स्थगन नहीं, अध्यादेश चाहिए
सर्वोच्च अदालत द्वारा 11 लाख आदिवासियों की बेदखली के आदेश पर केन्द्र सरकार ने भले ही स्थगन ले लिया हो, पर आदिवासी सरकार के इस निर्णय से खुश नहीं है

नई दिल्ली। सर्वोच्च अदालत द्वारा 11 लाख आदिवासियों की बेदखली के आदेश पर केन्द्र सरकार ने भले ही स्थगन ले लिया हो, पर आदिवासी सरकार के इस निर्णय से खुश नहीं है, उऩका मानना है, कि चुनाव के बाद उन्हें फिर बेदखल कर दिया जाएगा, क्योंकि देश के संसाधनों पर बड़े औद्योगिक घरानों की नजर है। आदिवासी संगठनों का कहना है, कि सरकार जब बाकी मामलों में अध्यादेश ला सकती है, तो इस मामले में क्यों नहीं, उन्हें स्थगन नहीं अध्यादेश चाहिए। अपनी मांग को लेकर देशभर के आदिवासी कल राजधानी दिल्ली में रैली निकालेंगे। इस रैली का नेतृत्व गुजरात के आदिवासी संगठन कर रहे हैं।
आज पत्रकारों से चर्चा करते हुए आदिवासी अधिकार मंच के नेता प्रफुल्ल बसावा ने कहा, कि सरकार की मंशा पर भी हमें शक है क्यूंकि उसने केस की पैरवी में बहुत लापरवाही बरती, कोर्ट की अंतिम चार सुनवाई में सरकार ने अपना पक्ष रखने के लिए कोई वकील नहीं भेजा| उन्होंने कहा, कि वन अधिनियम 2006 साफ साफ कहता है कि वन भूमि में पीढ़ियों से रह रहे अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी के वन अधिकारों और कब्जे को पहचान किया जाये| इस तरह के जंगलों में आदिवासी पीढ़ियों से निवास कर रहे है लेकिन उनके अधिकारों को दर्ज नहीं किया जा सका, इसलिए उनके दावे की रिकॉर्डिंग के लिए एक रूपरेखा बनाई जाये और सबूत जुटाकर वन भूमि पर उनके अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए, पर राज्य सरकारों ने इस कानून को लागू करने में लापरवाही बरती। उन्होंने मांग की, कि वनाधिकार कानून को सख्ती से लागू किया जाए,. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पश्चात जिन परिवारों पर विस्थापन का संकट मंडरा रहा है केंद्र सरकार ने जमीन पर मालिकाना हक/पट्टा दिलाने के लिए अध्यादेश लाए| जिन लोगों ने अभी तक दावा नहीं किया है, उन्हें भी मालिकाना हक दिया जाए।. संविधान की पांचवी और छठी अनुसूची को सख्ती से लागू किया जाए| साथ ही ग्रामसभा की अनुसूची 5 के तहत दिए गए अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए। आदिवासी संगठन कल 11 बजे से मंडी हाउस से पार्लियामेंट स्ट्रीट तक रैली निकालेंगे, उसके बाद सभा करेंगे। इस रैली में 11 राज्यों के आदिवासी हिस्सा लेंगे।


