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'बटेंगे तो कटेंगे' नारे का चौतरफ़ा विरोध

किसी भी चुनाव के नज़दीक आने पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की अपनी चिर-परिचित रणनीति एवं परम्परा के अनुपालन में भारतीय जनता पार्टी द्वारा 'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पिछले दिनों हरियाणा में हुई एक चुनावी प्रचार रैली में दिया गया था

बटेंगे तो कटेंगे नारे का चौतरफ़ा विरोध
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किसी भी चुनाव के नज़दीक आने पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की अपनी चिर-परिचित रणनीति एवं परम्परा के अनुपालन में भारतीय जनता पार्टी द्वारा 'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा पिछले दिनों हरियाणा में हुई एक चुनावी प्रचार रैली में दिया गया था। हरियाणा में भाजपा को मिली सफलता से माना जा रहा था कि महाराष्ट्र एवं झारखंड के चुनावों में भी इसका इस्तेमाल होगा लेकिन जिस प्रकार से इस नारे का विरोध भाजपा के सहयोगी दलों ने कर दिया है उससे लगता है कि इस नारे और इस तरह के अन्य नारों से उसे परहेज करना अपरिहार्य हो जायेगा। इन दोनों राज्यों के साथ देश में कई जगहों पर उपचुनाव भी हो रहे हैं, लेकिन लगता है कि खुद भाजपा ही अब इस 'बटेंगे तो कटेंगे' के नारे को ठंडे बस्ते में डाल देगी।

वैसे देश में नफरत भरे नारे देने में सदैव अग्रणी भूमिका निभाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'बटेंगे तो कटेंगे' के प्रति नाराज़गी को भांपते हुए नया नारा पेश कर दिया है- 'एक हैं तो सेफ हैं', जिसे आदित्यनाथ के ही नारे का संशोधित संस्करण कहा जा सकता है। अब देखना यह है कि चाहे 'बटेंगे तो कटेंगे' हो या फिर 'एक हैं तो सेफ हैं' का नारा भाजपा को इन दोनों राज्यों के विधानसभाओं चुनावों के साथ कुछ प्रदेशों में होने जा रहे उपचुनावों में कितना फायदा दिलाते हैं। इनमें योगी का अपना राज्य उत्तर प्रदेश भी शामिल है।

योगी आदित्यनाथ के नारे का सबसे पहला विरोध महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) की ओर से दर्ज हुआ है। इस दल के मुखिया अजित पवार ने कहा कि यह नारा 'उप्र या झारखंड में चलता होगा, यहां महाराष्ट्र में नहीं चलेगा क्योंकि महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज, राजर्षि शाहू महाराज और महात्मा फुले की धरती है।' उन्होंने साफ किया कि उनका विश्वास 'सबका साथ सबका विकास' में है। उन्होंने इस पर भी रोष जताया कि 'बाहरी लोग आकर ऐसी बातें कह जाते हैं।' उल्लेखनीय है कि भाजपा इस नारे में न केवल भरोसा करती है बल्कि इस सिद्धांत पर चलने का प्रयास भी करती है। यह अलग बात है कि महाराष्ट्र में वह राजनीति नाकाम हो गयी; और इसका भी श्रेय अजित पवार को ही जाता है। पिछले दिनों जब शिवाजी नगर मानखुर्द से एनसीपी (अजित पवार गुट) की ओर से नवाब मलिक को टिकट दिया गया था तो भाजपा ने इसका तीव्र विरोध किया था। अजित पवार ने एक नहीं सुनी और मलिक को अपना उम्मीदवार बनाये रखा। इतना ही नहीं, उनकी पार्टी ने नवाब की बेटी सना मलिक, हसन मुश्रिफ और कुछ दिन पहले कथित तौर पर लॉरेंस बिश्नोई गैंग के गुर्गों द्वारा मारे गये बाबा सिद्दीकी के बेटे को टिकट दी है। एनसीपी (दोनों गुट) साम्प्रदायिक सौहार्द्र में भरोसा करती है अत: भाजपा के इस नारे की स्वीकार्यता यहां नहीं हो सकती। ऐसे नारों तथा उन्हें उछालने वालों से अजित पवार इतनी दूरी बनाये रखना चाहते हैं कि उन्होंने यहां तक कह दिया है कि मोदी को उनके क्षेत्र में प्रचार करने के लिये आने की ज़रूरत नहीं है।

'बटेंगे तो कटेंगे' का विरोध एनडीए में बढ़ता हुआ स्पष्ट दिख रहा है। जो जनता दल (यूनाइटेड) मोदी सरकार को समर्थन दे रहा है और उसके बल पर भाजपा सरकार टिकी हुई है, उसी के विधान परिषद सदस्य गुलाम गौस ने पटना में साफ किया कि 'ऐसे नारे की ज़रूरत देश को नहीं है। जिन्हें सम्प्रदाय के नाम पर वोट चाहिये उन्हें इसकी आवश्यकता है।' गौस ने तर्क दिया कि 'जब देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री हिन्दू हैं तो हिन्दू कैसे असुरक्षित हो सकते हैं?? राष्ट्रीय लोक दल भी एनडीए का हिस्सा है। उसके अध्यक्ष तथा केन्द्रीय मंत्री जयन्त चौधरी से जब पत्रकारों ने 'बटेंगे तो कटेंगे' के बाबत सवाल किया तो वे यह कहकर चलते बने कि 'यह उनकी बात है।' जाहिर है कि आरएलडी इस नारे के साथ नहीं है। हालांकि कुछ लोग इस नारे का साथ भी दे रहे हैं। शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के संजय निरूपम, जिन्होंने पिछले दिनों कांग्रेस छोड़ी थी, इस नारे को सही ठहराते हुए कहते हैं कि 'अभी अजित पवार को यह बात समझ में नहीं आ रही है।' ऐसे ही, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने भी आदित्यनाथ के नारे को उचित कहा है। वे भी एनडीए सरकार में मंत्री है।

इस नारे के पक्ष और विपक्ष में जिस तरह से एनडीए के अलग-अलग सहयोगी खड़े हैं उससे यह तो साफ है कि इसके चलते एनडीए में बड़ी फूट पड़ गयी है। कांग्रेस के अनेक वरिष्ठ नेता भी इस नारे के प्रति सख्त विरोध जता चुके हैं, जिनमें खुद पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शामिल हैं जिन्होंने इस नारे को 'दुर्भाग्यपूर्ण' बतलाया है। अभी फूट के आरम्भिक चिन्ह ही दिखाई दे रहे हैं परन्तु यदि भाजपा इस नारे को आगे बढ़ाती है तो उसे और एनडीए को अनेक समस्याएं झेलनी पड़ेंगी। बिहार में जेडीयू का प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय जनता दल इसके खिलाफ मैदान में उतर पड़ा है। उसने कई जगहों पर पोस्टर लगाये हैं जिनमें लिखा है- 'न कटेंगे न बटेंगे, तेजस्वी यादव से जुड़ेंगे।' एनडीए के एक और प्रमुख अंग तेलुगू देसम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की प्रतिक्रिया आई नहीं है, जो मुस्लिमों के हितैषी माने जाते हैं।


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