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डूबते मोदी को अब सेना की रेस्क्यू टीम का सहारा

देश में काफी कुछ ऐसा हो रहा है जिससे लगता है कि केन्द्र में बैठी नरेन्द्र मोदी सरकार को न तो लोकतंत्र का सलीका है और न ही प्रशासन करने का शऊर

डूबते मोदी को अब सेना की रेस्क्यू टीम का सहारा
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- डॉ. दीपक पाचपोर

भारतीय सेना की केवल उसके पराक्रम व समर्पण के ही नहीं बल्कि अनेक कारणों से बड़ी विश्वसनीयता है। बहुत कुशल, गुणवत्तायुक्त सेवाभाव, राजनीति से उसकी सम्पूर्ण विलगता, धर्मनिरपेक्षता, उच्च आदर्श, मूल्यगत संस्कार व प्रशिक्षण और मानवीय दृष्टिकोण उसे दुनिया की ज्यादातर सेनाओं से एकदम अलग बनाती है। इन कारणों से ही उसकी बहुत उज्ज्वल छवि है।

देश में काफी कुछ ऐसा हो रहा है जिससे लगता है कि केन्द्र में बैठी नरेन्द्र मोदी सरकार को न तो लोकतंत्र का सलीका है और न ही प्रशासन करने का शऊर। पिछले करीब साढ़े नौ वर्षों से जिस तरह से मोदी केन्द्र की सरकार चला रहे हैं, उससे सभी मान्य लोकतांत्रिक परम्पराएं और मर्यादाएं तो ध्वस्त हो ही रही हैं, यह खतरा भी पैदा हो रहा है कि कहीं यह हमारी कार्यप्रणाली की कुरीतियां बनकर सदा-सर्वदा के लिये स्थापित ही न हो जाये। सभी तरह की शक्तियों को अपने हाथों में बटोरकर जैसा राज मोदी जी चला रहे हैं उसमें विपक्ष तो दूर, अपने ही दल के लोगों से तक विचार-विनिमय का कोई स्थान नहीं है। विशेषज्ञों, मातहत अधिकारियों, स्वयंसेवी संगठनों की तो कोई बिसात ही नहीं है। इसके चलते एक नहीं अनेक ऐसे निर्णय लिये गये हैं जिनके कारण देश और जनता को बड़ी कीमतें चुकानी पड़ी हैं। जन धन योजना, उज्ज्वला, स्मार्ट सिटी, मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, नोटबन्दी, जीएसटी, सेंट्रल विस्टा जैसे कामों की लम्बी फेहरिस्त है जो असफल होने के साथ लोगों की बर्बादी का सबब भी बनी हैं। मोदी और भाजपा के लिये बहुत ज़रूरी हो गया है कि कोई उनकी नाकामयाबी को सफल बता सके। विभिन्न तरीकों से वे इसकी कोशिशें तो करते रहते हैं पर लोगों का उनमें भरोसा लौटता हुआ नज़र नहीं आ रहा है।

असफल योजनाओं की पूरी की पूरी श्रृंखला के कारण जहां एक ओर मोदी की छवि तथा विश्वसनीयता गिरी है वहीं पूरी भारतीय जनता पार्टी गहरे राजनैतिक संकट में धंसती चली जा रही है। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में मिली पराजयों के बाद अगले महीने होने जा रहे पांच राज्यों (राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम) में भी भाजपा के लिये जीत की सम्भावनाएं दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही हैं। पिछले 9 वर्षों के सारे छोटे-बड़े चुनावों की तरह हाल में हुए हिप्र-कर्नाटक के चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़े गये थे और आगामी 5 चुनाव भी ऐसे ही लड़े जायेंगे। यहां तक कि लोकसभा के भी। मोदी की दरकी हुई छवि और गिरी हुई साख को ऊर्ध्वगामी बनाने के लिये मोदी और भाजपा को कोई ऐसी संस्था चाहिये जिसकी अपनी छवि व विश्वसनीयता हो। डूबते मोदी के लिये अब तिनके से बढ़कर किसी रेस्क्यू बोट जैसा सहारा भारतीय सेना में दिख रहा है जो मोदी-भाजपा को चुनावी भंवर से निकालकर सुरक्षित किनारे पर पहुंचा सके। इसका लाभ मिलेगा या नहीं-यह तो बाद की बात है, पहली बात तो यह है कि ऐसा प्रयास ही बहुत कुत्सित है। यह एक तरह से हमारी प्रतिष्ठित सेना और समग्र गौरवशाली सैन्य परम्परा का राजनीतिकरण करने जैसा है जिसके बहुत गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।

सभी जानते हैं कि भारतीय सेना की केवल उसके पराक्रम व समर्पण के ही नहीं बल्कि अनेक कारणों से बड़ी विश्वसनीयता है। बहुत कुशल, गुणवत्तायुक्त सेवाभाव, राजनीति से उसकी सम्पूर्ण विलगता, धर्मनिरपेक्षता, उच्च आदर्श, मूल्यगत संस्कार व प्रशिक्षण और मानवीय दृष्टिकोण उसे दुनिया की ज्यादातर सेनाओं से एकदम अलग बनाती है। इन कारणों से ही उसकी बहुत उज्ज्वल छवि है। ऐसे वक्त में जब भारतीय राजनीति लोगों को पूरी तरह से निराश कर रही हो, सरकार के सभी अंग (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका), तमाम संवैधानिक संस्थाएं, मीडिया आदि अपनी साख को पूरी तरह से खो चुके हों, अकेली भारतीय सेना ऐसी है जिसके प्रति जनता के दिलों में आज भी बहुत ऊंचा स्थान है। देश के लिये वह हमेशा उम्मीद की अंतिम किरण बनकर जनता के साथ उसके दुख व तकलीफों में खड़ी मिलती है। युद्ध ही नहीं, शांति काल में भी उसी पर भारतीय जनता का शत-प्रतिशत व आखिरी भरोसा होता है। भूकम्प हो या बाढ़, भूस्खलन हो या आतंकवाद- पीड़ित जनता सेना का बेसब्री से इंतज़ार करती है; और वह कभी निराश नहीं करती। सेना का कहा लोगों द्वारा आंख मूंदकर माना जाता है। ऐसा इसलिये क्योंकि उसकी दशकों में अर्जित की गयी विश्वसनीयता है।

उसकी इसी साख और छवि का फायदा उठाने के लिये केन्द्र सरकार ने निर्णय लिया है कि उसके माध्यम से प्रमुख शासकीय योजनाओं का प्रचार किया जायेगा। तीनों सेनाएं आत्मनिर्भर भारत, सशक्तिकरण व नारी शक्ति की सफलता लोगों तक पहुंचाएंगी। थल सेना, वायुसेना व सीमा सड़क संगठन को सीमाओं पर हुए अधोसंरचना विकास की बात करने को कहा गया है, तो व रक्षा उपक्रम कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देंगे। इतना ही नहीं, सेना के तीनों अंग व उपक्रम तथा रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) दिल्ली, प्रयागराज, पुणे, बेंगलुरु, मेरठ, नासिक, कोल्लम, कोलकाता और गुवाहाटी में रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, मॉल्स एवं पर्यटन स्थलों पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के 822 डिजिटल सेल्फी प्वाइंट बनाएंगे।

महत्वपूर्ण बात यह है कि इन सभी स्थलों पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों के साथ ये सेल्फी प्वाइंट बनेंगे जिससे स्पष्ट है कि एक निर्मल और बहुत सम्मानित संस्था की आड़ में मोदी अपनी असफलताओं को कामयाब बतलाकर न सिर्फ अपनी खोई हुई साख को वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि खुद की गिरती छवि को भी संवारने की कोशिश कर रहे हैं जिसका वे चुनावी लाभ उठा सकें। सेना को अपनी योजनाओं से सम्बद्ध कर इसका सियासी फायदा उठाने की यह परम्परा बहुत घातक है। सेना एक पूर्णत: स्वतंत्र संस्था है जिसका काम सरकार की छवि या साख की नहीं बल्कि देश व जनता की रक्षा करना है। शासकीय योजनाओं को लेकर सभी दलों के अलग-अलग विचार हो सकते हैं। सरकार भी किसी दल के द्वारा ही बनती है। विचार विशेष के आधार पर बनी किसी भी पार्टी की सरकार के पक्ष में प्रचार करना खुद को कोई विचारधारा से जोड़ना होता है।

मोदी ने तमाम संस्थाओं को राजनैतिक रंग में रंग दिया है लेकिन उन्हें कम से कम सेना को तो बख्श देना चाहिये। सेना सरकार का प्रचार विभाग नहीं है। इसके लिये सरकारों के पास पर्याप्त व सक्षम मशीनरी उपलब्ध है। केन्द्र सरकार के पास भी है। पूरा का पूरा सूचना एवं प्रसारण विभाग है जिसके अंतर्गत न जाने कितने प्रभाग हैं और अरबों-खरबों रुपयों का बजट होता है। फिर, हर मंत्रालय-विभाग का अपना प्रचार तंत्र होता है। वैसे भी मोदी खुद पर बड़ी सरकारी राशि खर्च कर अपना प्रचार करते हैं। फिर, मोदी जी हर तरह के शासकीय-गैर सरकारी मंचों का उपयोग खुद के, अपनी सरकार व पार्टी के प्रचार के लिये करते हैं। उनका 'मन की बात' के नाम से कार्यक्रम होता है। सोशल मीडिया पर भी मोदी सक्रिय हैं जो लोगों से आग्रह करते हैं कि उनके यू ट्यूब चैनल को सभी सबस्क्राइब करें, बेल आइकन दबाएं।

प्रतीत होता है कि सरकारी प्रचार तंत्र नाकाम एवं गैर भरोसेमंद साबित हो चुका है इसलिये मोदी को सेना जैसी दमदार साख वाली संस्था का सहारा लेना पड़ रहा है। केन्द्र सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कांग्रेस के महासचिव व प्रचार प्रमुख जयराम रमेश का यह कहना वाजिब है कि पिछले साढ़े नौ साल के दौरान महंगाई, बेरोजगारी व अन्य सभी मोर्चों पर विफलता का सामना करने के बाद मोदी सरकार अब सेना से अपना राजनीतिक प्रचार पाने का बहुत घटिया प्रयास कर रही है। इसे सेना का राजनीतिकरण करने का प्रयास और खतरनाक कदम बताते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उन्होंने अनुरोध किया है कि वे मामले में इस कदम को तुरंत वापस लेने का निर्देश दें।

(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)


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