Top
Begin typing your search above and press return to search.

मृत्यु पूर्व बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा है कि अगर मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की सत्यता पर कोई संदेह है या रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि यह सच नहीं है

मृत्यु पूर्व बयान दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट
X

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा है कि अगर मृत्यु पूर्व दिए गए बयान की सत्यता पर कोई संदेह है या रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य से पता चलता है कि यह सच नहीं है, तो ही इसे साक्ष्य का एक हिस्‍सा भर माना जायेगा और यह दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने एक आपराधिक अपील पर विचार करते हुए कहा कि अदालतों को इस पर भरोसा करने से पहले खुद को संतुष्ट करना होगा कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान विश्वसनीय और सच्चा है।

अदालत ने कहा, “यह निर्धारित करने के लिए कोई सख्त नियम नहीं है कि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान को कब स्वीकार किया जाना चाहिए; न्यायालय का कर्तव्य मामले के तथ्यों और आसपास की परिस्थितियों के आधार पर इस प्रश्न पर निर्णय लेना और उसकी सत्यता के प्रति पूरी तरह आश्वस्त होना है।''

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या बयान देने वाला व्यक्ति को पता था कि वह मर सकता है, क्या मृत्यु पूर्व बयान सबसे पहले उपलब्‍ध मौके पर लिया गया था आदि कारकों पर अदालतों को विचार करना चाहिए।

इसमें कहा गया है कि यह सच है कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान एक ठोस सबूत है जिस पर भरोसा किया जा सकता है, अगर यह साबित हो जाए कि वह स्वैच्छिक और सच्चा था और पीड़ित की मानसिक स्थिति ठीक थी।

शीर्ष अदालत ने कहा, "अदालत के लिए यह कहना पर्याप्त नहीं है कि मृत्यु पूर्व दिया गया बयान विश्वसनीय है क्योंकि मृत्यु पूर्व दिए गए बयान में आरोपी का नाम हमलावर के रूप में है।"


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it