जोहो से फायदा या उलझन
इस साल लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वदेशी अपनाने पर जोर दिया

इस साल लाल किले से भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वदेशी अपनाने पर जोर दिया। इसके बाद कई और मंचों से उन्होंने यही आग्रह किया कि हमें आत्मनिर्भर होना है तो विदेशी वस्तुओं का त्याग करना पड़ेगा। हालांकि यह त्याग केवल वस्तुओं तक सीमित नहीं रहा, अब तकनीकी में भी स्वदेशी पर जोर दिया जा रहा है। हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने जानकारी दी कि उनका ईमेल अब जोहो पर शिफ्ट हो गया है। उनके अलावा कई और केन्द्रीय मंत्री और केन्द्रीय एजेंसियों के करीब 12 लाख कर्मचारियों के ईमेल सरकारी एनआईसी. इन से हटाकर प्राइवेट कंपनी ज़ोहो पर शिफ्ट हो गये। इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय भी शामिल है। डोमेन तो एनआईसी.इन या जीओवी.इन ही है, लेकिन स्टोरेज, एक्सेस और प्रोसेसिंग सब ज़ोहो के जिम्मे रहेगा। हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने 3 अक्टूबर 2025 को आदेश जारी किया कि जोहो सूट का इस्तेमाल करो।
तकनीकी में स्वदेशी का इस्तेमाल खुशी की बात है। दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस दिशा में अनुकरणीय काम किया है। और उनसे भी पहले 1976 में, जिस साल को केवल आपातकाल के लिए याद किया जाता है, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) की स्थापना की थी, जो डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस का आधार बनी। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन एनआईसी भारत सरकार का प्रमुख आई टी संगठन है। एनआईसी ने डिजिटल क्रांति को संभव बनाया, लेकिन क्या अब इसे भी स्वदेशी के नाम पर तिलांजलि दी जा रही है, जबकि यह सच्चा स्वदेशी है। क्योंकि यह सरकारी उपक्रम है। जबकि ज़ोहो एक निजी उपक्रम है, गूगल की तरह ही।
अगर सरकार को लगता है कि गूगल पर सब कुछ उपलब्ध होने से निजता का खतरा रहेगा, तो ज़ोहो के साथ भी वही खतरा बरकरार रहेगा। बता दें कि 2022 में हैकर्स ने एम्स के 5 सर्वर और 1.3 टीबी से ज्यादा डेटा पर कब्जा कर लिया था। इससे सरकार को काफी नुकसान हुआ। तभी यह बात चली कि स्वदेशी संचार तंत्र होता तो ऐसा नहीं होता। इसके बाद स्वदेशी संचार तंत्र की तलाश में 2023 में केंद्रीय सूचना मंत्रालय ने सुरक्षित मेल सेवाएं देने के लिए टेंडर निकाले। टेंडर ज़ोहो मेल ने जीता। नेशनल इंफॉर्मेटिक सेंटर ने 20 गोपनीय सुरक्षा मापदंडों पर ज़ोहो मेल का ऑडिट किया। भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल जैसी सुरक्षा एजेंसियों ने ज़ोहो की स्वतंत्र सुरक्षा जांच की। इसके बाद ज़ोहो पर भरोसा किया गया।
2023 में डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन के साथ 7 साल के अनुबंध बाद एनआईसी के डोमेन से पीएमओ समेत सभी सरकारी ईमेल ज़ोहो पर चले गए। इसका मतलब है कि सरकारी फाइल्स और दस्तावेजों तक अब ज़ोहो की पहुंच है। सरकार स्वदेशी की बात तो करती है लेकिन सॉफ्टवेयर की निजी कंपनी में स्वदेशी और परदेशी के बीच की जो महीन रेखा है, वो कब पार हो जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।
वैसे 1996 में बने ज़ोहो कॉर्पोरेशन के कर्ताधर्ता श्रीधर वेम्बू की सरकार से नजदीकी छिपी हुई नहीं है। वे काफी हद तक संघ की विचारधारा के करीब हैं, हालांकि वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं। कुछ समय पहले नंगे पैर चलने के स्वास्थ्य लाभ बताने वाली उनकी एक पोस्ट पर आलोचना हुई तो उन्होंने कहा था कि उन्हें संघी कहकर भी आलोचना की जाती है। ध्यान देने वाली बात ये है कि 22 नवंबर 2024 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 70वें राष्ट्रीय अधिवेशन में वेम्बू मुख्य अतिथि थे जो गोरखपुर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी में आयोजित था। वे इससे पहले चेन्नई में एबीवीपी संगमम में भी शामिल हुए थे। फरवरी 2019 में वेम्बू चेन्नई के आरएसएस आयोजन में मुख्य अतिथि थे। मोदी सरकार ने 2021 में वेम्बू को पद्मश्री से सम्मानित किया था। इसी साल वे अजीत डोभाल के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में सदस्य बने और 2024 में यूजीसी के सदस्य बने। यह अघोषित तौर पर समझी हुई बात है कि मोदी सरकार में इस तरह की नियुक्तियां या सम्मान किन लोगों के हिस्से आता है। इसलिए ज़ोहो पर सरकार की इतनी मेहरबानी पर अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ज़ोहो की आड़ में संघ की पूरी पहुंच देश से जुड़े संवेदनशील डेटा तक बना दी गई है।
बता दें कि हाल ही में जोहो ने व्हाट्सऐप जैसा अरात्ती मैसेंजर लॉन्च किया है, तमिल में अरात्ती का मतलब बातचीत होता है। पहल अच्छी है, लेकिन निजता का सवाल उलझा हुआ है। सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी थी कि सिंगल टिक यानी संदेश भेजना, डबल टिक यानी मैसेज पहुंचना और अमित शाह की तस्वीर यानी मैसेज का पढ़ा जाना। याद रहे कि व्हॉट्सऐप पर मैसेज पढ़ने पर नीले टिक का प्रावधान है, लेकिन अरात्ती पर अमित शाह की तस्वीर का तंज कसकर आगाह किया गया कि आपके सारे संदेश यहां पढ़े जाएंगे।
ज़ोहो की काबिलियत और क्षमता पर तकनीकी जानकार ही बेहतर बता सकेंगे कि क्या गूगल का मुकाबला वह कर सकता है या नहीं, लेकिन यहां काबिलियत से भी गंभीर सवाल नीयत का उठता है। क्योंकि मोदी सरकार पर अक्सर आरोप लगते हैं कि सरकार की आलोचना या नरेन्द्र मोदी पर की गई कोई भी टिप्पणी सीधे देश विरोध से जोड़ दी जाती है। संसद में विपक्ष के माइक बंद करने के आरोप लगते हैं और बाहर मीडिया को जेब में रखने के। ऐसे में जिस कंपनी का कर्ता धर्ता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में हो, क्या वह अपने उपभोक्ताओं से ज्यादा सरकार का ख्याल नहीं रखेगी। और जहां तक स्वदेशी की बात है तो कुछ साल पहले ट्विटर के मुकाबले कू को विकल्प बनाने की कोशिश की गयी थी, लेकिन दक्षिणपंथियों का उसकी तरफ रुझान देखकर बहुत से लोग वहां नहीं गए। कू की कूक अब सुनाई नहीं देती। ज़ोहो का भविष्य क्या होगा या ज़ोहो के साथ देश का भविष्य क्या होगा, यह एक नया सवाल खड़ा हो गया है।


