आंखें तरेरता बांग्लादेश
अपने विदेश दौरों की गिनती बढ़वा कर और सबसे अधिक देशों से वहां का सर्वोच्च सम्मान हासिल करने का रिकार्ड अपने नाम करवाने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगे हुए हैं

अपने विदेश दौरों की गिनती बढ़वा कर और सबसे अधिक देशों से वहां का सर्वोच्च सम्मान हासिल करने का रिकार्ड अपने नाम करवाने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगे हुए हैं। उनके लिए शायद बड़ी उपलब्धि यही होगी कि कितने राष्ट्राध्यक्षों को उन्होंने झप्पी दी है, कितनों के साथ कार में अकेले सवारी की है और कितनों को पहले नाम से बुलाते हैं। लेकिन मोदी से पहले भारत की विदेश नीति की धमक इस कारण से बनी हुई थी कि वह गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रणेता था, वैश्विक शक्तियों के सामने नवोदित देशों को सम्मान के साथ खड़े होने का आदर्श उसने पेश किया और तीसरी दुनिया के देश भारत को बड़े भाई की तरह देखते थे। पाकिस्तान के साथ तो भारत के रिश्ते हमेशा नरम-गरम रहे, लेकिन पाकिस्तान से अलग हुए बांग्लादेश, पड़ोसी देश नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार सब पर भारत का रसूख बना हुआ था, जो अब लगभग खत्म हो चुका है। इन सब देशों के साथ संबंध अभी सामान्य हैं, लेकिन जो गर्माहट पहले हुआ करती थी, वो मोदी सरकार के आने के बाद खत्म हो गई है।
खास तौर पर बांग्लादेश के साथ तो हमेशा से एक अपनापा रहा है। वहां का मुक्ति संग्राम भारत के कारण सफल हुआ। दोनों देशों का राष्ट्रगान रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है, इस बात पर भी नागरिकों को खुशी होती थी। दोनों देश पाकिस्तान की सैन्य तानाशाही के नुकसान देख चुके हैं। इसके अलावा अविभाजित भारत का हिस्सा होने के कारण सांस्कृतिक, भाषायी, धार्मिक इतिहास की साझेदारी भी रही है। लेकिन अब वही बांग्लादेश भारत को न केवल तोड़ने की धमकी दे रहा है, बल्कि खुलकर पाकिस्तान और चीन के साथ जाते हुए भारत के योगदान की अवहेलना भी कर रहा है।
बुधवार को भारत ने बांग्लादेश के उच्चायुक्त रियाज़ हमिदुल्लाह को तलब कर ढाका में भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर अपनी चिंता जताई थी। इसी पर बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के सदर्न चीफ़ ऑर्गेनाइजर हसनत अब्दुल्लाह ने कहा कि भारत के उच्चायुक्त को देश से बाहर निकाल देना चाहिए था। इससे पहले अब्दुल्लाह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग करने की धमकी दे चुके हैं। बता दें कि दो महीने में यानी फरवरी 2026 में बांग्लादेश में आम चुनाव होंगे और एनसीपी ने हसनत अब्दुल्लाह को कुमिल्ला-4 से उम्मीदवार बनाया है। इसी कुमिल्ला में अब्दुल्लाह ने भारत विरोधी बातें कहीं, उन्होंने कहा कि भारत के उच्चायुक्त को देश से बाहर निकाल देना चाहिए था क्योंकि वह शेख़ हसीना को शरण दे रहा है। हम आपका सम्मान करें और आप देखते ही गोली मारने की बात करो, ये सही नहीं है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर प्रतिक्रिया दी है कि बांग्लादेश में हाल की कुछ घटनाओं को लेकर कट्टरपंथी तत्वों के झूठे विमर्श को हम पूरी तरह से ख़ारिज करते हैं। हसनत जैसे चरमपंथी और हिंसक विचारधारा वाले लोग और उनके समर्थक अब मोहम्मद यूनुस को समर्थन देने वाली एकमात्र वास्तविक शक्ति बन गए हैं। जिस देश में यूनुस के नेता सार्वजनिक रैलियों में खुलेआम यह कह सकते हैं कि वे एक पड़ोसी देश के उच्चायुक्त को बाहर निकाल देंगे, वहां यह स्पष्ट है कि आम लोग दिन-रात ख़ुद को कितना असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। ऐसे बांग्लादेश में आम नागरिक अब न तो अपने जीवन को लेकर सुरक्षित महसूस करते हैं और न ही अपनी संपत्ति को लेकर यह कठोर वास्तविकता देश में क़ानून-व्यवस्था और राजनीतिक संयम के पूरी तरह ढह जाने को उजागर करती है।
इधर भारत में शरणागत बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के बेटे सजीब वाज़ीद जॉय ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए ईमेल इंटरव्यू में कहा है कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार एक इस्लामी शासन स्थापित करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि बांग्लादेश में जो अभी स्थिति है, वह भारत के लिए ख़तरा बढ़ा रही है। अमेरिका में रहने वाले वाज़ीद ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से पाकिस्तान की बढ़ती कथित क़रीबी को लेकर इंडियन एक्सप्रेस से कहा, यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। हमारी अवामी लीग सरकार ने भारत की पूर्वी सीमाओं को सभी आतंकवादी गतिविधियों से सुरक्षित रखा था। उससे पहले, बांग्लादेश का व्यापक रूप से भारत में विद्रोह फैलाने के लिए एक बेस के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। वाज़ीद ने यह भी कहा कि यूनुस सरकार ने देश में जमात-ए-इस्लामी और अन्य इस्लामी दलों को खुली छूट दे दी है। सभी प्रगतिशील और उदारवादी दलों पर प्रतिबंध लगाकर एक धांधलीपूर्ण चुनाव कराकर, यूनुस इस्लामी कट्टरपंथियों को सत्ता में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह बेहद गंभीर चेतावनी है और महज बांग्लादेशी घुसपैठियों का नाम लेकर देश में चुनावी फायदा उठाने की कोशिश में लगी भाजपा को इन हालात की गंभीरता समझनी होगी। अगले साल बांग्लादेश में किस तरह चुनाव होते हैं और किसके हाथ में सत्ता आती है, यह तो अभी पता नहीं, लेकिन मौजूदा सरकार ने भारत को पूरी तरह किनारे लगा ही दिया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने भारत पर 1971 के मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश के योगदान को लगातार कम करके आंकने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के बिना यह जीत संभव नहीं थी। तौहीद ने कहा कि कोलकाता में इस दिन को अलग से 'ईस्टर्न कमांड डे' के रूप में मनाया जाता है, जो इस बात को दर्शाता है कि भारत इसे अपनी सशस्त्र सेनाओं की जीत के रूप में देखता है। यह सच है कि भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जीत हासिल की थी। लेकिन बांग्लादेश में मिली जीत के संदर्भ में ख़ुद भारतीय विशेषज्ञ, जिनका मैंने अपनी किताब में उल्लेख किया है, यह स्वीकार करते हैं कि अगर स्थानीय प्रतिरोध से पाकिस्तानी सेना को कमज़ोर न किया गया होता तो भारत को जीत में कहीं अधिक समय लगता। पिछले साल दिसंबर महीने में ही बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के सदस्य मिज़ार् अब्बास ने कहा था, 'भारत ने बांग्लादेश नहीं बनाया। हमने बांग्लादेश मुक्त कराया। भारत ने तो पाकिस्तान को बांटा और ये अपने स्वार्थ में किया न कि हमारे स्वार्थ के लिए।
बेशक बांग्लादेश ने अपनी मुक्ति के लिए खुद लड़ाई लड़ी और लाखों लोगों ने कुर्बानियां दीं, शेख हसीना का परिवार भी उन्हीं में से एक है। उनके पिता शेख मुजीबुर्ररहमान ने अपनी जान दे दी, लेकिन देश से भागे नहीं। आज उन्हीं मुजीबुर्ररहमान को जब बांग्लादेश में अपमानित किया जा रहा है, तो इंदिरा गांधी के योगदान को याद रखे, इसकी उम्मीद नहीं की जाना चाहिए। लेकिन कम से कम मोदी सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बांग्लादेश उसे आंखें न तरेरे। अपनी वाहवाही से फुर्सत मिले तो प्रधानमंत्री मोदी अड़ोस-पड़ोस की खबर ले लें।


