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देश में धु्रवीकरण की कोशिशें तेज

बिहार चुनाव जीतने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प.बंगाल और असम जैसे चुनावी राज्यों में सक्रिय हो गए हैं

देश में धु्रवीकरण की कोशिशें तेज
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बिहार चुनाव जीतने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प.बंगाल और असम जैसे चुनावी राज्यों में सक्रिय हो गए हैं। बीते दो दिनों में उनकी दो सभाएं प.बंगाल और असम में हुईं। प.बंगाल के नादिया जिले में उनका हेलीकॉप्टर धुंध की वजह से न उतर सका तो उन्होंने कोलकाता से ही वर्चुअली सभा को संबोधित किया, जिसमें बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाल बाहर करने पर जोर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि नादिया में उनके खिलाफ पोस्टर और बैनर लगे थे, जिसके बाद सवाल उठता है कि क्या श्री मोदी विरोध का सामना करने से डर गए और इसलिए धुंध को लौटने का कारण बताया जा रहा है। क्योंकि पंजाब चुनाव के वक्त वे किसानों के विरोध की वजह से बीच रास्ते से लौट आए थे और तब उन्होंने कहा था कि अपने मुख्यमंत्री से कहना मैं जिंदा वापस लौट आया। लोकतांत्रिक देश में जनता के विरोध को जान पर खतरे की तरह दिखाना यह बताता है कि प्रधानमंत्री को लोकतंत्र में जनता को मिले अधिकार सुहाते नहीं हैं। खैर, ठंड का मौसम बीतेगा और धुंध खत्म होगी, तब तो नरेन्द्र मोदी को बंगाल में प्रचार के लिए जाना ही होगा, तब अगर विरोध होता है, तो कितनी बार वे लौटेंगे, ये देखना होगा।

प.बंगाल में नरेन्द्र मोदी असम गए और वहां उन्होंने इतिहास की गलत बयानी कर पं.नेहरू और कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया। लेकिन इस कोशिश में श्री मोदी ने खुद को उपहास का पात्र बना दिया है कि आखिर कब तक वे इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करेंगे। दरअसल श्री मोदी ने 20 दिसंबर को गुवाहाटी में आरोप लगाया कि 'कांग्रेस ने स्वतंत्रता से पहले ही इस जगह की पहचान मिटाने की साजिश रची थी, जब मुस्लिम लीग और ब्रिटिश ताकतें मिलकर भारत को बांटने की जमीन तैयार कर रही थीं, उस समय असम को भी पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की योजना थी। कांग्रेस भी उस साजिश का हिस्सा बनने वाली थी। तब बोरदोलोई जी ने अपनी पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम की पहचान मिटाने की इस कोशिश का विरोध किया और असम को देश से अलग होने से बचाया।'

लेकिन हकीकत यह है कि मार्च 1946 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राजनीतिक नेतृत्व को सत्ता हस्तांतरण पर चर्चा करने के लिए तीन ब्रिटिश कैबिनेट सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था, जिसमें ब्रिटिश भारत के लिए तीन स्तरीय प्रशासनिक संरचना का प्रस्ताव रखा गया था, जिसमें शीर्ष स्तर पर संघीय संघ, निचले स्तर पर अलग-अलग प्रांत और मध्य स्तर पर प्रांतों के समूह थे। उत्तर-पश्चिम भारत, पूर्वी भारत और भारत के शेष मध्य भागों के लिए समूह ए, बी और सी नामक तीन समूहों का प्रस्ताव रखा गया था। समूह ए में हिंदू बहुल प्रांत (जैसे बॉम्बे, मद्रास, यूपी) थे, समूह बी में मुस्लिम बहुल प्रांत (पंजाब, सिंध, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत) थे और समूह सी में बंगाल और असम, जिसमें बंगाल मुस्लिम बहुल था, जबकि असम हिंदू बहुल। मुस्लिम लीग चाहती थी कि पूरा समूह सी पाकिस्तान का हिस्सा बने। लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं थी। न ही कांग्रेस ये चाहती थी कि असम को बंगाल के साथ मिलाया जाए। 29 दिसंबर 1946 के 'हरिजन' अखबार में 'गांधीजी की असम को सलाह' शीर्षक से प्रकाशित लेख में इसका स्पष्ट उल्लेख है। नेहरू भी असम को पाकिस्तान या बंगाल के साथ मिलाने के खिलाफ थे। 22 जुलाई 1946 को गोपीनाथ बोरदोलोई को पत्र में नेहरूजी ने लिखा, 'समूह के खिलाफ फैसला करना सही और उचित था।' इसके बाद 23 सितंबर 1946 को लिखा, 'किसी भी हालत में हम असम जैसे प्रांत को उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ करने के लिए मजबूर करने पर सहमत नहीं होंगे।' अप्रैल 1946 में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में पं. नेहरू ने कहा, 'उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में मुस्लिम बहुल होने के बावजूद लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया... असम भी स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के खिलाफ है।' कांग्रेस के जबरदस्त विरोध के बाद अंग्रेजों ने असम को पाकिस्तान में मिलाने की योजना को रद्द कर दिया। कैबिनेट मिशन प्लान को कांग्रेस ने पूरी तरह नाकाम कर दिया। नेहरू के 10 जुलाई 1946 के प्रेस कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस की स्पष्ट अस्वीकृति और असहमति माना गया। ये सारी बातें सौ साल पुरानी भी नहीं हैं, तब के अखबारों की कतरनों में देखा जा सकता है कि गांधी, नेहरू, कांग्रेस पार्टी और गोपीनाथ बोरदोलोई सबके विचार इस मुद्दे पर एक जैसे थे। लेकिन नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि बोरदोलोई ने अपनी पार्टी के खिलाफ खड़े होकर असम बचाया।

दरअसल असम में अब भाजपा के खिलाफ एंटीइनकमबेंसी दिखाई दे रही है। वहीं कांग्रेस गौरव गोगोई के नेतृत्व में वहां लगातार जमीन पर सक्रिय है। इसलिए भाजपा अब वहां झूठा इतिहास बताकर कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश में है, जिसमें नरेन्द्र मोदी का पहला ही दांव बेकार गया है। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा भी भाजपा शुरु से उठाती रही है और हिमंता बिस्वासरमा लगातार सांप्रदायिक विभेद बढ़ाने वाले फैसले ले रहे हैं, इनका लाभ भाजपा को मिलेगा या नहीं देखना होगा।

पं.बंगाल में भी नरेन्द्र मोदी यही कोशिश कर रहे हैं। हुमायूं कबीर जैसे नेता बाबरी मस्जिद बनवाने की शुरुआत कर परोक्ष रूप से धु्रवीकरण में भाजपा की मदद कर रहे हैं। बचा हुआ काम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत पूरा करने की कोशिश में है। श्री भागवत ने रविवार को कोलकाता में कहा कि यदि सभी हिंदू एकजुट होकर खड़े हो जाएं, तो प. बंगाल की स्थिति को बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। उनका यह बयान चुनावी पृष्ठभूमि तैयार करने की तरह देखा जा रहा है। भले संघ खुद को एनजीओ बताए, लेकिन वह खुलकर राजनीति कर रहा है। मोहन भागवत अपने बयान में संविधान की अवहेलना करते भी दिखे, उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान हिंदू राष्ट्र है। अगर संसद कभी संविधान में संशोधन करके वह शब्द जोड़ने का फैसला करती है, तो करें या न करें, ठीक है। हमें उस शब्द की परवाह नहीं है क्योंकि हम हिंदू हैं, और हमारा राष्ट्र हिंदू राष्ट्र है। यही सत्य है।

संघ प्रमुख ने मोदी सरकार को इशारा दे दिया है कि अब संविधान में संशोधन कर हिंदू राष्ट्र का ऐलान उसका अगला पड़ाव होगा। मोहन भागवत और नरेन्द्र मोदी दोनों के बयान खतरनाक हैं और देश में धु्रवीकऱण को बढ़ावा देने वाले हैं। इससे भले उन्हें सत्ता मिल जाए, लेकिन इसका जो दीर्घकालिक नुकसान देश को होगा, वह चिंतनीय है।


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