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कुम्भ पर चन्द्रशेखर के वाजिब सवाल

सोमवार को पौष पूर्णिमा पर स्नान एवं कल्पवास की शुरुआत के साथ प्रयागराज में गंगा तट पर महाकुम्भ आरम्भ हो गया है जो 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन तक चलेगा

कुम्भ पर चन्द्रशेखर के वाजिब सवाल
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सोमवार को पौष पूर्णिमा पर स्नान एवं कल्पवास की शुरुआत के साथ प्रयागराज में गंगा तट पर महाकुम्भ आरम्भ हो गया है जो 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन तक चलेगा। इंतज़ामात के लिहाज से इसे एक बड़ा आयोजन समझा जा रहा है कि क्योंकि पहली बार यह बेहद भव्य व विस्तृत परिसर में होगा। कहा जा रहा है कि इस दौरान इसमें 40 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद है जबकि व्यवस्था 100 करोड़ श्रद्धालुओं के लायक हुई है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मेले को अपनी प्रशासकीय कुशलता का एक उदाहरण बनाने पर तुले हैं परन्तु वहीं आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर आजाद ने इसे लेकर कुछ बेहद वाजिब सवाल उठाये हैं जिन पर पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर विचार किया जाना चाहिये। 'एक्स' पर डाली एक पोस्ट में उन्होंने आयोजन के प्रबन्ध पर योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते हुए कहा कि सरकार के पास बहुत शक्ति होती है। 'अगर वह चाहे तो कोई असम्भव काम भी सम्भव हो सकता है। केवल 6 माह में रेत पर पूरा शहर बसा देना इसका उदाहरण है। यह बतलाता है कि सरकार कोई भी चुनौती को स्वीकार कर ले तो किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है।' आजाद ने सरकार की प्राथमिकता पर सवाल उठाते हुए कहा कि 'जब बात आती है देश के गरीब, किसान, मजदूर, पिछड़े, दलित, आदिवासी और महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा की, तो सवाल उठता है कि यदि इन आयोजनों को इतने बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जा सकता है तो शिक्षा, चिकित्सा, महिलाओं की सुरक्षा, रोजगार और बच्चों के भविष्य के लिए क्यों नहीं इस तरह की इच्छाशक्ति दिखाई जा रही है?' रविवार को उन्होंने यह बयान दिया था जिसे लेकर हंगामा होना स्वाभाविक था। उन्होंने कहा कि 'जो लोग वहां अपने पाप धोने जायें वे कोरोना के वक्त उसी गंगा में बहा दी गयी लाशों को भी याद करें जिन्हें उपचार की सुविधा नहीं मिल पाई थी।' अपने बयान पर अडिग रहते हुए आजाद ने कहा कि 'जितना पैसा कुम्भ पर लगाया गया है उतना अगर देश के युवाओं की शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार देने पर लगाते तो बहुत से परिवारों के आंसू सूख जाते।'

सोमवार को इसी बयान के सन्दर्भ में जब उनसे पूछा गया कि अगर उन्हें निमंत्रण मिला तो क्या वे कुम्भ जायेंगे, इस पर उन्होंने कहा कि 'उन्होंने कोई पाप नहीं किया है इसलिये उन्हें जाने की ज़रूरत नहीं है। न मैंने पाप किये हैं और न ही मैं वहां धोने जा रहा हूं।' जाहिर है कि इसकी प्रतिक्रिया होती और वैसा ही हो रहा है। विभिन्न धर्मगुरु और नेता उन्हें कोस रहे हैं। उन्होंने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि हमने बचपन से सुन रखा है कि गंगा में नहाने से पाप धुलते हैं। इस पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि 'क्या कभी चन्द्रशेखर कुम्भ में आये हैं? यदि आयें तो वे ऐसे निष्पापी व्यक्ति के दर्शन करना चाहेंगे।' पीठाधीश्वर रामविलास दास वेदान्ती तो चन्द्रशेखर पर इस कदर नाराज़ हुए हैं कि उन्होंने यहां तक कह डाला कि महाकुम्भ में केवल पुण्यात्मा जाते हैं, पापी नहीं।

अपने बयान पर डटे हुए चन्द्रशेखर ने इस मामले में धार्मिक लोगों की दखलंदाजी पर आपत्ति करते हुए याद दिलाया कि जब भारत को विश्व कप दिलाने के लिये लोग हवन करते हैं तो उन्हें इसलिये हंसी आती थी क्योंकि वे विज्ञानवादी है। वे कहना चाहते हैं कि झांसी के अस्पताल में आग से बच्चों का मरना बतलाता है कि सरकार की प्राथमिकताएं दूसरी हैं। सरकार गम्भीर नहीं है और सरकार से जनकल्याण को लेकर सवाल करना गलत नहीं है। यदि समाज के वंचित तबकों के उत्थान के लिये भी उसी संकल्प एवं दृढ़ इच्छाशक्ति से काम किया जाये तो बदलाव सम्भव है।

देखा जाये तो चन्द्रशेखर ने जो भी बातें कहीं हैं उनमें कोई भी बात बेजा नहीं है। उनके द्वारा उठाये गये सवाल भी वाजिब हैं क्योंकि महाकुम्भ में जहां एक ओर भारी-भरकम राशि खर्च हो रही है वहीं दूसरी ओर सरकार का पिछला कुछ वक्त इसी काम में गुजरा है जबकि प्रदेश में रोजगार जैसा मुद्दा पहले समाधान मांगता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की ओर मानों सरकार का ध्यान ही नहीं है। बेशक सरकार कुम्भ की व्यवस्था पर भी ध्यान दे क्योंकि उससे लोगों की आस्था जुड़ी है तथा करोड़ों लोग यहां गंगा स्नान के लिये आयेंगे जिनकी सुविधा तथा सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिये, फिर भी इस मौके पर अनेक ऐसे सवाल हैं जो अपने आप उठ खड़े होते हैं। मसलन, कुम्भ का बजट करीब 5500 करोड़ रुपये का बताया जाता है। इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि इतनी राशि में कितने अस्पताल, स्कूल आदि खोले जा सकते हैं।

देश में कुम्भ की परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और ऐसा नहीं कि भारतीय जनता पार्टी ही इसकी पहली आयोजक है तथा आदित्यनाथ प्रवर्तक। इस मामले में न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये वरन व्यवहारिक रवैया अख्तियार करना होगा। जितने तरह के संसाधनों को इसके आयोजन के लिये झोंक दिया गया है वह सरकार की श्रद्धा कम सामाजिक धु्रवीकरण का अभियान अधिक है। ये सवाल उठाकर चन्द्रशेखर आजाद ने महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर समाज का ध्यान खींचा है। मसला पाप-पुण्य का नहीं वरीयता का है।


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