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हादसों का महाकुम्भ

प्रयागराज में चल रहा महाकुम्भ जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, उस सिलसिले में हादसों पर हादसे हो रहे हैं

हादसों का महाकुम्भ
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प्रयागराज में चल रहा महाकुम्भ जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, उस सिलसिले में हादसों पर हादसे हो रहे हैं। मेला क्षेत्र में होने वाली भगदड़ और आगजनी की कई घटनाओं के अलावा देश भर से प्रयागराज या इस दिशा में आने वाली ट्रेनों में जो दृश्य दिखलाई दे रहे हैं वे अपने आप में दुखद हैं। इस श्रृंखला में ताजा हादसा नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म क्रमांक 14 व 15 पर शनिवार की रात को करीब 10 बजे हुआ। प्रयागराज जाने वाली ट्रेनें पकड़ने के लिये इतनी बड़ी तादाद में लोग पहुंच गये कि तिल भर भी जगह नहीं रह गयी। पीछे से आने वाले जनसैलाब ने न केवल इन दो प्लेटफॉर्मों को भर दिया वरन सीढ़ियां और फुटओवर ब्रिजों पर भी ऐसी जबर्दस्त भीड़ हो गयी कि लोगों को सांस लेना भी दूभर हो गया। हर बढ़ते जत्थे से स्थिति गम्भीर होती चली गयी। बड़ी संख्या में लोगों के बेहोश होने और दम घुटने अथवा दबने से वैसी ही मौतें होने लगीं जैसी कि प्रयागराज के मेला क्षेत्र में 28 व 29 जनवरी की दरमियानी रात को हुई थी। उसमें मृतकों के सरकारी आंकड़े तो 30 के हैं लेकिन वास्तविक संख्या कई गुना अधिक होने का अंदेशा है। वैसे ही दिल्ली के इस हादसे में रेलवे प्रशासन व सरकार के अनुसार 19 लोगों की मृत्यु बतलाई जाती है लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है। इनमें बच्चे और महिलाएं भी हैं।

इस बार के महाकुंभ के लिए इस बात का खूब प्रचार किया गया है कि यह 144 वर्षों के बाद दुर्लभ योग में आया है, इसलिए अमृत स्नान के लिये मानो पूरा भारत उत्कंठित है। देश भर से विभिन्न परिवहन के साधनों से करोड़ों की संख्या में लोग यहां अकल्पनीय परेशानियां झेलते हुए पहुंच रहे हैं। स्नान की सभी महत्वपूर्ण तिथियों में लोगों का आना जारी है। ट्रेनों के डिब्बे खचाखच भरे हैं और उनमें एक-एक इंच के लिये संघर्ष हो रहा है। पाप धोने, पुण्य कमाने तथा मोक्ष पाने के आकांक्षी रेल डिब्बों की खिड़कियों में लगे कांच को तोड़कर उनमें घुस रहे हैं। लोगों को कुम्भ में आने के लिये आकर्षित करने के उद्देश्य से सरकार ने प्रयागराज से लौटने वाली ट्रेनों में सामान्य श्रेणियों की यात्रा मुफ्त कर रखी है लेकिन श्रद्धालु एक कदम आगे बढ़ते हुए न केवल आने वाली ट्रेनों से ही बगैर टिकट व आरक्षण के आ रहे हैं वरन आरक्षित व एसी डिब्बों में भी बेरोकटोक घुसकर दूसरों की सीटों पर कब्जा कर रहे हैं। अंदर के यात्री यदि भीड़ को घुसने से रोकने के लिये चिटकनी लगा रहे हैं तो बाहर प्लेटफॉर्मों के सैलाब उसे खुलवाने का प्रबन्ध कर पहुंच रहे हैं। भीतर किसी के घायल होने की परवाह किये बगैर बांस-बल्लियों से कांच तोड़े जा रहे हैं और डिब्बों में लड़ाई-झगड़े हो रहे हैं। स्टेशनों पर तैनात रेलवे कर्मचारी व पुलिस बल अपर्याप्त साबित हो रहा है। नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी भीड़ इतनी ज्यादा थी कि उसे नियंत्रित करना ही असम्भव हो गया था।

सड़क मार्ग से आने वालों की अपनी दिक्कतें हैं। प्रयागराज से आने वाले सारे मार्ग लगभग जाम रहते हैं। मौनी अमावस्या के दौरान तो कम से कम 3 सौ किलोमीटर जाम देखा गया जिससे निज़ात पाने के लिये लोगों को वाहनों के भीतर दो से तीन दिन तक गुजारने पड़े। खाने-पीने का सामान खत्म या कई-कई गुना महंगा हो गया। प्रयागराज पहुंचने वाले रास्तों पर पड़ने वाले गांव एवं कस्बे भी भीड़ के कारण परेशानियां झेल रहे हैं। तमाम व्यवस्थाएं ठप हैं और प्रशासन लाचार। लोगों को उनके हाल पर छोड़ा जा रहा है। उनकी मदद न तो सरकार कर पा रही है, न राजनीतिक दल और न ही वे धार्मिक संस्थाएं, धर्मगुरु, अखाड़े एवं सम्प्रदाय जो हिन्दुओं का नेतृत्व करने का दावा करते हैं। लोग बेमौत मारे जा रहे हैं।

अलबत्ता, इस महाकुम्भ का सियासी लाभ लेने में भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे है। मेला क्षेत्र में हुए हादसे के अगले दिन श्रद्धालुओं पर हेलीकॉप्टर से की गयी पुष्प वर्षा बतलाती है कि न तो केन्द्र सरकार की मरने वालों के प्रति संवेदना है और न ही राज्य सरकार की। उत्तर प्रदेश सरकार ने उस हादसे की जांच के आदेश दे दिये हैं जिसमें अंतत: कौन सा एंगल सामने आता है, देखना होगा। ऐसे हादसे दोबारा न हों उसके पुख्ता इंतज़ाम करने की बजाये उप्र सरकार ने 21 सोशल मीडिया यूज़र्स के खिलाफ भगदड़ सम्बन्धी भ्रामक वीडियो डालने के मामले ज़रूर दज़र् किये हैं जो बतलाता है कि मुकम्मल व्यवस्था बनाये रखने में नाकाबिल सरकार आवाज दबाने के ऐसे उपाय करने में जुट गयी है। इसी तरह से नयी दिल्ली तथा रेलवे प्रशासन ने दिल्ली दुर्घटना की जांच शुरू कर दी है। अब वहां भीड़ को नियंत्रित करने के लिये पुलिस की 6 अतिरिक्त कम्पनियां तैनात कर दी गयी हैं। उधर घायलों को एलएनजीपी अस्पताल में भर्ती किया गया है जिसके बाहर सशस्त्र बल लगाये गये हैं। कहते हैं कि मृतकों व घायलों की संख्या को सरकार छिपाना चाहती है इसलिये मीडिया को अंदर जाने की अनुमति नहीं है। परिजन भी भीतर जाने के लिये तरस रहे हैं।

इस हादसे ने साबित कर दिया है कि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह दावा खोखला साबित हुआ जिसमें उन्होंने कहा था कि 'इस महाकुम्भ में 40 करोड़ लोगों के आने के अनुमान हैं लेकिन सरकार ने 100 करोड़ लोगों के आने की तैयारी कर रखी है।' बताया जाता है कि मौनी अमावस्या पर राज्य सरकार को 10 करोड़ से ज्यादा लोगों के आने का अंदाजा था। हालांकि 8-9 करोड़ लोगों के आने पर ही व्यवस्था ढह गयी। यदि सचमुच अनुमानित संख्या में लोग आते तो क्या स्थिति बनती- इसका भी अनुमान लगाया जा सकता है। दिल्ली का हादसा बताता है कि रेलवे ने भी पर्याप्त तैयारियां एवं व्यवस्था नहीं कर रखी हैं। ऐसे में लोगों को आमंत्रण देना उनकी जान से खिलवाड़ करना है।


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