जनसंख्या पर भाजपायी विमर्श को बढ़ाते भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने लोगों से दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने की गुजारिश की है और उसे जनसंख्या विज्ञान के 2.1 के फार्मूले से जोड़कर चाहे सियासी अर्थों को छिपाने की कोशिश की हो

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने लोगों से दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने की गुजारिश की है और उसे जनसंख्या विज्ञान के 2.1 के फार्मूले से जोड़कर चाहे सियासी अर्थों को छिपाने की कोशिश की हो, लेकिन सच्चाई यह है कि इस बयान के पीछे उनके संगठन के वे ही पुराने गहन राजनैतिक मकसद मौजूद हैं जिसके लिये वह जानी जाती है- धु्रवीकरण। उनका बयान ऊपरी खुले तौर पर चाहे संघ की राजनीतिक विंग भारतीय जनता पार्टी द्वारा अब तक की सोच के विपरीत दिखाई देता हो, जो देश के सामने अक्सर बढ़ती आबादी को लेकर चिंता जताती आई है, परन्तु भागवत के बयान को भाजपा के लिये एक दिशानिर्देश की तरह भी देखा जा रहा है। बहुत सम्भव है कि केन्द्र सरकार भागवत के बयान के अनुकूल कोई ऐसी जनसंख्या नीति लेकर आये जिससे हिन्दुओं की आबादी को बढ़ाया जा सके। संघ और भाजपा जनसंख्या सम्बन्धी वास्तविक तथ्यों व आंकड़ों को दरकिनार कर यह प्रचारित करती आई है कि देश में हिन्दुओं की आबादी घट रही है और मुस्लिमों की बढ़ रही है। देश में इस्लामोफोबिया बढ़ाने के लिये जनसंख्या को गलत तरीके से पेश करना संघ-भाजपा की पुरानी नीति है। अनेक महत्वपूर्ण मौकों पर भागवत हों या इन दो संगठनों से जुड़े लोग, इसका डर दिखाते रहे हैं।
नागपुर में एक संगठन के सम्मेलन में दिये भाषण में भागवत ने कहा कि- '2.1 की कम प्रजनन दर वाला समाज अपने आप नष्ट हो जाता है।' उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 'इससे कम जनसंख्या वाला समाज तब भी नष्ट हो जाता है जब कोई संकट न हो।' बिना संकट के भी ऐसे समाज के नष्ट होने की बात उन्होंने सम्भवत: इसलिये कही होगी ताकि लोग इस बात को तार्किक व वैज्ञानिक आधारों वाला कोई निष्कर्ष समझें और उन पर यह तोहमत न लगे कि वे लोगों को डरा रहे हैं या हिन्दू-मुस्लिम कर रहे हैं। उन्होंने कई भाषाओं और समाज के नष्ट होने की बात करते हुए लोगों को चेताया कि प्रजनन दर 2.1 से कम नहीं होनी चाहिये। इस वृद्धि दर को बनाये रखने के लिये लोगों को दो से ज्यादा (यानी तीन) बच्चे पैदा करने चाहिये। उन्होंने याद दिलाया कि देश में 1998 और 2002 में जो जनसंख्या सम्बन्धी नीतियां तय की गयी थीं उनमें भी 2.1 की दर को बनाये रखने की बात कही गयी थी। हालांकि उन्होंने अमूमन कम याददाश्त वाली जनता के सामने स्पष्ट नहीं किया कि ये दोनों नीतियां भारतीय जनता पार्टी प्रणीत नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस शासित कार्यकाल में लाई गयी थीं। चूंकि उनमें अनेक ऐसे राजनीतिक दलों का समावेश था जो इस मामले में दूसरी राय रखते थे, यह नीति कभी भी प्रभावशाली ढंग से लागू नहीं हो पाई थी।
अटल बिहारी वाजपेयी वाली यह सरकार 2004 में जाती रही तथा उसके बाद आई यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार (पीएम डॉ. मनमोहन सिंह- दो कार्यकाल) ने इस अनर्गल विषय को तूल देने या बढ़ती आबादी को लेकर रोना-धोना करने की बजाय अधिकतम आबादी को काम देने की नीति पर कार्य किया। 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने भी इस पर कोई काम करने की बजाय सियासी मुद्दा बनाकर समाज के भीतर उसे जिन्दा रखा। अपने पहले कार्यकाल (2014-19) के दौरान मोदी आबादी को लेकर एक सकारात्मक रवैया अख्तियार करते नज़र आये।
उन्होंने अधिक जनसंख्या को, खासकर युवाओं की बहुलता के कारण भारत के लिये एक सौगात बताया। यह एक तरह से चीन की तरह की रणनीति अपनाने जैसा था जिसने बड़ी आबादी को अपनी ताकत बना दिया है। चूंकि पहले-पहल के मोदी भारत को चीन और अमेरिका के मुकाबले में लाने के दावे करते रहे, इसलिये कुछ समय तक तो उनकी पार्टी ने भी देश की आबादी बढ़ने का दुखड़ा सुनाना बन्द कर दिया जो इसका ठीकरा अक्सर मुस्लिम समुदाय पर फोड़ते थे। यह कारगर साबित इसलिये नहीं हुआ क्योंकि भाजपा और संघ के लोग हमेशा से जो बात सुनते आये थे और जिस पर भरोसा करते रहे, मोदी उसके विपरीत बोल रहे थे। साथ ही, जैसे-जैसे मोदी की नीतियां दगा देने लगीं, मोदी, भाजपा और संघ को अल्पसंख्यकों के विरूद्ध बहुसंख्यकों की लामबन्दी की ज़रूरत अधिक पड़ने लगी। दशक भर से कब्रिस्तान बनाम श्मशान, 80 व 20, कपड़ों से पहचान, बंटेंगे तो कटेंगे, एक हैं तो सेफ हैं जैसे नारे भाजपा के धु्रवीकरण की नीति के उच्चार हैं। सवाल तो यह है कि अब संघप्रमुख ही जब हिन्दू समाज को कई बच्चे वाले बनाने पर तुले हैं तो मोदी के उस बयान का क्या होगा जो यह कहकर लोगों को डराते आये हैं कि 'यदि कांग्रेस आई तो महिलाओं के मंगलसूत्र, सोना और भैंसें छीनकर कई-कई बच्चे वालों को दे दी जायेंगीं?'
दरअसल भागवत के जनसंख्या सम्बन्धी बयान को संघ-भाजपा के उसी विमर्श को आगे बढ़ाने की नीति एवं प्रयासों की श्रृंखला की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिये। वे जब एक समाज के नष्ट होने की बात करते हैं तो वह समस्त भारतीय समाज की नहीं वरन केवल बहुसंख्यक समाज की बात कर रहे हैं। भागवत अभी भी उस अवधारणा से मुक्त नहीं हो पाये हैं जिसके अंतर्गत यह माना जाता है कि देश में आबादी बढ़ाने के दोषी केवल अल्पसंख्यक हैं जिससे एक दिन ऐसा आयेगा कि मुल्क पर उनका कब्जा हो जायेगा। जनसंख्या बाबत इस बयान को देते हुए उन्होंने चाहे इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का दिखावा किया हो, असल उद्देश्य भाजपा के राजनीतिक विमर्श को बढ़ावा देना ही है।


