Begin typing your search above and press return to search.
जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया
जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया

- उम्मीद फ़ाज़ली
जाने ये कैसा ज़हर दिलों में उतर गया
परछाईं ज़िंदा रह गई इंसान मर गया
बर्बादियाँ तो मेरा मुक़द्दर ही थीं मगर
चेहरों से दोस्तों के मुलम्मा उतर गया
ऐ दोपहर की धूप बता क्या जवाब दूँ
दीवार पूछती है कि साया किधर गया
इस शहर में फ़राश-तलब है हर एक राह
वो ख़ुश-नसीब था जो सलीक़े से मर गया
क्या क्या न उस को ज़ोम-ए-मसीहाई था 'उमीदÓ
हम ने दिखाए ज़ख़्म तो चेहरा उतर गया
Next Story


