देर से हुआ बीरेन सिंह का इस्तीफा
पिछले पौने दो सालों से हिंसाग्रस्त राज्य मणिपुर की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने रविवार को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को अपना इस्तीफा सौंप दिया

पिछले पौने दो सालों से हिंसाग्रस्त राज्य मणिपुर की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने रविवार को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके पहले उन्होंने दिल्ली में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। राजभवन में बीरेन सिंह के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ए. शारदा, पूर्वोत्तर राज्यों के प्रभारी सांसद संबित पात्रा तथा 14 पार्टी विधायक भी उपस्थित थे। कभी मणिपुर से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में मशहूर हुए बीरेन सिंह 2017 में पहली बार तथा 2022 में दूसरी बार भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री बने थे।
मार्च 2023 से राज्य में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जारी हिंसक संघर्ष में वे स्थिति को सम्हालने में नाकाम रहे हैं। उनकी असफलता की आंच केन्द्र सरकार और समग्र भाजपा तक पहुंची। खासकर इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बहुत आलोचना हुई थी, जिन्होंने पिछले पौने दो सालों में एक बार भी मणिपुर का दौरा नहीं किया, न ही इस बीच मुख्यमंत्री को हटाने की कोई पहल की। बल्कि कुकी और मैतेई के संघर्ष की आड़ में भाजपा हिन्दू वोटों का धु्रवीकरण करने की कोशिश में लगी रही, वह भी पार्टी की राज्य व केन्द्रीय इकाइयों के मौन रखने का कारण बना।
यह त्यागपत्र इतनी देर से हुआ है कि उसके बारे में यह कहना व्यर्थ होगा कि राज्य में जारी हिंसक झड़पों से व्यथित होकर या नैतिकता के आधार पर दिया गया है। यदि हिंसा से दुखी होकर बीरेन सिंह को पद छोड़ना होता तो वे 2023 के मध्य में ही छोड़ देते जब मार्च में कुकियों के साथ हुए दुर्व्यवहार एवं उत्पीड़न के वीडियो सामने आये थे। इनमें दो कुकी युवतियों को निर्वस्त्र कर उनकी परेड कराई गई थी। इसे लेकर मणिपुर सरकार ही नहीं वरन केन्द्र सरकार ने जो चुप्पी साधी थी उसके कारण मोदी व भाजपा सरकार की जबर्दस्त आलोचना होती रही। मोदी के बारे में तो कहा ही जाता रहा कि वे 'मणिपुर का 'म' भी नहीं बोलते।' इसे लेकर दुनिया भर में भारत की निंदा हुई थी। यहां तक कि मोदी जब अमेरिका के दौरे पर गये थे तो उनसे इस बाबत सवाल किया गया था।
संसद में भी कभी सरकार ने इस विषय पर कोई चर्चा नहीं होने दी। जब पुराने से नये संसद भवन में कामकाज प्रारम्भ हुआ था तब कहीं मोदीजी ने सदन के बाहर इस पर बामुश्किल डेढ़-दो मिनटों का बयान देकर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी लेकिन इस पर अधिकृत बयान कभी संसद के भीतर एक जिम्मेदार लहज़े में नहीं दिया था और न ही किसी भी सदन में गम्भीर बहस होने दी थी। मोदी को इस पर थोड़े लफ़्ज इसलिये जाया करने पड़े थे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर कहा था कि 'इस हिंसा को रोकने के लिये यदि सरकारों (राज्य व केन्द्र) द्वारा कुछ नहीं किया जाता तो उसे ही कुछ करना पड़ेगा।' वैसे इसे लेकर जब मणिपुर में जन प्रदर्शन (कुकी व मैतेई दोनों पक्षों के) जारी थे, तब ज़रूर एक बार बीरेन सिंह ने अपना इस्तीफा जनता को सौंप दिया था जिसे रोती हुई एक महिला ने फाड़ दिया था। साफ था कि वह एक सुनियोजित प्रदर्शन था जिसके जरिये वे यह संदेश देना चाहते थे कि मुख्यमंत्री का पद तो वे छोड़ना चाहते हैं लेकिन जनता का उन पर ऐसा भरोसा है कि वह उन्हें नहीं छोड़ना चाहती। मणिपुर की स्थिति को लेकर वे किस कदर संजीदा व जिम्मेदाराना थे उसका उदाहरण इसी से लगाया जा सकता है कि एक बार जब उनसे एक हिंसक वारदात को लेकर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा था कि 'ऐसी अनेक घटनाएं होती रहती हैं। सभी पर कार्रवाई नहीं की जा सकती।' हालांकि पिछले साल के अंत में उन्होंने राज्य की जनता से इस हिंसा व जान-माल के नुकसान के लिये माफी मांगते हुए उम्मीद जताई थी कि साल 2025 शांतिपूर्ण रहेगा।
विपक्ष ने तो इस दौरान अनेक बार पूछा कि मोदीजी मणिपुर कब जा रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री कभी भी नहीं गये। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने तक यह टिप्पणी की थी कि पूरी केन्द्र सरकार को मणिपुर जाकर बैठ जाना चाहिये तथा वहां की स्थिति को सुधारना चाहिये। केन्द्र सरकार व भाजपा के लिये इससे बड़ा निर्देश नहीं हो सकता था पर इस दौरान केवल अमित शाह कुछ दिनों के लिये वहां गये थे। दूसरी तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 14 जनवरी, 2024 को अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत मणिपुर से ही की थी। इसका असर वहां हुआ था लेकिन केन्द्र सरकार पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा तथा वह पहली की तरह मणिपुर को लेकर उदासीन रही।
सवाल यह उठ सकता है कि इतने लम्बे समय से चली आ रही हिंसा के बाद ऐसा क्या हुआ कि मुख्यमंत्री से इस्तीफा ले लिया गया अथवा उन्होंने दे दिया। इसका कारण यह बताया जाता है कि सोमवार से निर्धारित मणिपुर विधानसभा के सत्र में, जो रद्द कर दिया गया, कांग्रेस द्वारा बीरेन सिंह के प्रति अविश्वास व्यक्त करने के लिये प्रस्ताव लाया जाना था। आशंका थी कि प्रस्ताव को कुछ भाजपा विधायक समर्थन दे सकते हैं, तो खुद को फज़ीहत से एवं पार्टी को टूटने से बचाने के लिये ऐसा किया गया है। अभी प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस और अमेरिका के दौरे पर निकल गए हैं। अमेरिका में उनसे मणिपुर के मसले पर मानवाधिकार को लेकर पहले भी सवाल हो चुके हैं, फिर से वैसी ही नौबत न आए, संभवत: इस वजह से भी अभी बीरेन सिंह का इस्तीफा लिया गया है। इसके पहले 19 विधायकों ने बीरेन के इस्तीफे की मांग की थी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने उस ऑडियो की फोरेंसिक जांच के भी आदेश दिए हैं जिसमें बीरेन सिंह द्वारा हिंसा भड़काने की पुष्टि होती है।
बहरहाल, मणिपुर में इस इस्तीफे का क्या राजनैतिक असर होता है, यह देखना होगा, लेकिन भाजपा ने फैसला लेने में बहुत देर कर दी, इसमें कोई दो राय नहीं है।


