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ईडी ने मधुकान ग्रुप की 80.65 करोड़ की संपत्ति की अटैच

झारखंड में ईडी रांची एक्सप्रेसवे लिमिटेड पर 1030 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी मामले की जांच कर रही है

ईडी ने मधुकान ग्रुप की 80.65 करोड़ की संपत्ति की अटैच
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रांची। झारखंड में ईडी रांची एक्सप्रेसवे लिमिटेड पर 1030 करोड़ की बैंक धोखाधड़ी मामले की जांच कर रही है। ईडी सूत्रों ने बताया कि मधुकान ग्रुप के 80.65 करोड़ रुपये की 28 अचल संपत्तियों और अन्य संपत्तियों को अस्थायी रूप से जब्त किया गया है। यह संपत्ति नामा नागेश्वर राव और उनके परिवार के सदस्यों से संबंधित हैं।

जब्त संपत्तियों में हैदराबाद के खम्मम जिला में 67.08 करोड़ और प्रकाशम जिला में 13.57 करोड़ की संपत्ति शामिल है। इनमें जमीन, आवासीय घर, बैंक खाते और वाणिज्यिक स्थान शामिल है।

बताया जा रहा है कि मेसर्स रांची एक्सप्रेसवे लिमिटेड के माध्यम से बैंक से जालसाजी का मामला है। इसमें ईडी ने मनी लॉड्रिंग के तहत केस दर्ज कर अनुसंधान शुरू किया है। मेसर्स रांची एक्सप्रेसवे लिमिटेड मधुकान समूह की कंपनी है। इस कंपनी के खिलाफ सीबीआई की रांची स्थित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में 12 मार्च 2019 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

सीबीआई ने 30 दिसम्बर 2020 को इस कंपनी और इसके सहयोगियों पर चार्जशीट किया था। इसके बाद ही सीबीआई में मामले में अनुसंधान शुरू किया था। मनी लॉड्रिंग के तहत अनुसंधान के दौरान ईडी को मधुकान ग्रुप के माध्यम से अवैध तरीके से बनायी गई 361.29 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति का पता चला है, इसपर आगे का अनुसंधान जारी है।

मधुकान ग्रुप की कंपनी मेसर्स रांची एक्सप्रेसवे लिमिटेड को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने राष्ट्रीय राजमार्ग-33 पर 114 से 277.50 किलोमीटर यानी कुल 163.50 किलोमीटर के फोर लेन का प्रोजेक्ट दिया था। यह रांची -जमशेदपुर रोड पर रांची से रड़गांव तक के लिए था, जिसे 18 मार्च 2011 को कंपनी को मिला था। कंपनी के संस्थापक निदेशक कम्मा श्रीनिवास राव, नामा सीतैया और नामा पृथ्वी तेजा थे।

आरोप है कि कंपनी ने पूरी ऋण राशि प्राप्त करने के बावजूद परियोजना को पूरा नहीं किया, जिसके चलते बाद में उसका अनुबंध समाप्त कर दिया गया। इसके बाद गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) और एनएचएआइ की रिपोर्ट के आधार पर हाई कोर्ट ने प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था।

ईडी जांच में पता चला कि मेसर्स रांची एक्सप्रेसवे लिमिटेड ने अपने निदेशकों और प्रोमोटरों के सहयोग केनरा बैंक से 1030 करोड़ रुपये का ऋण ले लिया था। उक्त ऋण जिस उद्देश्य के लिए लिया था, उसका उपयोग नहीं कर, उस राशि को दूसरी जगह स्थानांतरित किया। पूरी राशि निकालने के बावजूद काम पूरा नहीं कर सके। फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर बैंक के साथ भी धोखाधड़ी की।

राष्ट्रीय राजमार्ग अथारिटी को भी धोखा दिया। बाद में कंपनी का खाता एनपीए हो गया। मधुकान ग्रुप ने केवल 50.24 प्रतिशत ही काम किया और ऋण की राशि 90 प्रतिशत निकाल लिया।


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