बिहार विधानसभा चुनाव : कांग्रेस पर नज़रें
वैसे तो बिहार विधानसभा के चुनाव होने में अभी कुछ महीनों का वक्त है, पर अचानक कांग्रेस की सक्रियता ने लोगों का ध्यान इसकी ओर खींच लिया है

वैसे तो बिहार विधानसभा के चुनाव होने में अभी कुछ महीनों का वक्त है, पर अचानक कांग्रेस की सक्रियता ने लोगों का ध्यान इसकी ओर खींच लिया है। प्रतिपक्षी गठबन्धन 'इंडिया' के गठन के समय से ही राहुल गांधी इस राज्य में कई बार आ चुके हैं तथा राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं- लालूप्रसाद यादव व उनके बेटे तेजस्वी यादव (पूर्व उप मुख्यमंत्री) के साथ उनके बढ़िया तालमेल के चलते यह तो माना ही जा रहा है कि कांग्रेस-आरजेडी मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड के भी मिलकर लड़ने की सम्भावना अब तक तो बनी हुई है, लेकिन देखना यह भी होगा कि दोनों दलों के द्वारा वाकई कितने संगठित तरीके से इंडिया का मुकाबला किया जायेगा क्योंकि एक तरफ़ तो भाजपा के बीच यह भावना उभर आई है कि (बकौल विजय कुमार सिन्हा, उप मुख्यमंत्री व भाजपा नेता) 'पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को तभी सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी जब बिहार में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनती है।' दूसरी ओर, साथ मिलकर राज्य की सरकार चलाते हुए भी नीतीश कुमार 'प्रगति यात्रा' के नाम से राज्यव्यापी दौरा कर रहे हैं जिसमें भाजपा शामिल नहीं है।
कुछ पिछले और कुछ भावी सियासी घटनाक्रमों के बीच बनने वाले किन सम्भावित समीकरणों के तहत चुनाव लड़ा जायेगा, यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि कांग्रेस यह चुनाव पूरे दमखम से लड़ने की तैयारियों में अभी से जुट गयी है। इस चुनाव की पृष्ठभूमि को समझने के लिये पहले की कतिपय परिघटनाओं को याद कर लेना उपयोगी होगा ताकि इस बात का अंदाजा लगाया जा सके कि आगामी चुनावी अखाड़ा किस तरह का तैयार हो रहा है। याद हो कि भाजपा और जेडीयू का लम्बा साथ तो रहा है परन्तु इसी विधानसभा के कार्यकाल में नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़कर आरजेडी से हाथ मिलाया व लगभग 18 माह सरकार चलाई थी। बाद में अचानक नीतीश ने फिर से पाला बदला और वापस भाजपा के साथ सरकार बना ली।
मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हीं के पास रही। इस बीच उन्होंने इंडिया गठबन्धन बनाने में महत्वपूर्ण निभाई थी लेकिन उनके इस तरह पलटने से उनकी छवि को बड़ा नुकसान पहुंचा था। फिर भी एनडीए के साथ 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ते हुए उन्होंने 12 सीटें जीतकर बताया कि उन्हें आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता। केन्द्र की सरकार जिन दो दलों पर टिकी हुई है उनमें आंध्रप्रदेश की तेलुगु देसम पार्टी (16 सदस्य) और जेडीयू ही हैं। स्वाभाविक है कि भाजपा जेडीयू को दिखावे के तौर पर तो महत्व देती रहेगी लेकिन पूरी कोशिश करेगी कि वह विधानसभा में उसे कमजोर कर खुद की ताकत बढ़ाये। अब देखना यह होगा कि इसके लिये वह कौन से पैंतरे आजमाती है।
उधर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हाल ही में बिहार के दो दौरे कर चुके हैं। अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 22 फरवरी को आएंगे। प्रदेश के नये बने प्रभारी कृष्णा अल्लावरु 20 फरवरी को पहुंचेंगे और तीन दिनों तक वहां रहेंगे। माना जाता है कि यहां कांग्रेस सामाजिक न्याय के अपने मुद्दे को पुनर्जाग्रत करेगी क्योंकि बिहार इसी विमर्श की जमीन रही है। कभी नीतीश कुमार को पिछड़ी जातियों व दलितों का संरक्षक माना जाता था लेकिन भाजपा के साथ जाने तथा अनेक महत्वपूर्ण अवसरों व सम्बन्धित विषयों पर उनकी चुप्पी ने उनसे यह ताज छीन लिया है। अलबत्ता, लालूप्रसाद यादव की विरासत को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने के कारण तेजस्वी की इस मामले में प्रतिष्ठा बनी हुई है। फिर, अपने कार्यकाल में लाखों नौकरियां देने के कारण युवाओं एवं लाभान्वित होने वाले वर्गों में वे लोकप्रिय बने हुए हैं। तेजस्वी कांग्रेस के साथ हैं।
खरगे अपने प्रस्तावित दौरे में बक्सर जायेंगे जहां संगठन की ओर से 'जय बापू जय भीम जय संविधान' के नाम से एक बड़ी सभा की जायेगी। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस इसके जरिये दलित-ओबीसी वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करेगी। साथ ही, संगठन को यहां नये सिरे से मजबूत करने की रूपरेखा भी बनेगी। माना जाता है कि कांग्रेस यहां कम से कम 70 सीटों पर दावा करेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में वह 9 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पूर्णिया से निर्दलीय लड़े पप्पू यादव के अलावा उसे 3 सीटें मिली हैं जबकि आरजेडी कुल 22 सीटों पर चुनाव लड़ी थी पर उसे 4 सीटें ही मिल सकी थीं। इस तरह देखें तो कांग्रेस का स्ट्राइक रेट उससे बेहतर है। इस कारण उसे लगता है कि अपनी जमीन को यहां मजबूत करना तथा अधिकतम सीटें हासिल करना ज़रूरी है ताकि वह आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना सके। यहां इंडिया का एक और पार्टनर दल सीपीएम (एमएल) (एल) भी है जिसके पास लोकसभा की दो और राज्य विधानसभा में 11 सीटें हैं। वह भी इंडिया के साथ है।
बिहार का चुनाव अनेक मायनों में बेहद अहमियत रखता है क्योंकि जिस तरीके से यहां नीतीश कुमार ने इंडिया को धोखा दिया, माना जाता है कि उनके कारण ही लोकसभा में येन केन प्रकारेण भाजपा अपनी सरकार बनाने तथा नरेन्द्र मोदी पीएम बनने में कामयाब हो सके। कई बार इस आशय की खबरें उठती रही हैं कि नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव के पहले फिर से खेमा बदल सकते हैं। हालांकि एक बड़ा वर्ग इन अनुमानों को सिरे से खारिज करता है क्योंकि उसका मानना है कि नीतीश बाबू इस तरह का फैसला कम से कम विधानसभा चुनाव तक तो लेने से रहे। बहरहाल, मुकाबला दिलचस्प रहेगा।


