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विश्वव्यापी आर्थिक अस्थिरता और घरेलू मंदी के साए में बजट

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को संसद में अपना रिकॉर्ड आठवां बजट पेश करेंगी

विश्वव्यापी आर्थिक अस्थिरता और घरेलू मंदी के साए में बजट
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- डॉ.अजीत रानाडे

विकास की गति में नरमी साफ झलकती है क्योंकि यह पिछले साल के 8.2 फीसदी से घटकर इस साल 6.4 प्रतिशत रह जाएगी। वित्त मंत्री को नीतियों एवं खर्च की प्राथमिकताओं का संकेत देना होगा जो इसे अगले साल 8 प्रतिशत नहीं तो कम से कम 7 फीसद पर वापस ले जाएगा, लेकिन जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में प्रवृत्ति रही है, इसे केवल राजकोषीय विस्तार द्वारा हासिल नहीं किया जा सकता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को संसद में अपना रिकॉर्ड आठवां बजट पेश करेंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान यह उनका दूसरा बजट है। उनके पिछले सात बजटों में अनेक उतार-चढ़ाव देखे गए हैं जिनमें सबसे बड़ा व्यवधान कोविड महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था के प्रमुख हिस्सों को बंद करना है। उस वर्ष सकल घरेलू उत्पाद में लगभग सात प्रतिशत की गिरावट आई थी। पिछले चार दशकों में कोविड के वर्ष ऐसा समय रहा है जिसमें भारत की अर्थव्यवस्था संकुचित रही यानी जिसमें नकारात्मक विकास दर दर्ज की गई। वित्त मंत्री के रूप में उनके शासनकाल के दौरान विकास सकारात्मक रहा है। इस समय अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है जो विकट हैं। अर्थव्यवस्था के सामने मंदी की घरेलू चुनौती के साथ-साथ कई वैश्विक बाधाएं भी हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के निर्णयों और कार्यों से वैश्विक उथल-पुथल होती है। राष्ट्रपति पद संभालने के बाद पहले दो हफ्तों में उन्होंने कई कार्यकारी आदेश पारित किए हैं जिनके संभावित अस्थिर प्रभाव हो सकते हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने कई देशों को धमकी दी है कि यदि वे अपने देश से आए अवैध नागरिकों के प्रत्यावर्तन को स्वीकार नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ व्यापार प्रतिबंध लगाए जाएंगे। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका की सदस्यता वापस ले ली है। चीन, कनाडा और मेक्सिको के खिलाफ कड़े व्यापार शुल्क जारी हैं। प्रमुख कार्यक्रमों के लिए धन में कटौती की गई है तथा हजारों सरकारी अधिकारियों की नौकरियां खतरे में हैं। विदेशी सहायता में कटौती की जा रही है। चीन के साथ अमेरिकी व्यवसाय-युद्ध का मतलब है भारत जैसे तीसरे देशों में चीनी सामान कम कीमत पर डम्प किया जाएगा। चीन भी मंदी का सामना कर रहा है। यहां तक कि उच्च आयात व्यापार बाधाएं भी भारत में चीनी सामानों की बाढ़ को रोक नहीं पायेगी। भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार घाटा लगभग 100 अरब डॉलर है। देखना होगा कि हम इसे कैसे पाटते हैं या कम से कम इसे कैसे घटा सकते हैं?

दूसरी बड़ी बाधा 'डीपसीकÓ नामक एक चीनी ऐप से आयी है जिसने चैट जीपीटी बेचने वाली अमेरिकी कंपनी ओपन एआई के एकाधिकार को ध्वस्त कर दिया है। डीपसीक एआई प्रोग्राम वह सब कुछ करता है जो चैट जीपीटी जैसे प्रोग्राम करते हैं लेकिन डीपसीक एक ओपन सोर्स है और दुनिया में कोई भी इसे अपना सकता है, अपने अनुसार ढाल सकता है, संशोधित और सुधार सकता है। इसकी लागत ओपन एआई की लागत से बहुत कम है। डीपसीक की भारी सफलता के कारण एआई में इस्तेमाल होने वाले मुख्य चिप को बनाने वाली कंपनी एनवीडिया का शेयर बाजार मूल्य आधा खरब डॉलर गिर गया। इस स्टॉक क्रैश का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। भारत में भी शेयर बाजार करीब दस फीसदी नीचे है। डॉलर की विनिमय दर तेजी से गिरकर 89 रुपये हो गई है। भारत से डॉलर का बाहर जाना चिंताजनक है। शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) तेजी से नीचे है।

वित्त मंत्री की चिंता यहीं पर नहीं थम रही है। बैंकिंग प्रणाली में नकदी की भारी कमी हो गई है। इनमें से कुछ का समाधान भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर द्वारा युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। आरबीआई बॉन्ड व डॉलर खरीदकर और बैंकों को 56 दिनों के लोन के जरिए टर्म लोन जारी कर नगदी डाल रहा है। लोन दरों में ढील का संकेत देने के लिए मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक में शायद रेपो रेट में कटौती की जा सकती है।

विकास की गति में नरमी साफ झलकती है क्योंकि यह पिछले साल के 8.2 फीसदी से घटकर इस साल 6.4 प्रतिशत रह जाएगी। वित्त मंत्री को नीतियों एवं खर्च की प्राथमिकताओं का संकेत देना होगा जो इसे अगले साल 8 प्रतिशत नहीं तो कम से कम 7 फीसद पर वापस ले जाएगा, लेकिन जैसा कि पिछले कुछ वर्षों में प्रवृत्ति रही है, इसे केवल राजकोषीय विस्तार द्वारा हासिल नहीं किया जा सकता है। राजकोषीय घाटे को वादे के मुताबिक 4.5 फीसदी से नीचे लाने की जरूरत है। इसका मतलब राजकोषीय समेकन पर विचार करना होगा अन्यथा राजकोषीय विस्तार उच्च ब्याज दरों, मुद्रास्फीति के दबाव और अंतत: अस्थिर ऋण की ओर जाता है। पारिवारिक ऋ ण की स्थिति भी बड़ी चिंता का विषय है। जीडीपी अनुपात में घरेलू ऋ ण जीडीपी के 43 फीसदी पर सबसे अधिक है। शुद्ध वित्तीय बचत यानी परिवारों की वित्तीय देनदारियों की ताजा स्थिति भी पचास वर्षों के सबसे निचले स्तर, सकल घरेलू उत्पाद का मुश्किल से 5 प्रतिशत पर था। बचत, आर्थिक विकास की संचालक है और हमें घरेलू बचत को प्रोत्साहित करने, पुनर्जीवित करने की सख्त जरूरत है। हाल ही में आरबीआई ने शायद खराब ऋ णों तथा चूक के बढ़ने की आशंका से असुरक्षित ऋणों और माइक्रोफाइनेंस पर लगाम कसी है। उपभोक्ता खर्च ठंडा पड़ा है तथा मुश्किल से 3 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है जबकि इसे कम से कम दोगुना होना चाहिए था।

शुक्र है कि कुंभ मेले पर खर्च खपत के लिए एक बूस्टर है। उम्मीद की जा रही है कि करीब 40 करोड़ लोगों की आवाजाही एवं प्रति व्यक्ति 5000 रुपये खर्च मान कर कुंभ मेले में करीब 2 लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं जो जीडीपी के लिए अच्छी खबर है। वृद्धि को गति देने के लिए निजी निवेश पर खर्च को बढ़ाने की जरूरत है। यह जीडीपी का कम से कम 28 प्रतिशत होना चाहिए लेकिन यह अभी बहुत कम है। क्या केंद्रीय बजट में निजी निवेशकों को नए व्यवसायों, कारखानों और नई क्षमता में निवेश शुरू करने के लिए कुछ उत्साह, मानवीय संवेदनाओं और जिंदादिली का संचार किया जा सकता है? यह याद रखना चाहिए कि वित्त मंत्री के पास बजट में खेलने के लिए बहुत अधिक जगह नहीं है क्योंकि बजट का 77 फीसदी खर्च ऋ ण पर ब्याज, वेतन, पेंशन और प्रतिबद्ध सब्सिडी आदि जैसे राजस्व मदों पर होता है। इसलिए न केवल खर्च की मात्रा पर बहुत कुछ निर्भर करता है बल्कि उन संकेतों पर भी निर्भर करता है जो वे अपनी सरकार के नीतिगत रुख के संदर्भ में देती हैं। यह एक कठिन वर्ष है और हम वित्त मंत्री से एक ऐसा बजट प्रस्तुत किए जाने की अपेक्षा रखते हैं जो राजकोषीय विवेक के साथ विकास को बढ़ावा देने के उपायों को जोड़ता है।
(लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट : द बिलियन प्रेस)


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