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लोकतंत्र को निगलता पूंजीवाद

ट्रंप को सत्ता संभाले अभी महीना भर भी नहीं हुआ और उनके फैसले जाहिर कर रहे हैं कि अमेरिका में पूंजीवाद और अमेरिका का पूंजीवाद पूरी तरह बेनकाब होकर दुनिया के सामने आ गए हैं

लोकतंत्र को निगलता पूंजीवाद
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- सर्वमित्रा सुरजन

ट्रंप को सत्ता संभाले अभी महीना भर भी नहीं हुआ और उनके फैसले जाहिर कर रहे हैं कि अमेरिका में पूंजीवाद और अमेरिका का पूंजीवाद पूरी तरह बेनकाब होकर दुनिया के सामने आ गए हैं। दुनिया में लोकतंत्र की रक्षा और बहाली के नाम पर अपनी सरकारें बनवाने वाला अमेरिकी पूंजीवाद अब कौन से कहर ढाएगा, यह सोचकर ही डर लगता है। क्योंकि इस खेल का प्रतिरोध भी होगा और उससे नए संघर्षों का जन्म होगा। भारत इन बदले हालात में किस तरह अपनी मजबूती दिखाएगा, इसमें भी संशय है।

भापने दूसरे कार्यकाल में कुछ और ज्यादा दबंग होकर शासन करने की मंशा पाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब बेहद खतरनाक खेल खेलने पर उतारू हो गए हैं। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिका के पहले विदेशी मेहमान बने। इस बात से ही जाहिर हो जाता है कि अमेरिका और इजरायल के बीच किस किस्म की घनिष्ठता है। नेतन्याहू से मुलाकात के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग़ज़ा पर अमेरिका के नियंत्रण से जुड़ा चौंकाने वाला प्रस्ताव पेश किया। ट्रंप का मानना है कि ग़ज़ा एक ऐसी जगह है जहां सब कुछ ध्वस्त हो चुका है। अब अमेरिका ग़ज़ा पट्टी को नियंत्रण में लेकर यहां से ज़िंदा बमों को हटाकर, पुनर्निमाण करके अर्थव्यवस्था को गति देने का काम कर सकता है। बकौल ट्रंप फ़िलीस्तीन के लोग केवल इसलिए ग़ज़ा वापस जाना चाहते हैं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है। इसलिए ट्रंप ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि गज़ा के 18 लाख लोगों को दूसरे अरब देशों में भेज देना चाहिए, ताकि अमेरिका ग़ज़ा पर नियंत्रण करे और इस बर्बाद हो चुके फ़िलीस्तीनी क्षेत्र को फिर से बनाए। जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या उनके इस ताज़ा रुख़ के मायने ये हैं कि वो इज़रायल और फ़िलीस्तीन के विवाद को सुलझाने के लिए 'दो राष्ट्र सिद्धांत' के ख़िलाफ़ हैं। तो ट्रंप ने जवाब दिया, 'इसका दो राष्ट्र या एक राष्ट्र या किसी भी राष्ट्र से कोई मतलब नहीं है।'

गनीमत है कि जवाब देने में ट्रंप ने ईमानदारी दिखाई कि इसका किसी भी राष्ट्र से कोई मतलब नहीं है। वैसे भी ट्रंप इस समय जो कर रहे हैं, वही अमेरिका की मंशा हमेशा से रही है। फर्क यही है कि अब तक के राष्ट्रपतियों ने खुलकर गज़ा पर अधिकार जमाने की बात नहीं की थी, ट्रंप विकास, रोजगार और पुनर्निर्माण जैसे शब्दों की जुगाली करते हुए इस बात को बेझिझक कह रहे हैं। ट्रंप ने ग़ज़ा पट्टी की तुलना नरक से करते हुए कहा, 'यहां लोगों को कभी जीने का मौका नहीं मिला।' हालांकि उनसे पूछा जाना चाहिए कि गज़ा को नरक बनाने में अमेरिका की भूमिका के बारे में वे क्या कहेंगे। यहूदियों को बसाने के लिए इजरायल नाम के नए देश का निर्माण आखिर किस की पहल पर हुआ। ट्रंप अब भी गज़ा के लोगों को दूसरे अरब देशों में भेजने की बात कर रहे हैं, अगर उन्हें भलाई करने का इतना ही शौक है तो क्यों नहीं अमेरिका में उन्हें बसने बुला लेते। अभी तो वे अमेरिका से उन लोगों को भी खदेड़ रहे हैं, जिनके पास अमेरिकी कानून के तहत पूरे कागज़ात नहीं हैं। ऐसे प्रवासी अवैध कहे जा सकते हैं, लेकिन ट्रंप तो इन्हें अपराधियों की तरह हथकड़ी लगाकर वापस भेज रहे हैं। भारत में भी बुधवार को ऐसे प्रवासी भारतीयों की पहली खेप आई है। वैश्विक स्तर पर यह देश का बड़ा अपमान है। अफसोस की बात यह है कि इतनी बड़ी शर्मिंदगी का अहसास प्रधानमंत्री को नहीं है, वे गंगाजी में डुबकी लगाने का आनंद ले रहे हैं।

बहरहाल, गज़ा पर ट्रंप की योजना पर उनसे पूछा गया कि 'क्या भविष्य में ग़ज़ा पर अमेरिका का स्वामित्व होगा, क्या आप किसी संप्रभु क्षेत्र पर कब्ज़ा करने की बात कर रहे हैं?' तो ट्रंप ने कहा, 'हां'. वह अमेरिका की अगुवाई में लंबे समय तक ऐसा नियंत्रण करने की कल्पना कर रहे हैं। उस ज़मीन के टुकड़े पर अधिकार पाना, उसका विकास करना, हज़ारों नौकरियां पैदा करना। ये वाकई शानदार होगा। हर कोई इस विचार को पसंद करता है।' इस हर कोई में कौन-कौन शामिल है, इसका खुलासा तो अभी नहीं हुआ है, लेकिन मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर, फ़िलीस्तीनी प्राधिकरण और अरब लीग ने एक साझा बयान जारी करते हुए ट्रंप की इस योजना को ख़ारिज और चेतावनी दी है कि इस तरह की योजना क्षेत्रीय स्थिरता के लिए ख़तरा पैदा करेंगी और संघर्ष तेज़ होने का जोख़िम भी बढ़ाएगी। हमास भी स्वाभाविक तौर पर इस योजना से नाराज़ है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत किसी जगह की आबादी को जबरन कहीं और भेजना प्रतिबंधित है। लेकिन ट्रंप खुलेआम इस कानून की धज्जियां उड़ाने की योजना बता रहे हैं। अरब देश इसकी मुखालफत भले ही कर लें, लेकिन क्या ट्रंप को इस योजना पर अमल करने से रोका जा सकेगा, यह बड़ा सवाल है। क्योंकि ट्रंप के इर्द-गिर्द इस समय जो लोग खड़े हैं, उनके लिए मुनाफा ही सबसे बड़ा धर्म है और इसमें इंसानियत जैसे शब्दों की कोई जगह नहीं है।

गज़ा को स्वर्ग बनाने के पीछे किस तरह भू राजनैतिक स्थितियों से छेड़छाड़ होगी, इजरायल और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां, सेनाएं और तकनीकी ताकतें किस तरह के दुष्चक्र रचेंगी, इनका अंदाजा भी फिलहाल नहीं लगाया जा सकता। हालांकि ट्रंप के एक और फैसले से इस खेल की चालाकी समझी जा सकती है। टेस्ला कंपनी के मालिक, दुनिया के सर्वाधिक अमीर कारोबारियों में से एक और इस समय ट्रंप के सबसे करीबी माने जाने वाले एलन मस्क की पहुंच अब अमेरिकी सरकार की भुगतान प्रणाली तक हो गई है। मस्क द्वारा संचालित डीओजीई यानी सरकारी दक्षता विभाग को सामाजिक सुरक्षा और मेडिकेयर ग्राहक भुगतान प्रणालियों सहित संवेदनशील वित्तीय डेटा तक पहुंच मिल गई है। डीओजीआई को लेकर पहले ही अमेरिका में संदेह व्यक्त किया जा रहा है। ट्रम्प प्रशासन ने इस टास्क फोर्स का गठन ही इसलिए किया है ताकि संघीय कर्मचारियों को नौकरी से निकालने, कार्यक्रमों में कटौती करने और संघीय नियमों को कम करने के तरीके खोजे जा सकें। आसान शब्दों में कहें तो सरकार अपनी जिम्मेदारी इस टास्क फोर्स के जरिए कम करना चाहती है।

इसकी कमान एलन मस्क के हाथों में है, जो विशुद्ध कारोबारी हैं और जिन्हें सरकार के संचालन में हिस्सा लेने के लिए अमेरिकी जनता ने निर्वाचित नहीं किया। अमेरिकी जनता ने डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति चुना है। लेकिन ट्रंप बेहतर प्रशासन के नाम पर कारोबारियों को बढ़ावा दे रहे हैं। अमेरिकी ट्रेजरी तक मस्क की पहुंच इसका बड़ा प्रमाण है। डेमोक्रेटिक पार्टी के कई सांसद इस बात से काफी परेशान हैं कि मस्क के पास अमेरिकी सरकार में बहुत अधिक शक्ति है, उन्हें डर है कि मस्क के लोग अपने राजनीतिक एजेंडे के अनुरूप भुगतान को अवैध रूप से रोक सकते हैं। मस्क सोशल मीडिया पर भी इस बात को कह चुके हैं कि वे चैरिटी यानी कल्याणकारी कार्यों के लिए दिए जाने वाले भुगतान को बंद कर देंगे। ध्यान रहे कि ट्रेजरी के भुगतानों का प्रबंधन राजकोषीय सेवा द्वारा किया जाता है, जो सालाना 1.2 बिलियन डॉलर से अधिक लेनदेन करती है। अब इस लेनदेन तक मस्क की पहुंच हो चुकी है, जिसकी आलोचना अमेरिका में मीडिया और विपक्ष दोनों कर रहे हैं।

ट्रंप को सत्ता संभाले अभी महीना भर भी नहीं हुआ और उनके फैसले जाहिर कर रहे हैं कि अमेरिका में पूंजीवाद और अमेरिका का पूंजीवाद पूरी तरह बेनकाब होकर दुनिया के सामने आ गए हैं। दुनिया में लोकतंत्र की रक्षा और बहाली के नाम पर अपनी पि_ू सरकारें बनवाने वाला अमेरिकी पूंजीवाद अब कौन से कहर ढाएगा, यह सोचकर ही डर लगता है। क्योंकि इस खेल का प्रतिरोध भी होगा और उससे नए संघर्षों का जन्म होगा। भारत इन बदले हालात में किस तरह अपनी मजबूती दिखाएगा, इसमें भी संशय है। ट्रंप के शपथ ग्रहण में प्रधानमंत्री मोदी को निमंत्रण नहीं था, लेकिन मुकेश अंबानी वहां सपत्नीक मौजूद थे। अमेरिका में पहले विदेशी मेहमान इजरायली प्रधानमंत्री बने और उस समय अमेरिका से अवैध प्रवासियों को भारत भेजने की तैयारी हो रही थी। नरेन्द्र मोदी के अपने दोस्त ट्रंप से फोन पर की गई बातचीत से भी कोई खास उम्मीद नहीं बंधी।

जिस तरह नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में कुछ खास उद्योगपतियों को बढ़ावा मिला, उसी तरह मस्क अमेरिकी सरकार पर हावी दिख रहे हैं। एक उद्योगपति के सरकार पर नियंत्रण बढ़ने के नतीजे अमेरिका में सामने आने लगे हैं, भारत के नागरिकों को भी अपने देश में ऐसे ही हालात बनने का डर लगना चाहिए। राहुल गांधी ने संसद में इस बात को समझाने की कोशिश की थी, लेकिन उनके एआई के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने डबल एआई वाला बयान देकर बता दिया कि अमेरिका का जो अभी हाल है, जल्द ही भारत में भी पूंजीवाद लोकतंत्र को ऐसे ही निगलेगा।


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