Top
Begin typing your search above and press return to search.

मणिपुर में फिर चूकी भाजपा

बीते 17 महीनों से मणिपुर में चल रहे भयावह जातीय संघर्ष को सुलझाने के लिए पहली बार दिल्ली में बैठक बुलाई गई

मणिपुर में फिर चूकी भाजपा
X

बीते 17 महीनों से मणिपुर में चल रहे भयावह जातीय संघर्ष को सुलझाने के लिए पहली बार दिल्ली में बैठक बुलाई गई। केंद्रीय गृह मंत्रालय के निमंत्रण पर मणिपुर से मैतेई, कुकी और नगा समुदायों के 20 विधायक दिल्ली पहुंचे। इसमें भी मात्र 4 या 5 कुकी विधायक ही पहुंचे। पहले यह बैठक गृह मंत्रालय में होनी थी, लेकिन बाद में इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी के दफ्तर में यह बैठक हुई, ऐसी खबर है। बताया जा रहा है कि बैठक में आईबी के पूर्वोत्तर के संयुक्त निदेशक राजेश कांबले, पूर्वोत्तर में भाजपा के समन्वयक संबित पात्रा, केंद्र के सुरक्षा सलाहकार एके मिश्रा मौजूद थे। पहले कुकी, फिर मैतेई और बाद में नगा नेताओं से बात की गई। सभी ने अपनी-अपनी मांगें केंद्र के समक्ष रखीं। इसके बाद सभी को एक हॉल में एकत्रित कर संकल्प दिलाया गया कि आज की बैठक के बाद मणिपुर में न तो एक भी गोली चलेगी और न ही किसी व्यक्ति की जान जाएगी। तीनों समुदायों के प्रतिनिधियों ने इस पर सहमति दी। इसके बाद प्रतिनिधियों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाए।

जो समुदाय पिछले 17 महीनों में परस्प खून के प्यासे हो गए हों, जिनके बीच अविश्वास की खाई इतनी बढ़ गई हो कि उनका एक-दूसरे के इलाकों में जाना वर्जित हो गया हो और अगर कोई गलती से सीमा को पार कर जाए तो फिर उसे सीधे मौत के घाट उतारा जाए, उन लोगों के बीच क्या एक-दूसरे से हाथ मिलाकर दोस्ती करवाई जा सकती है। इस बात से तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि या तो मोदी सरकार ने मणिपुर के मामले को बच्चों का खेल समझा है, या फिर मणिपुर को अपने खेल का मैदान बनाकर एक प्रयोग कर लिया है। भारत के कई राज्यों में अलगाववाद की आग पहले सुलग चुकी है, चाहे भाषा के नाम पर या धर्म के नाम पर। कई बार आंचलिक विशेषता के कारण पृथक राज्यों की मांगे भी उठीं। लेकिन दो समुदायों के बीच इतना गहरा संदेह कभी नहीं देखा गया जैसा मणिपुर में बन चुका है। इसकी क्रूर परिणिति कई भयावह घटनाओं के तौर पर सामने आई है, दो महिलाओं की नग्नावस्था में परेड और उनके साथ अनाचार एक उदाहरण है, ऐसे मामले की निंदा अंतरराष्ट्रीय मंचों से भी हुई। फिर भी मोदी सरकार का दुस्साहस ही है कि वह दावा कर रही है कि बैठक के बाद हाथ मिलाकर सब ठीक करने का आश्वासन ले लिया गया है।

श्रीमान मोदी का एक और दुस्साहस यह है कि अब तक मणिपुर तो वे नहीं गए, दिल्ली में हुई बैठक में शामिल होना भी उन्होंने जरूरी नहीं समझा। यहां तक कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी इस बैठक में शामिल नहीं हुए। जबकि बैठक गृहमंत्रालय ने ही बुलाई थी। एक खबर में बताया गया कि श्री शाह इस बैठक की मिनट टू मिनट जानकारी ले रहे थे। जब इतनी ही फिक्र मणिपुर की थी और पल-पल की जानकारी लेने का वक्त था, तो दस-पंद्रह मिनट की उपस्थिति दर्ज कराने में क्या हर्ज था। क्या हरियाणा में विधायक दल की बैठक में नायब सिंह सैनी का निर्विरोध चुने जाने का मुद्दा मणिपुर के मुद्दे से अधिक गंभीर था।

भाजपा को याद रखना चाहिए कि मणिपुर में भी भाजपा की ही सरकार है, उसकी भाषा में कहें तो डबल इंजन की सरकार है। फिर भी मणिपुर के लिए इतनी उपेक्षा का भाव क्यों रहा, यह एक अनसुलझा सवाल है। हालांकि इस बैठक के बाद यह सवाल भी उठ रहे हैं कि कहीं इसका असल मकसद राज्य में शांति बहाली से अधिक सत्ता को बचाए रखना तो नहीं है। क्योंकि बैठक में कुकी समुदाय के विधायकों ने सीधे सवाल किये कि जब सरकार एक समुदाय के साथ खड़ी है, तो दूसरे समुदायों को सुरक्षा और न्याय कैसे मिलेगा। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के खिलाफ अविश्वास इस बैठक में साफ-साफ नजर आया और फिर से उनकी बर्खास्तगी की मांग की गई। जबकि केंद्र की सत्ता एन बीरेन सिंह और उनकी सरकार को बचाने के लिए प्रयासरत दिख रही है।

दरअसल मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास बहुमत के आंकड़े से एक ज्यादा 32 सीटें हैं और एनडीए के सहयोगी दलों को मिलाकर कुल 37 विधायक हैं। लेकिन भाजपा की टिकट पर जीते 7 कूकी विधायकों ने सरकार से खुद को अलग कर लिया है। इस तरह भाजपा अल्पमत की तरफ बढ़ चुकी है। इसके अलावा एनडीए में भी अब फूट पड़ रही है। भाजपा की सहयोगी कुकी पीपुल्स अलायंस के दोनों विधायकों ने बीरेन सिंह सरकार से पिछले अगस्त में ही समर्थन वापस ले लिया था। वहीं मणिपुर में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की बीते दिनों हुई राज्य कार्यकारिणी की बैठक में इसके 8 विधायकों में से कोई भी शामिल नहीं हुआ।

मेघालय में तो एनपीपी के साथ भाजपा सत्ता में है, लेकिन मणिपुर में एनपीपी विधायक भाजपा से अलग होना चाहते हैं। ऐसे में भाजपा के पास जदयू के 6 विधायकों, नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के 5 और निर्दलीय 3 विधायक ही बचते हैं। इसमें भी एनपीएफ को लेकर संशय दिख रहा है, क्योंकि दिल्ली बैठक में इसके 3 ही विधायक पहुंचे।

तो कुल जमा मणिपुर में भाजपा की सरकार अल्पमत में जाती हुई दिख रही है। दिल्ली की बैठक के जरिए इस अल्पमत को बहुमत में बदलने का रास्ता शायद तलाशा जा रहा था। क्योंकि मणिपुर की फिक्र वाकई होती तो फिर प्रधानमंत्री कम से कम बैठक में आने की जहमत तो उठा ही लेते। आखिर 140 करोड़ लोगों के उनके परिवार में मणिपुर की जनता भी शुमार होती है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it