लालू यादव को चोर अपराधी कहना भाजपा को भारी पड़ेगा!
लालू यादव बिहार में ही नहीं, पूरे देश में सामाजिक न्याय के सबसे बड़े योद्धा के रूप में हैं।

शकील अख्तर
लालू यादव बिहार में ही नहीं, पूरे देश में सामाजिक न्याय के सबसे बड़े योद्धा के रूप में हैं। नेता वह होता है जो परिवर्तन को सामने लाकर दिखाए और वह भी समाज में। जो सबसे मुश्किल होता है। राजनीति में कानून में सिद्धांत में बहुत सारी क्रांतियां आती हैं। मगर समाज में उन्हें लागू करना और आपके सामने सबसे बड़ी बात होती है। बिहार में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन सबसे कम हुआ है।
बिहार ही एक ऐसा राज्य है जहां प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा मुंह की खाई है। 2014 लोकसभा की बड़ी जीत के बाद मोदी जी 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव हारे। इसके बाद 2020 में महागठबंधन को चुनाव मैदान में नहीं मतगणना केन्दों में हराया गया। एनडीए और महागठबंधन दोनों के 37- 37 प्रतिशत वोट थे। साढ़े सात करोड़ वोटों में केवल 12 हजार का अंतर। वह भी मतपेटियों में नहीं था मतगणना में मैनेज करवाया गया। देर रात तक गिनती जारी रखी गई। कहीं मशीन खराबी के नाम पर कहीं बिजली न होने के नाम पर और कहीं विवाद के नाम पर।
नहीं तो आजकल ईवीएम से गिनती पर शाम से पहले फाइनल रिजल्ट आ जाता है। इतने प्रयासो के बाद भी एनडीए को बहुमत से केवल 3 सीटें ही ज्यादा मिलीं। 243 की विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटों की जरूरत थी। और रात भर गिनती के बाद एनडीए केवल 125 ही ला पाया। फिर भी सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी ही रही। 75 सीटों के साथ। और उसके पूरे गठबंधन को 110 सीटें मिलीं।
40 सीटों पर जीत-हार का अंतर साढ़े तीन हजार वोटों से कम था और 11 सीटों पर एक हजार से कम। और इन कम अंतर वाली सीटों में देर रात तक गिनती करके इसका फायदा एनडीए को पहुंचाया गया। कम अंतर वाली सीटों में से 17 सीटों का तेजस्वी ने पूरे तथ्य इक_े करके बताया था कि यहां किस तरह महागठबंधन को हराया गया।
2025 के चुनाव में जा रहे महागठबंधन को 2015 और 2020 के चुनाव याद रखना चाहिए। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। और यह समझ में आएगा कि बिहार में बीजेपी को हराना मुश्किल नहीं है बशर्ते कि वे सिर्फ इसी एक उद्देश्य को लेकर लड़ें कि उन्हें रोकना है। हिन्दी भाषी प्रदेशो में एकमात्र बिहार ही ऐसा बचा है जहां भाजपा कभी अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है। मोदी जी के लिए संभवत: यह आखिरी मौका होगा! क्योंकि 2030 के अगले विधानसभा चुनाव में वे प्रधानमंत्री हों न हों कोई नहीं जानता। वे 80 वर्ष के हो चुके होंगे।
अभी सितंबर में 75 के होने पर तो आरएसएस की तरफ से उन पर सवाल शुरू हो गए हैं। सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि 75 का होने पर बाजू हो जाना चाहिए। लेकिन वे फिर इससे पलट भी गए हैं कि मोदीजी के लिए नहीं कहा था।
खैर वह उनके आन्तरिक सत्ता संघर्ष का मामला है। मगर जो काम 65 साल ( 2015 चुनाव) 70 साल ( 2020 चुनाव) में नहीं कर पाए जब कि उन दोनों समयों पर वे अपने शीर्ष पर थे तो अब जब उनका उतार का समय है तो शायद आखिरी चांस!
तो वे मोदीजी भी अपनी पूरी ताकत से लड़ेंगे और ताकत से मतलब हर हरबा इस्तेमाल करेंगे। जैसा अभी विशेष गहन पुनरीक्षण ले आए हैं। जिसमें करीब 80 लाख वोट कटने की आशंका है। ऐसे में महागठबंधन को भी पूरी ताकत लगानी होगी और उसकी पूरी ताकत का मतलब है आपस में नहीं लड़ना। ऊपर से देखने में लग रहा है कि महागठबंधन एक है। मगर अंदर ही अंदर पहले सीटों के बंटवारे को लेकर बहुत मतभेद हैं और फिर दिल से तेजस्वी का नेतृत्व मानने पर।
जो लोग अंदर की बात जानते हैं उन्हें मालूम है कि कांग्रेस के कुछ नेता तेजस्वी को तो छोड़िये लालू यादव पर भी टीका टिप्पणी कर रहे हैं। बीजेपी के सुर में सुर मिलाकर कहते हैं कि हां जंगल राज तो था। अगर इसी तरह के मैसेज वह देते रहे तो बीजेपी की राह आसान हो जाएगी।
दो ही मुद्दों पर यह चुनाव जाएगा। एक जो महागठबंधन को सूट करता है वह है लालू का अपमान। भाजपा जिस गंदे तरीके से लालू यादव को अपराधी चोर बोल रही है और उससे भी ज्यादा इसमें युवा तेजस्वी को लपेट कर कि उनके पिता ऐसे हैं उन्हें अपने हाथ पर लिखवा लेना चाहिए जैसा एक फिल्म में अमिताभ बच्चन के लिखा था, कह रही है वह उन्हें भारी पड़ सकता है।
लालू यादव बिहार में ही नहीं, पूरे देश में सामाजिक न्याय के सबसे बड़े योद्धा के रूप में हैं। नेता वह होता है जो परिवर्तन को सामने लाकर दिखाए और वह भी समाज में। जो सबसे मुश्किल होता है। राजनीति में कानून में सिद्धांत में बहुत सारी क्रांतियां आती हैं। मगर समाज में उन्हें लागू करना और आपके सामने सबसे बड़ी बात होती है। बिहार में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन सबसे कम हुआ है। एक तरफ हजारों बीघा के भूस्वामी है और दूसरी तरफ देश के सबसे ज्यदा भूमिहीन। भूमिहीनों पर सबसे ज्यादा अत्याचार वहीं हुए हैं। बड़े-बड़े नरसंहार। और यह बताने की जरूरत नहीं है कि भूमिहीन सब दलित, महादलित, पिछड़े, अति पिछड़े हैं।
सामाजिक रूप से जिन्हें खटिया पर बैठने तक का अधिकार नहीं था। लालू ने यह दिलाया। सामंतों के सामने बैठने लगे। स्वाभिमान आया। और यही मनुवादियों की सबसे तकलीफ है। लेकिन उनकी इस तकलीफ को महागठबंधन अपनी सबसे बड़ी ताकत बना सकता है।
उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का विधानसभा में तेजस्वी से यह कहना कि तुम्हारा बाप अपराधी है और बाहर यह कहना कि जैसे फिल्म में अमिताभ के हाथ पर लिखा वैसा ही तेजस्वी को लिखा लेना चाहिए कि मेरा बाप चोर है सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है। यह हमला लालू और तेजस्वी पर नहीं है बल्कि सामाजिक न्याय पर है। और अगर यह संदेश महागठबंधन देने में सफल हो गया तो भाजपा चुनाव आयोग के जरिए कितनी ही गड़बड़ करवा ले गरीब कमजोर जनता अपना जो सामाजिक सम्मान मिला है उसकी खातिर हिम्मत से सामने आ जाएगी।
दूसरे मुद्दे जिसका हमने ऊपर जिक्र किया वह है भाजपा द्वारा प्रचारित जंगल राज। वह इसे केन्द्र में लाना चाहती है। अब यह देखना कांग्रेस का काम है कि भाजपा के इस मुद्दे को उसका कौन-कौन सा नेता हवा दे रहा है। प्रचार तंत्र भाजपा के पास है इसलिए जंगल राज का मुद्दा ज्यादा हवा में तैरेगा। और जब धीरे से कोई कांग्रेसी नेता फुसफुसा कर बताएगा तो फिर इस मुद्दे के पंख लग जाएंगे।
लड़ाई कांग्रेस की बड़ी है। देशव्यापी असर जाएगा। बिहार में अगर मोदी जीत गए तो पहलगाम के आतंकवादी हमले जिसमें अभी तक एक भी नहीं पकड़ा गया, अचानक सीजफायर और ट्रंप के 26 बार दावे जिनका प्रधानमंत्री मोदी एक बार भी जवाब नहीं दे पाए, से गिरा उनका ग्राफ फिर से चढ़ जाएगा। राजद के हारने से उसे कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। बिहार में वह बड़ी ताकत बनी रहेगी। लेकिन दांव बड़ा ज्यादा कांग्रेस का है। क्यों कि इसके बाद 2026 के सभी पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुदुचेरी के विधानसभा चुनाव उसके लिए और मुश्किल हैं। बिहार में गठबंधन के साथ जीतकर वह 2026 के चुनावों में गठबंधन के महत्व पर ज्यादा बात कर सकती है और कमजोर मोदी को जहां मुख्य मुकाबला जैसे असम में उसी का है वह रोक सकती है।
अभी लोग सवाल करेंगे कि चुनाव आयोग ऐसा है, इतने वोट काटे जा रहे हैं! होगा। जब तक मोदी हैं आपको लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं मिलेगी। उसके खिलाफ लड़िए। जो जितने भी संवैधानिक तरीके हैं सबसे। मगर अपना घर भी ठीक करते रहिए। हरियाणा और राजस्थान में चुनाव आयोग ऐसा था, कारण से बड़ा कारण कांग्रेस की आंतरिक कलह थी। जिससे जीती बाजी भी हारे।


