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अखिलेश यादव की चमक 2024 के लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा

भाजपा के लिए समस्या यह है कि भाजपा के भीतर योगी आदित्यनाथ के विरोधी अभी भी सक्रिय हैं

अखिलेश यादव की चमक 2024 के लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा
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- डॉ. ज्ञान पाठक

भाजपा के लिए समस्या यह है कि भाजपा के भीतर योगी आदित्यनाथ के विरोधी अभी भी सक्रिय हैं, क्योंकि वे इन उपचुनावों को उत्तर प्रदेश और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में योगी की राजनीतिक हैसियत को कम करने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, अगर योगी चार सीटों को बरकरार रखने में सफल हो जाते हैं और आरएलडी को एकमात्र सीट जीतने में मदद करते हैं, तो वह भाजपा में एक अप्रतिरोध्य ताकत के रूप में फिर से उभरेंगे और भविष्य के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रभाव के लिए खतरा बन जायेंगे।

उत्तर प्रदेश में सभी 9 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों के लिए एनडीए और इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवारों की घोषणा के साथ, अब चुनावी रणभूमि में मुख्य प्रतियोगियों को देखा जा सकता है, और उनकी संबंधित ताकत और कमजोरियों का आकलन भी किया जा सकता है, जिसकी सफलता या विफलता योगी आदित्यनाथ के भाग्य का फैसला कर सकती है - उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, और साथ ही भाजपा के भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में भी।

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को मिली अपमानजनक हार के बाद, योगी आदित्यनाथ को प्रदेश भाजपा के कुछ प्रमुख नेताओं से विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है, जो विफलता के लिए उन्हें बलि का बकरा बनाने की मांग कर रहे थे। हालांकि, योगी आदित्यनाथ ने उन पर अपना प्रभुत्व साबित कर दिया, जिन्हें अप्रत्यक्ष रूप से कुछ केंद्रीय भाजपा नेताओं का समर्थन प्राप्त था। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने तब कहा था कि उपचुनाव खत्म होने तक 'कोई बदलाव' नहीं किया जायेगा। उन्होंने वास्तव में केंद्रीय भाजपा की मंशा को ही उजागर दिया था कि अगर योगी आदित्यनाथ को उम्मीदवारों का चयन करने और अपने तरीके से प्रचार करने की खुली छूट दी जाये तो यह स्पष्ट होगा कि वे उपचुनावों में क्या कर सकते हैं और तब उनकी ताकत का अंदाजा लग जायेगा।

यह भी याद रखने लायक है कि योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा की हार के लिए 'पार्टी नेताओं के अति आत्मविश्वास' और 'अलोकप्रिय उम्मीदवारों को बार-बार खड़ा करने' को जिम्मेदार ठहराया था। पहला आरोप राज्य भाजपा में उनके विरोधी समूह पर लक्षित था, और दूसरा आरोप केंद्रीय भाजपा नेतृत्व पर लक्षित था।

अब उपचुनाव आ गये हैं, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार के प्रबंधन और पार्टी टिकट देने में पूरी छूट दे दी गयी है। इसलिए 13 नवंबर को होने वाले उपचुनाव का परिणाम योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भाग्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा।

भाजपा 9 में से 8 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि एक सीट एनडीए की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को दी गयी है। कुंदरकी से रामवीर सिंह ठाकुर, गाजियाबाद से संजीव शर्मा, खैर (एससी) से सुरेंद्र दिलेर, करहल से अनुजेश यादव, फूलपुर से दीपक पटेल, कटेहरी से धर्मराज निषाद, मझवां से सुचिस्मिता मौर्य और सीसामऊ से सुरेश अवस्थी को टिकट दिया गया है।

इनमें से फूलपुर, गाजियाबाद और खैर पर भाजपा ने 2022 के चुनाव में जीत दर्ज की थी, जबकि मझवां पर एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी ने जीत दर्ज की थी। चूंकि भाजपा इन सीटों पर चुनाव लड़ रही है, इसलिए पार्टी इन सीटों को बरकरार रखने के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की कड़ी टक्कर का सामना कर रही है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव से ही उभरते सितारे हैं, इन सीटों पर भी उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी ऊंचा दिख रहा है, जो इन सीटों को भाजपा से छीनने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

एनडीए में भाजपा की सहयोगी रालोद की बात करें तो उसने मीरापुर से मिथिलेश पाल को मैदान में उतारा है। 2022 के विधानसभा आम चुनाव में भी रालोद ने इस विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की थी। यह सीट मौजूदा विधायक चंदन चौहान के लोकसभा में निर्वाचित होने के बाद खाली हुई थी।
मीरापुर ही नहीं, बल्कि 13 नवंबर को जिन 8 विधानसभाओं में उपचुनाव होने हैं, वहां मौजूदा विधायकों के लोकसभा में निर्वाचित होने और सीट खाली होने के कारण उपचुनाव जरूरी हो गये हैं। समाजवादी पार्टी के विधायक इरफान सोलंकी को आपराधिक मामले में दोषी ठहराये जाने तथा अयोग्य घोषित किये जाने के कारण सीसामऊ सीट पर उपचुनाव जरूरी हो गया है।

भारत के निर्वाचन आयोग ने अदालती मुकदमे के कारण मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव की घोषणा नहीं की।
विपक्षी समाजवादी पार्टी ने सभी 9 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ रही है। इंडिया ब्लॉक के प्रमुख घटक के रूप में कांग्रेस सिर्फ समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है। इसलिए, यह स्पष्ट है कि कोई भी नुकसान या लाभ समाजवादी पार्टी और उसके सुप्रीमो अखिलेश यादव का सीधा नुकसान या लाभ होगा।

समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं - करहल से तेज प्रताप यादव, सीसामऊ से नसीम सोलंकी, फूलपुर से मुस्तफा सिद्दीकी, कटेहरी से शोभावती वर्मा, मझवां से ज्योति बिंद, मेरापुर से सुम्बुल राणा, गाजियाबाद से सिंह राज जाटव, खैर से चारूकैन और कुंदरकी से मोहम्मद रिजवान। उपचुनाव वाली 9 सीटों में से चार - सीसामऊ, कटेहर, करहल और कुंदरकी - 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जीती थीं। इसलिए, इन चार सीटों को बरकरार रखना समाजवादी पार्टी और इंडिया ब्लॉक के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इतना ही नहीं, एनडीए सहयोगियों के पास मौजूद अन्य 5 सीटों में से कोई भी जीतना समाजवादी पार्टी और इंडिया ब्लॉक के और उभार का संकेत होगा।

इसके विपरीत, भाजपा को न केवल 2022 में जीती गयी अपनी 3 सीटों को बरकरार रखना है, बल्कि उसे अपनी सहयोगी निषाद पार्टी द्वारा जीती गयी सीट को भी बरकरार रखना है, जिस पर अब भाजपा चुनाव लड़ रही है। इन सीटों पर किसी भी तरह की हार उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीतिक यात्रा को और नीचे ले जाने का संकेत होगी। भाजपा को न केवल इन सीटों पर जीत हासिल करनी है, बल्कि समाजवादी पार्टी की चार मौजूदा सीटों को भी छीनना है, ताकि यह साबित हो सके कि भाजपा ने अपनी खोई जमीन वापस पा ली है।

हालांकि, भाजपा के लिए समस्या यह है कि भाजपा के भीतर योगी आदित्यनाथ के विरोधी अभी भी सक्रिय हैं, क्योंकि वे इन उपचुनावों को उत्तर प्रदेश और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में योगी की राजनीतिक हैसियत को कम करने के अवसर के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, अगर योगी चार सीटों को बरकरार रखने में सफल हो जाते हैं और आरएलडी को एकमात्र सीट जीतने में मदद करते हैं, तो वह भाजपा में एक अप्रतिरोध्य ताकत के रूप में फिर से उभरेंगे और भविष्य के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रभाव के लिए खतरा बन जायेंगे।


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