बांग्लादेश की स्थिरता भारत के लिए जरूरी
पिछले साल शेख हसीना सरकार के गिरने और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंध अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं

पिछले साल शेख हसीना सरकार के गिरने और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंध अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। कड़वाहट और अविश्वास इतना अधिक बढ़ गया है कि दोनों देशों के बीच फिलहाल वीज़ा सेवाओं पर अस्थायी रोक लगा दी गई है। इस आग में घी डालने का काम दोनों देशों में बैठे कट्टरपंथी नेता कर रहे हैं। पड़ोस में कट्टर दुश्मन की तरह एक पाकिस्तान हमारे लिए मानो काफी नहीं था कि अब बांग्लादेश के साथ संबंध भी उसी नफरत की राह पर बढ़ रहे हैं। ऐसे में 1971 में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की भारत को पस्त होते और चौतरफा घिरे देखने की जो हसरत पूरी नहीं हुई थी, उसे अब पूरी करने की कोशिशें हो रही हैं।
सोमवार को भारत में अमेरिका के राजदूत और दक्षिण और मध्य एशिया के लिए विशेष दूत सर्जियो गोर से मोहम्मद युनूस की फोन पर करीब आधे घंटे तक बात हुई। जिसमें यूनुस ने भारत में शरणागत शेख हसीना पर नए आऱोप लगाए कि हसीना के समर्थक कथित तौर पर चुनावी प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए लाखों डॉलर खर्च कर रहे हैं और उनकी फरार नेता विदेश से हिंसा भड़का रही हैं। बता दें कि शेख हसीना को बांग्लादेश में मृत्युंदड मिला है और वह उनका प्रत्यर्पण चाहता है। लेकिन भारत इसकी अनुमति नहीं दे रहा। वहीं युनूस पर बार-बार आऱोप लग रहे हैं कि वो चुनाव टालना चाहते हैं, लेकिन युनूस ने अमेरिका को बताया कि चुनाव अगले साल 12 फरवरी को समय पर होंगे।
अमेरिकी दूत के साथ चर्चा में शेख हसीना पर चुनाव रोकने का इल्जाम लगाकर शायद इस बात की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है कि उनकी पार्टी अवामी लीग चुनावों से बाहर रहे। ध्यान रहे कि भारत ने हाल ही में कहा है कि वह बांग्लादेश में 'शांतिपूर्ण माहौलÓ में स्वतंत्र, निष्पक्ष, समावेशी और विश्वसनीय चुनावों के पक्ष में है। इसमें समावेशी का मतलब चुनाव प्रक्रिया में हसीना की अवामी लीग को भी शामिल करना है। लेकिन बांग्लादेश सरकार ने अपने बयानों में 'समावेशीÓ शब्द का उल्लेख नहीं किया है। उसने कहा है कि वह सर्वोच्च मानकों वाले चुनाव कराना चाहती है, जिनका पिछले 15 सालों से अभाव रहा है। यानी फिर से शेख हसीना को निशाने पर लिया जा रहा है। वहीं बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा है कि हम यह नहीं चाहते कि पड़ोसी देश हमें यह सलाह दे कि बांग्लादेश में चुनाव कैसे कराए जाने चाहिए।
बांग्लादेश को बेशक अपनी संप्रभुता के लिए बोलने का हक है, लेकिन उसे भू राजनैतिक परिस्थतियों पर भी गौर करना चाहिए। बांग्लादेश की 94 प्रतिशत सीमा भारत से लगती है। एक देश की उथल-पुथल दूसरे को भी प्रभावित करती है, इसलिए 4,000 किलोमीटर की साझा सीमा पर सुरक्षा और शांति दोनों देशों के लिए जरूरी है। बांग्लादेश लगभग चारों तरफ़ से भारत से घिरा हुआ है। सुरक्षा और व्यापार के मामले में वह भारत पर निर्भर है। वहीं बांग्लादेश से भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों में सस्ते और सुलभ संपर्क में मदद मिलती है। पूर्वोत्तर के राज्यों से बाक़ी भारत को जोड़ने में बांग्लादेश की अहम भूमिका है।
बांग्लादेश की राजनैतिक अस्थिरता और कट्टरपंथी ताकतों का दबदबा भारत के लिए ज्यादा चिंता की बात है, क्योंकि इसी बहाने एक तरफ पाकिस्तान और चीन और दूसरी तरफ अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस जैसे पश्चिमी देश इसमें अपने दखल का मौका तलाश रहे हैं।
पिछले हफ्ते ही भारत विरोधी कट्टरपंथी छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद पश्चिमी देशों ने शोक प्रकट किया, लेकिन हिंदू अल्पसंख्यक युवा दीपू दास की मॉब लिंचिंग और नृशंस हत्या पर मौन धारण किया। अभी बेशक संयुक्त राष्ट्र ने इस तरह की हिंसा रोकने का आह्वान किया है, वहीं अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के दो सदस्यों राजा कृष्णमूर्ति और सुहास सुब्रमण्यम ने भी ढाका में अल्पसंख्यक समुदायों पर हमलों को चिंताजनक कहा है। लेकिन बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने तो दीपू दास की लिंचिंग को अल्पसंख्यकों पर हमले के रूप में पेश किए जाने को ही खारिज कर दिया है। इस बीच अकेले रूस ने फिर से भारत का साथ दिया है। बांग्लादेश में रूस के राजदूत अलेक्ज़ेंडर ग्रिगोरियेविच खोज़िन ने कहा है कि रूस दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है, लेकिन उनका मानना है कि यह समझदारी होगी कि ऐसा रास्ता निकाला जाए जिससे तनाव और न बढ़े। बांग्लादेश जितनी जल्दी भारत के साथ तनाव कम करेगा, उतना दोनों देशों और पूरे दक्षिण एशिया के लिए बेहतर होगा। इसके साख ही खोज़िन ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम को याद करते हुए कहा कि 1971 में बांग्लादेश को आज़ादी मुख्य रूप से भारत की मदद से मिली थी। रूस ने भी समर्थन किया था।
रूसी राजदूत का यह बयान भारत के लिए काफी अहम है। क्योंकि इस समय भी पश्चिमी देश बांग्लादेश में बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी), जमात-ए इस्लामी या इंकलाब मंच के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं, जिनका रुख अमूमन भारत विरोधी है। बल्कि उस्मान हादी का इंकलाब मंच तो सीधे-सीधे बांग्लादेश के इस्लामीकरण के पक्ष में है। ऐसे में रुस का फिर से भारत के साथ खड़े होना एक भरोसेमंद दोस्त के आश्वासन जैसा है, जिसके भारत को रुस का शुक्रगुजार होना चाहिए।
बांग्लादेश में हिंसा और अशांति के बीच बीएनपी ने कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक़ रहमान की 25 दिसंबर को वतन वापसी हो रही है। तारिक़ रहमान बीएनपी के संस्थापक जियाउर रहमान और अध्यक्ष ख़ालिदा जिया के सबसे बड़े बेटे हैं, उन्हें साल 2007 में सेना समर्थित कार्यवाहक सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था, साल 2008 में वो इलाज के लिए ब्रिटेन चले गए थे और अब 17 साल बाद चुनावों से पहले वापस लौट रहे हैं। बीएनपी अभी बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टी है और कहा जा रहा है कि आगामी चुनाव में वो सत्ता में आ सकती है। शेख़ हसीना जब प्रधानमंत्री थीं तो ख़ालिदा ज़िया जेल में थीं। तारिक़ रहमान को भी कई मामलों में अदालत ने दोषी ठहराया था, लेकिन मोहम्मद युनूस की अंतरिम सरकार ने ख़ालिदा और उनके बेटे को बरी कर दिया है। अब देखना होगा कि क्या मोहम्मद युनूस अपने वादे के अनुसार निष्पक्ष चुनाव बांग्लादेश में करवाते हैं, क्या इसमें अवामी लीग को लड़ने का मौका मिलता है। या अगर बीएनपी की सरकार बनती है तब क्या युनूस सत्ता छोड़ पाएंगे, क्योंकि अभी उन्हीं के जरिए चीन, पाकिस्तान और अमेरिका अपनी मर्जी चला रहे हैं। एक लोकतांत्रिक और उदार सरकार बांग्लादेश के लिए जरूरी है और भारत के लिए भी।


