मुद्दा सर्वप्रमुख बन गया है और निश्चित ही इस पर गहन विचार होगा।
कांग्रेस ने वैसे भी संविधान की रक्षा तथा आरक्षण को पिछले करीब ढाई वर्षों से प्रमुख मुद्दा बनाया हुआ है। राहुल ने सितम्बर 2022 से जनवरी 2023 तक कन्याकुमारी से 'भारत जोड़ो यात्रा' निकाली थी, तभी से सामाजिक न्याय का मुद्दा उस सफर का एक अहम हिस्सा बन गया था- बावजूद इसके कि उसका उद्देश्य भाजपा द्वारा फैलाई गई नफ़रत को मिटाकर मोहब्बत का वातावरण तैयार करना था। यह विमर्श इतना आगे बढ़ा कि फिर राहुल ने इसी वर्ष जनवरी से मार्च तक जो दूसरी यात्रा की, तो उसमें 'न्याय' शब्द जुड़ गया- 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा'। उसके बाद ही देशवासियों की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की लड़ाई मोदी सरकार की तानाशाही व दमन के बावजूद तेज हुई थी। कहना न होगा कि इसी के चलते विपक्षी दल भी एकजुट हुए थे जिसने लोकसभा चुनाव के निर्णयों के जरिये भाजपा की मनमानी पर ब्रेक लगा दिये हैं।
चुनाव के पहले 400 से ज्यादा सीटें लाने के मंसूबे जब परिणामों से नाकाम हो गये तो मोदी-शाह खुद को संविधान व लोकतंत्र के सबसे बड़ी रक्षक साबित करने पर तुल गये हैं। बीच चुनाव प्रचार में ही मोदी, शाह समेत सभी प्रमुख नेताओं के सुर बदल गये थे। मोदी ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि 'उनके जीवित रहते हुए कोई भी आरक्षण को हाथ नहीं लगा सकता'। पार्टी ने उल्टे यह कहना शुरू किया कि कांग्रेस ही अंबेडकर, संविधान व लोकतंत्र की दुश्मन है। हालांकि उनके इस बयान पर कोई मुश्किल से ही विश्वास करेगा- उनके अपने अनुयायियों व समर्थकों को छोड़कर।
सम्भवत: पार्टी को अब संविधान और अंबेडकर की ताकत का एहसास हो चला है इसलिये मोदी तथा शाह खुद को अंबेडकर, संविधान एवं आरक्षण के पक्ष में खड़ा करने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं लेकिन शाह के इस बयान ने पूरी भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। ऐसे में राहुल की गिरफ्तारी होती है तो वह कांग्रेस को अतिरिक्त फायदा पहुंचायेगी। वह नये संकल्पों के साथ बेलगावी का अधिवेशन करेगी तथा किसी बड़े आंदोलन के ब्लू प्रिंट के साथ बाहर आयेगी। संविधान व अंबेडकर का विमर्श कांग्रेस आगे बढ़ाये। यह देश के लिये बेहद अहम है।


