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'डॉक्टरों-चिकित्सा पेशे पर भरोसा बहाल रहे'

मैक्स अस्पताल संबंधी घटना के बाद दुनिया भर में हो रही स्वास्थ्य जगत की छीछालेदर पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने क्षमा मांगते हुए पहल की है

डॉक्टरों-चिकित्सा पेशे पर भरोसा बहाल रहे
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नई दिल्ली। मैक्स अस्पताल संबंधी घटना के बाद दुनिया भर में हो रही स्वास्थ्य जगत की छीछालेदर पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने क्षमा मांगते हुए पहल की है कि डॉक्टरों, चिकित्सा पेशे पर भरोसा बहाल रहे इसलिए प्रभावी सिफारिशों को लागू किया जाए। अस्पतालों, डॉक्टरों के लिए ये सिफारिशें कानूनी तौर पर अनिवार्य नहीं हैं लेकिन आईएमए ने दो टूक कहा कि लाश के बदले बिल, अनावश्यक बिल, अस्पताल प्रबंधन द्वारा डॉक्टरों पर दबाव नहीं चलेगा।

चिंता जताई कि डॉक्टरों-मरीजों के बीच संबंधों का ग्राफ पहले ही गिर रहा था, हाल ही में दो नवजातों और एक 7-वर्षीय बच्ची के मामलों से और झटका लगा है। यह मानते हुए आईएमए अध्यक्ष, पदमश्री डा. केके अग्रवाल ने कहा कि इन हालात से डॉक्टर, स्वास्थ्य उद्योग, मरीज, मीडिया, राजनेता, सभी नाखुश हैं।

जनता की अशांति, भरोसा टूटने की स्थिति न तो डॉक्टरों के हित में है, न ही उन्हें इसकी वजह बनना चाहिए। इसी तरह, मरीजों को भी यह तथ्य समझना चाहिए कि डॉक्टर भी मनुष्य हैं और उनसे भी गलती हो सकती है। साथ ही किसी एक घटना से यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि आगे भी ऐसा ही होगा।

उन्होंने माना कि एक ओर, डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है, ऐसे कामों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जो उन्होंने न किया हो लेकिन यह भी सच है कि डॉक्टरों-अस्पतालों को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। आज, निजी क्षेत्र के चिकित्सक 80 प्रतिशत रोगियों को देख रहे हैं, वो भी उच्च गुणवत्ता वाली सेवाओं के साथ।

वो भी इतनी कम फीस में, जो कि विकसित देशों के मुकाबले बेहद कम है। आईएमए के मानद महासचिव डॉ. आरएन टंडन की मौजूदगी में डा. केके अग्रवाल ने अधिक पारदर्शी चिकित्सा व्यवसाय को बनाने पर बल देते हुए उन्होंने कहा किआईएमए सिस्टम में सुधार के प्रति वचनबद्ध है। रोगियों के अनुपात में डॉक्टर बहुत कम हैं, इससे डॉक्टर बहुत तनाव में रहते हैं व ठीक से उपचार के बाद भी एक रोगी का स्वस्थ होना कई अन्य कारणों पर भी निर्भर करता है।

लेकिन डॉक्टरों पर हमला, उनसे झगड़ना कतई उचित नहीं है जनता को विश्वास करना होगा। उन्होने कहा कि सभी डॉक्टरों को आईएमए अलर्ट को फॉलो करने की जरूरत है, यानी मरीज की बात को ध्यान से सुने, समझे समझाने, समीक्षा करने और धन्यवाद कहने की जरूरत है। आईएमए सभी राज्य सरकारों को जहां सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों को सुधारने के लिए लिख रहा है वहीं कई सुझाव भी जारी किए हैं।

आईएमए की सिफारिशें

डॉक्टरों को प्राथमिक रूप से एनएलईएम औषधियों को व जनाऔषिधी को बढ़ावा दें। सरकार एनएलईएम और गैर-एनएलईएम दोनों श्रेणियों के तहत सभी डिस्पोजेबल्स को वर्गीकृत करें और आवश्यक दवाओं को कैप करें। बिलिंग पारदर्शी हो और सभी विशेष टैस्ट अच्छी तरह से मरीज को बताकर ही करवाएं। अस्पताल किफायती और खर्चीले दोनों तरह के कमरों, सुविधाओं के बारे में दाखिले के समय समझा दें। प्रवेश के समय अस्पताल का अनुमान असली बिल के समीप हो बताएं। चिकित्सक को मौत और अप्रत्याशित जटिलताओं और परिणामों से खर्च बढ़ने के बारे में पहले ही समझा देना चाहिए।

डॉक्टर जब किसी मरीज का केस हाथ में लेते हैं तब उनकी जिम्मेदारी बनती है कि मरीज की उपेक्षा न की जाए। इमरजेंसी सेवाओं की जिम्मेदारी सरकार की होती है और निजी क्षेत्र को ऐसी सेवाओं के लिए सब्सिडी दी जानी चाहिए। महिला भ्रूण हत्या, कमीशन के लिए जीरो टॉलेरेंस हो व चिकित्सा प्रतिष्ठान अपने रेफरल शुल्क प्रणाली को फिर से देखें। कोई अस्पताल अपने सलाहकारों को टारगेट पूरे करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। अनुबंध समझौता ऐसे हों व अस्पतालों को सलाहकारों से सेवा शुल्क नहीं लेना चाहिए। दवाओं और उपकरणों का विकल्प रोगी की सामर्थ्य के आधार पर तय होना चाहिए।

सभी अस्पतालों को बिना किसी भेदभाव के ईडब्ल्यूएस, बीपीएल, और गरीब मरीजों के प्रति प्रतिबद्धता का पालन करना चाहिए। नैतिकता, एमसीआई एथिक्स का पालन किया जाए। मृत शरीर का सम्मान और गरिमा प्रदान की जाए। धर्मार्थ अस्पतालों को मुफ्त चिकित्सा प्रदान करने की जरूरत है। रोगी को अनुरोध पर 72 घंटों के भीतर मेडिकल रिकॉर्ड प्राप्त दिया जाए। सेकेंड ओपिनियन के लिए भी सुविधा दी जाए। अस्पताल को भुगतान न करने पर मरीज की चिकित्सा रोकने का अधिकार नहीं है।

सरकार प्रतिपूर्ति के लिए एक तंत्र बनाए। सभी मरीज समान हैं। बीपीएल, एपीएल, ईडब्ल्यूएस, अमीर, या गरीब सभी को एक ही ध्यान और उपचार मिलना चाहिए। नियम और उत्तरदायित्व के खिलाफ नहीं, लेकिन राज्य स्तर पर एक सिंगल विंडो जवाबदेही करनी स्टेट मेडिकल काउंसिल को सक्रिय हो। संस्थानों में ट्रांसजेंडर पॉलिसी हो व सभी सरकारी अस्पतालों को सुधारा जाए। किसी भी डॉक्टर को झूठा या गलत प्रमाण पत्र जारी नहीं करना चाहिए।

मैक्स अस्पताल से भाजपा का क्या रिश्ता है : आप

दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने मैक्स अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने का विरोध कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर सोमवार को निशाना साधा। आप ने भाजपा से पूछा है कि अस्पताल और पार्टी के बीच क्या संबंध है। आप दिल्ली के संयोजक गोपाल राय ने मीडिया से मुलाकात में कहा, जिस शर्मनाक तरीके से भाजपा मैक्स अस्पताल का समर्थन कर रही है, हम भाजपा के लोगों से यह पूछना चाहते हैं कि बच्चे की मां के लिए किसी स्नेह के बगैर आपको मैक्स अस्पताल क्यों पसंद है।

अस्पताल के साथ आपका क्या रिश्ता है। इसके पीछे क्या सौदेबाजी है। राय ने कहा कि हम डॉक्टरों या निजी अस्पतालों के खिलाफ नहीं हैं, केवल उन अस्पतालों के खिलाफ हैं जो लोगों को लूट रहे हैं। दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को एक नवजात को गलती से मृत घोषित करने के लिए अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया था। रविवार को भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने इस फैसले पर सवाल उठाया था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को कहा था कि उनकी सरकार निजी अस्पतालों के खिलाफ नहीं है लेकिन वह अमानवीय आपराधिक लापरवाही पर चुप नहीं रह सकती।

साथ ही उन्होंने ही मैक्स अस्पताल को समर्थन देने के लिए मनोज तिवारी पर हमला किया। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) ने सरकार द्वारा अस्पताल का लाइसेंस रद्द करने का निर्णय वापस नहीं लिए जाने पर गुरुवार से हड़ताल पर जाने की धमकी दी है।

30 नवम्बर को मैक्स अस्पताल ने उसी वक्त जन्मी बहन के साथ एक नवजात को मृत घोषित कर प्लास्टिक के थैले में परिजनों को बच्चे को सौंप दिया था। दफनाने के लिए ले जाते वक्त परिजनों ने बैग में हलचल देखी जिसके बाद नवजात को पीतमपुरा के एक क्लीनिक में भर्ती कराया गया जहां बुधवार को उसकी मृत्यु हो गई।


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