Top
Begin typing your search above and press return to search.

महिला टीम को बधाई और सलाम

भारतीय खेल जगत के लिए रविवार 2 नवंबर एक बड़ी और ऐतिहासिक उपलब्धि का दिन था

महिला टीम को बधाई और सलाम
X

भारतीय खेल जगत के लिए रविवार 2 नवंबर एक बड़ी और ऐतिहासिक उपलब्धि का दिन था। भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार क्रिकेट विश्वकप में शानदार जीत दर्ज की है। 1973 से महिला क्रिकेट टीम न केवल ऐसी किसी ऐतिहासिक जीत के इंतजार में थी, बल्कि इसके साथ-साथ और बहुत से मोर्चों पर उसे सफल होने की जद्दोजहद करनी पड़ रही थी। क्रिकेट खेलने का मैदान, तरीके, नियम महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एक जैसे ही हैं। दोनों वर्गों के खिलाड़ियों को एक जैसी मेहनत मैदान पर करनी पड़ती है। लेकिन महिला खिलाड़ियों के लिए संघर्षों का दायरा कहीं अधिक बड़ा है। पहला संघर्ष तो लैंगिक भेदभाव का ही है। क्रिकेट को जेन्टलमैन गेम कहा जाता है, यानी भद्रजनों का खेल। अंग्रेजों की मानसिकता उनके बनाए इस खेल में पूरी तरह झलकती है, जहां समाज के उच्च तबके के लोग ही भद्र माने जाते थे और उनके पुरुष ही इस खेल को खेल सकते थे। हालांकि वह युग अलग था। गेंद की तरह जब यह खेल भी सीमाओं के पार जाकर खेला जाने लगा तो इसमें देश और काल के हिसाब से तब्दीलियां आने लगी। महिलाओं ने भी क्रिकेट खेलना शुरु किया। लेकिन पितृसत्तात्मक समाज ने आदतन उन्हें हतोत्साहित किया। इसके लिए कई तरीके आजमाए गए। टीशर्ट-लोअर पहनी महिलाओं का मजाक उड़ाना, उनकी शारीरिक क्षमता पर संदेह करना यह सब तो चलता ही रहा। इसके साथ महिला खिलाड़ियों को पुरुष टीमों की अपेक्षा कम फीस देना, उनके टीम प्रबंधन, सुविधाओं और संसाधनों पर खर्च न करना, महिला टीमों के मैच के लिए प्रायोजकों का न मिलना, ऐसी कई अड़चनें दिखाकर महिला खिलाड़ियों को यही संदेश बार-बार दिया गया कि वे क्रिकेट खेलने के लिए नहीं बनी हैं।

आज से 20 साल पहले के दौर में मिताली राज जैसी महिला क्रिकेटरों को इसी बात का दुख था कि महिला क्रिकेट टीम को न पहचान मिलती है, न सम्मान मिलता है, बल्कि उपेक्षा करने में कोई कमी नहीं की जाती। हालात अब भी कमोबेश वही हैं, इसलिए किसी बड़े बदलाव की उम्मीद करना जल्दबाजी होगी। हालांकि थोड़े बहुत बदलाव दिखना शुरु भी हो गए हैं। जीत के तुरंत बाद बीसीसीआई सचिव देवजित सैकिया ने घोषणा की है कि टीम, सहयोगी स्टाफ और चयनकर्ताओं को कुल 51 करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। जबकि आईसीसी ने लगभग 37. 8 करोड़ रुपये का ईनाम विजेता टीम को दिया है। बीसीसीआई के पास धन और संसाधनों की कमी नहीं है, लिहाजा वह एक बड़ी राशि महिला टीम को दे रही है, तो इसका स्वागत होना चाहिए। हालांकि यह सवाल बना हुआ है कि क्या बीसीसीआई की तरफ से महिला खिलाड़ियों को यही प्रोत्साहन आगे भी मिलता रहेगा। देश की कई महिला क्रिकेट खिलाड़ी, जो प्रतिभा होने के बावजूद कई किस्मों के भेदभाव में फंस जाती हैं, उन्हें इससे निकालने और आगे बढ़ाने के लिए बोर्ड के पास क्या कोई योजना है। देवजित सैकिया ने यह भी कहा कि 'जय शाह के नेतृत्व में महिला क्रिकेट में क्रांति आई। मैच फीस समानता और पुरस्कार 300प्रतिशत बढ़े। यह जीत महिला क्रिकेट को नई ऊंचाई देगी।' उनका यह बयान चापलूसी से प्रेरित लगता है। क्योंकि महिला क्रिकेट टीम में यह क्रांति खिलाड़ियों की अपनी मेहनत और संघर्षों से हार न मानने के जज्बे के कारण आई है। इसमें जय शाह का व्यक्तिगत योगदान क्या है, यह अब तक सामने नहीं आया है। बल्कि पिछले साल अक्टूबर में जब टीम की सदस्य जेमिमा रोड्रिग्स की मुंबई जिमखाना की सदस्यता केवल इसलिए खत्म कर दी गई, क्योंकि उनके पिता इवान रोड्रिग्स पर क्लब में धार्मिक गतिविधि चलाने का आरोप लगा, तब जय शाह ने जेमिमा के बचाव में कुछ कहा हो, ऐसी कोई खबर सामने नहीं आई। बल्कि इस घटना के बाद जेमिमा को सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल किया गया। बताने की जरूरत नहीं कि ट्रोलर्स भारतीय जनता पार्टी के ही समर्थक थे।

केवल धर्म के आधार पर जेमिमा रोड्रिग्स को मानसिक तौर पर परेशान किया गया। लेकिन वे फिर भी मैदान पर डटी रहीं और भारत के लिए फाइनल का टिकट हासिल करने में उनका बड़ा योगदान रहा। अब जेमिमा रोड्रिग्स की तारीफ हो रही है, मगर इसके साथ क्या समाज इस बात को समझेगा कि किसी भी बात को तूल देकर धार्मिक विवाद खड़े करने का काम भाजपा के शासन में जिस तरह हो रहा है, उससे समाज खुद अपना कितना नुकसान कर रहा है। आज जब विश्व कप जीतने पर केवल खुशियां मनाई जानी चाहिए, तब ये सारे सवाल खड़े हो रहे हैं कि महिला खिलाड़ियों के साथ भेदभाव अब तक क्यों होता रहा।

इतनी ऐतिहासिक और बड़ी उपलब्धि के बाद भी यह भेदभाव पूरी तरह खत्म होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं ले सकता। बीसीसीआई ने कहा है कि भविष्य में पूर्ण समानता सुनिश्चित होगी। अब पुरस्कार भी समान होंगे। लेकिन यह भविष्य क्या उस आने वाले कल की तरह होगा, जो कभी आता ही नहीं है, यह भी सोचने वाली बात है। क्योंकि अभी बेशक बीसीसीआई ने 51 करोड़ रूपए टीम को दिए हैं, लेकिन 2024 के टी 20 में पुरुष टीम ने विश्व कप जीता था तो उसे 125 करोड़ दिए गए थे। 125 और 51 के बीच जितना बड़ा फासला है, पूर्ण समानता का लक्ष्य हासिल करना भी उतना ही दूर लग रहा है। हालांकि महिला खिलाड़ियों को सौ मुबारक और उनके जज्बे को सलाम जो इस बात पर भी खुश हैं कि उनके लिए मैच में समान फीस का फैसला लिया गया है।

क्रिकेट से पहले हॉकी, कुश्ती, तीरंदाजी, तैराकी, शतरंज, बैडमिंटन, टेनिस, भारोत्तोलन, दौड़, जिमनास्टिक्स, पर्वतारोहण जैसे तमाम खेलों में महिला खिलाड़ियों ने अपनी धाक जमाई है। लेकिन कई खिलाड़ियों को राजनैतिक शोषण, नाइंसाफी का शिकार बनाया गया, कईयों को संसाधनों की कमी के कारण आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। विश्वकप उठाती महिलाओं की सुंदर तस्वीर देश देखकर गदगद है, तो क्या जंतर-मंतर पर इंसाफ के लिए संघर्ष करती महिलाओं की तस्वीर देखकर शर्मिंदगी आई, यह सवाल अब खुद से पूछने का वक्त आ गया है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it