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75वें जन्मदिन का जश्न

17 सितंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 75 बरस पूरे किए

75वें जन्मदिन का जश्न
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17 सितंबर को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 75 बरस पूरे किए। यूं तो जब से श्री मोदी सत्ता में आए हैं, तभी से उनकी चाटुकारिता की होड़ व्यापार, मीडिया, फिल्म, खेल आदि क्षेत्रों के नामी लोगों में लगी रही कि कौन कितना बढ़कर उनकी शान में कसीदे कह सकता है। लेकिन सत्ता के तीसरे दौर में तो मानो सारी सीमाएं ही टूट गईं, राजशाही के दौर के चारण-भाट भी इस होड़ में टिक नहीं सकते, जबकि उनका पेशा ही राजा की तारीफ करना होता था।

भाजपा ने तो काफी वक्त से इस दिन के खास जश्न की तैयारी की थी। अब नरेन्द्र मोदी राहुल गांधी या सोनिया गांधी जैसे व्यक्तित्व के तो हैं नहीं, जो कहें कि देश इतनी विपदाओं से गुजर रहा है। कई राज्यों में बाढ़ और बारिश की तबाही है। ऐसे में जन्मदिन में तामझाम न किया जाए। सादगी बरती जाए। अगर मोदीजी ऐसा कह देते तो उनका दस लाख का सोने की जरी से नमो-नमो जड़ा सूट अपनी उपयोगिता पर तरस खाता। लाखों की गाड़ियां, कपड़े, चश्मे और घड़ियां निरर्थक हो जाते। एक चाय बेचने वाला गरीब मां का बेटा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री बना है, यही भावुक कथा पिछले 11 सालों से बांची जा रही है। इसका पारायण करने के लिए अगर चकाचौंध न दिखाई जाए, तो फिर सब कुछ व्यर्थ हो जाएगा। इसलिए अपने 140 करोड़ परिवारजनों को प्राकृतिक विपदा, बीमारी, बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई इन सब पर रोते हुए छोड़ नरेन्द्र मोदी अपने 75वें जन्मदिन के जश्न की तैयारी देखते रहे।

कई महंगे निजी स्कूलों में नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन पर बच्चों को विशेष काम दिया गया, जिसमें उन्हें बधाई संदेश लिखना था, या ग्रीटिंग कार्ड बनाना था। एक अंग्रेजी अखबार ने अपने पाठकों से मोदीजी के जन्मदिन के लिए विशेष बधाई संदेश आमंत्रित किए। इन सब को देखकर सवाल भी हुए कि क्या हम उ.कोरिया बनने की तरफ बढ़ रहे हैं, जहां तानाशाह किम जोंग उन के इर्द-गिर्द ही सारी गतिविधियां होती हैं और इसमें जनता की आवाज को कुचल दिया जाता है। दरअसल भाजपा इस बात को अच्छे से जानती है कि हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा श्री मोदी ने पूरा नहीं किया तो बीते कुछ सालों से 17 सितंबर को बेरोजगारी दिवस के तौर पर मनाया जाता रहा है। इसमें दो शासनकाल तो किसी तरह निकल गए, लेकिन सत्ता के तीसरे काल में मोदी सरकार घरेलू और बाहरी दोनों मोर्चों पर आलोचना का शिकार हो रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारतीयों को हथकड़ियों में भेजने से लेकर 50 प्रतिशत टैरिफ थोपने और भारत-पाक संबंधों में अड़ंगा डालकर भारत का अपमान कर चुके हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी ने आज तक उसका प्रतिवाद नहीं किया। चीन के साथ भी दिखावे की नाराजगी के बाद अब दोस्ती बढ़ा ली, जबकि गलवान के 20 शहीदों का इंसाफ नहीं हुआ है। संविधान पर तरह-तरह से आक्रमण बढ़े हैं, अंबेडकर अंबेडकर कहना फैशन बन गया है, ऐसा खुद अमित शाह ने कहा था। इन सबसे नरेन्द्र मोदी की छवि जनता के बीच कमजोर हो चुकी थी। ऐसे में जन्मदिन को आपदा में अवसर की तरह भुनाने की कोशिश हुई।

हैशटैग माई मोदी स्टोरी के तहत मुकेश अंबानी, शाहरुख खान, विश्वनाथ आनंद जैसे दर्जनों दिग्गजों ने मोदीजी को जन्मदिन की बधाई दी। बताया जा रहा है कि ये बधाई संदेश भाजपा की आईटी सेल की तरफ से सबको भेजे गए हैं कि इसे ही सारे लोग अपने-अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट करें। इसमें अपनी तरफ से जिसे जितनी चाटुकारिता करनी हो, वो कर सकता है, इसलिए मुकेश अंबानी ने यहां तक कह दिया कि जब भारत की आजादी के सौ साल हों, तब भी मोदी भारत की सेवा करते रहें, ऐसी उनकी हार्दिक इच्छा है।

वैसे भारतीय संस्कृति में व्यक्ति के जीवन में जिन चार पड़ावों या आश्रमों का उल्लेख किया गया है, उसके मुताबिक अब श्री मोदी को संन्यास आश्रम में प्रवेश करना चाहिए। पैदा होने से 25 बरस की आयु तक ब्रह्मचर्य (छात्र जीवन), फिर 50 बरस तक गृहस्थ (पारिवारिक जीवन), 75 बरस तक वानप्रस्थ (वन में रहकर तपस्या), और उसके बाद संन्यास (पूर्ण त्याग) का ही वर्णन किया गया है। संन्यास आश्रम को जीवन का अंतिम और सबसे त्यागमय चरण है। इस आश्रम में व्यक्ति सांसारिक बंधनों और सभी प्रकार के मोह का त्याग कर देता है। वह पूर्ण वैराग्य धारण कर लेता है और ईश्वर की प्राप्ति के लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है।

लेकिन मोदीजी के जन्मदिन का जश्न देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि वे संस्कृति के इस अध्याय का पालन करेंगे और संन्यास आश्रम में जाने की तैयारी करेंगे। उनके समर्थक तर्क दे सकते हैं कि उन्होंने गृहस्थ जीवन में ही वानप्रस्थ और संन्यास दोनों चरणों को जी लिया था, इसलिए अब उन पर कोई पाबंदी नहीं है। वैसे भी अगर श्री मोदी ने खुद को अलौकिक घोषित किया है, तो फिर इहलोक के नियम उन पर कैसे लागू होंगे।

यूं भी भारत का संविधान हर नागरिक को आज़ादी देता है कि वह कानूनों और नियमों का पालन करते हुए अपनी मर्जी का जीवन जिए। इसलिए श्री मोदी अपने जन्मदिन की खुशियां प्रायोजित तौर पर मनवाएं या स्वत:स्फूर्त तरीके से, यह उनकी मर्जी है। ठीक उसी तरह उन तमाम हस्तियों की भी अपनी मर्जी है कि वे देश में चल रही विसंगतियों पर मुंह सिल कर रखें और प्रधानमंत्री की जी भर के चरणवंदना करें। हालांकि अभिव्यक्ति की यही आजादी मीडिया से क्यों छीनी जा रही है, यह सवाल इस मौके पर किया जा सकता है।

भारत सरकार ने अडानी समूह पर आलोचनात्मक 138 यूट्यूब वीडियो और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट हटाने का आदेश जारी किया है। इन वीडियो में सरकार से नजदीकी के कारण अडानी समूह को होने वाले फायदों पर रिपोर्टिंग या पड़ताल की गई है। ऐसे में अडानी समूह चाहे तो इन आऱोपों को खारिज करते हुए अपने तर्क सामने रखे। लेकिन सीधे वीडियो हटाने का आदेश बताता है कि दाल में कुछ काला है।

बता दें कि यह कदम दिल्ली की एक अदालत के 6 सितंबर को दिए गए अंतरिम आदेश के आधार पर उठाया गया है। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने लिखा है कि वीडियो हटाने का यह आदेश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन है। मानहानि पर कानून स्पष्ट है। यदि आरोपी यह कहता है कि उसने सच कहा है और वह कथित मानहानिकारक बयानों को सही ठहराना चाहता है, तो अदालत कोई निषेधाज्ञा जारी नहीं कर सकती, और न ही टेकडाउन ऑर्डर।

बहरहाल, सरकार के इस फैसले को मोदीजी के जन्मदिन का रिटर्न गिफ्ट माना जाए या कुछ और, यह सोचने वाली बात है।


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