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डीयू : पाठ्यक्रम में बदलाव पर एकेडमिक काउंसिल के कई सदस्यों, शिक्षको को ऐतराज

महाश्वेता देवी की लघुकथा 'द्रौपदी' को दिल्ली विश्वविद्यालय के इंग्लिश ऑनर्स के सिलेबस से हटा दिया गया है

डीयू : पाठ्यक्रम में बदलाव पर एकेडमिक काउंसिल के कई सदस्यों, शिक्षको को ऐतराज
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नई दिल्ली। महाश्वेता देवी की लघुकथा 'द्रौपदी' को दिल्ली विश्वविद्यालय के इंग्लिश ऑनर्स के सिलेबस से हटा दिया गया है। अकादमिक परिषद के कई सदस्यों ने बीए (ऑनर्स) के पाठ्यक्रम में इस बदलाव पर असहमति जताई है। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय इस विषय पर किसी भी विवाद को सही मानता। महाश्वेता देवी और दो तमिल लेखिका बामा फॉस्टिना सूसाईराज और सुकीरथरानी के अध्याय भी सिलेबस के हटाए गए हैं। अब दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले पर विवाद होने लगा है। डूटा भी दिल्ली विश्वविद्यालय के इस फैसले की मुखालफत कर रहा है। वहीं अकादमिक काउंसिल के कई सदस्य अपना विरोध दर्ज कराने के बाद अब इस विषय पर मुखर हो गए हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक काउंसिल की मीटिंग में भी इन फैसले को मंजूरी दे दी गई है।

अकादमिक काउंसिल के सदस्य मिथुराज धूसिया ने गुरुवार को कहा कि 'द्रौपदी' 1999 से दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल है। इसके अलावा यह यूजीसी टेम्पलेट का हिस्सा भी है। हालांकि अब 'द्रौपदी' जैसी महत्वपूर्ण कहानी के स्थान पर एक छोटी कहानी ह्यसुल्तानाज ड्रीम्स को सिलेबस में शामिल किया गया है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने इस पूरे विवाद को गैर वाजिब करार दिया है। गुरुवार शाम उन्होंने इस विषय पर कहा कि सिलेबस में बदलाव की यह पूरी प्रक्रिया लोकतांत्रिक तरीके से की गई है। बदलाव की प्रक्रिया में सभी संबंधित धारकों को शामिल किया गया। सिलेबस फाइनल मसौदा अंग्रेजी विभाग द्वारा ही तय किया गया है। इसलिए अब इस प्रकार के विवाद की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रह जाती है।

वहीं अकादमिक काउंसिल के सदस्यों का कहना है कि ऐसा बदलाव विश्वविद्यालय की निगरानी समिति की सिफारिश के आधार पर ही हो सकता हैं। लेकिन निगरानी समिति में अंग्रेजी विभाग से कोई स्थायी सदस्य ही नहीं है।

डूटा की कोषाध्यक्ष आभा देव हबीब ने कहा कि बीए अंग्रेजी पाठ्यक्रम से महाश्वेता देवी जैसे लेखकों की कहानी को हटाना अनैतिक है। इसमें विश्वविद्यालय प्रशासन की मिलीभगत है। विश्वविद्यालय ने 'भावनाओं को ठेस पहुंचाने' के नाम पर अकादमिक स्वतंत्रता और उच्च शिक्षा में महत्वपूर्ण कठोरता को बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह से त्याग दिया है।


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