बिहार : तेजस्वी के तीखे तेवर और ‘वक्फ़’ पर ज़ोर पकड़ती चुनावी सियासत
वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देने के अपने चुनावी ऐलान के बाद बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव ने उबाल ला दिया है

- अतुल सिन्हा
वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंक देने के अपने चुनावी ऐलान के बाद बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव ने उबाल ला दिया है। 29 जून की रैली के बाद इंडिया गठबंधन की ताकत और एकजुटता देखकर भारतीय जनता पार्टी की बौखलाहट बढ़ी हुई है और इसी का नतीजा है कि उसने समाजवादी बनाम नमाज़वादी का नारा उछाला है। यानी वह अब ये साबित करने में लगी है कि असल समाजवादी तो वही है।
दरअसल बिहार में इस बार भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनाने का सपना देख रही भारतीय जनता पार्टी इस बात से भी आशंकित है कि अगर नीतीश कुमार ने ऐन वक्त पर पलटी मार दी तो क्या होगा। उनकी सेहत को लेकर सवाल पहले से ही उठ रहे हैं और पार्टी में उनके उत्तराधिकारी को लेकर भी चर्चाएं कुछ महीनों से तेज़ हैं। पार्टी के उनके करीबी लोग भी दबी जुबान से ये कहने लगे हैं कि नीतीश कुमार पर उम्र का असर होने लगा है।
हालांकि नीतीश कोई इतने बूढ़े नहीं हैं, महज 74 साल के हैं। यानी प्रधानमंत्री मोदी से केवल 6 महीने छोटे। बेशक उन्हें कुछ बीमारियां भी हैं लेकिन राजनीति का नशा कुछ ऐसा होता है कि आप उसमें भी ऊर्जावान बने रहते हैं, खासकर तब जब आप सत्ता में हों। मोदी की ऊर्जा दुनिया देख ही रही है, ऐसे में नीतीश कुमार को भी लगता है कि वो एकदम फिट हैं। 75 साल के होने जा रहे मोदी पर भी ये सवाल तो उठते ही हैं कि क्या वो अपनी पार्टी के लिए बनाई गई रिटायरमेंट की उम्र सीमा के बाद पद छोड़ देंगे, लेकिन सत्ता में बने रहने की उनकी महत्वाकांक्षा शायद ही उन्हें ऐसा करने देगी। यही कहानी नीतीश पर भी लागू होती है। अपनी राजनीतिक चतुराई और पाला बदलने के खेल में माहिर रहने की वजह से ही नीतीश इतने लंबे समय तक बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। बिहार में भाजपा की कमज़ोर हालत का उन्हें भी अंदाज़ा है। उन्हें भी पता है कि बिहार की राजनीति में हिन्दू-मुस्लिम या मंदिर मस्जिद जैसे मुद्दे नहीं चलते। वक्फ कानून के असर का भी उन्हें पता है और बिहार के चुनाव में तेजस्वी के बढ़ते जनाधार को भी वो समझते हैं।
बावजूद इसके नीतीश कुमार कभी मोदी के पैर छूकर, तो कभी उल्टे सीधे अमर्यादित बयान देकर ये संकेत दे चुके हैं कि वह किसी न किसी गंभीर समस्या के शिकार हैं। प्रशांत किशोर भी ये दावा कर चुके हैं। और पार्टी के उनके नेता भी कुछ ऐसा ही बताते हैं। ऐसे में जेडीयू के पटना दफ्तर में आज भी ऐसे पोस्टर देखे जा सकते हैं जिनपर लिखा है '2025 से 30, फिर से नीतीश'।
हालांकि पटना की रैली इंडिया गठबंधन ने नहीं बल्कि इमारत-ए-शरीयत के बैनर तले हुई। इसका नारा था – वक्फ बचाओ, संविधान बचाओ कांफ्रेंस। इससे पहले इस तरह की रैली झारखंड, ओड़िसा और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में भी हो चुकी है, लेकिन पटना में इसका व्यापक असर दिखा औऱ जिसकी धमक दिल्ली तक सुनाई दी। जाहिर है इसके पीछे इंडिया गठबंधन के लगभग सभी नेताओं का मंच पर होना और बिहार चुनाव करीब आते ही तेजस्वी यादव का आम लोगों में लोकप्रियता का और बढ़ना बताया जा रहा है। लेकिन इस रैली ने भाजपा की नींद तो उड़ा ही दी है। गौरतलब है कि अप्रैल में संसद द्वारा पारित इस कानून की संवैधानिक वैधता को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
रैली में विपक्ष के कई प्रमुख नेताओं ने काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज कराया। बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य, राज्यसभा सदस्य इमरान प्रतापगढ़ी और लोकसभा सदस्य पप्पू यादव के अलावा इंडिया गठबंधन के अन्य सांसद और विधायक भी मौजूद रहे। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का समर्थन संदेश भी पढा।
रैली में तेजस्वी ने कहा, "आपकी जमीन छीनी जा रही है और अब वे अल्पसंख्यक समुदायों के गरीबों, पिछड़ों, दलितों और अति पिछड़ों के मताधिकार को भी छीनने की कोशिश कर रहे हैं. जो लोग आज सत्ता में हैं, वे जल्दी ही जाने वाले हैं. जब गरीबों की सरकार सत्ता में आएगी, तो बिहार इस कानून को कूड़ेदान में फेंक देगा."
बेशक तेजस्वी के तेवर तीखे हैं और चुनाव में अभी कुछ महीने बाकी हैं। हवा का रुख बदलने लगा है और राष्ट्रीय राजनीति के अलावा हाल की कुछ घटनाओं में मोदी सरकार की प्रतिष्ठा धूमिल होने से भी भाजपा में बौखलाहट नज़र आ रही है। ऐसे में बेशक बिहार की राजनीति आने वाले दिनों में और दिलचस्प मोड़ पर जाने वाली है।


