पूर्ण निद्रा और पूर्ण जागृत अवस्था में स्वप्न नहीं आता : विजयराज
प्रज्ञानिधि विश्ववल्लभ आचार्य श्री विजयराज जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति पर्व प्रधान संस्कृति है। पर्व दो प्रकार के होते हैं-एक लौकिक एवं दूसरा लोकोत्तर

राजनांदगांव। प्रज्ञानिधि विश्ववल्लभ आचार्य श्री विजयराज जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति पर्व प्रधान संस्कृति है। पर्व दो प्रकार के होते हैं-एक लौकिक एवं दूसरा लोकोत्तर। लौकिक पर्व वे होते हैं जिसमें व्यक्ति खाता-पीता और अच्छे कपड़े पहनता है। इसमें हर्ष होता है और चमक-दमक होती है। लोकोत्तर पर्व वे होते हैं जिसमें महापुरूषों का स्मरण किया जाता है।
आचार्य श्री ने फरमाया कि आज धनतेरस है।
यह लौकिक और लोकोत्तर दोनों तरह का पर्व है। यह संसारियों के लिए लौकिक पर्व है किन्तु संतजनों के लिए लोकोत्तर पर्व है। महापुरूषों के स्मरण का दिवस भी है। उनके त्याग-बलिदान को याद करने का दिन है। ये तीन-चार दिन प्रभु महावीर और उनके प्रथम शिष्य गणधर गौतम के स्मरण का दिवस है। प्रभु महावीर 24वें तीर्थकर हुए। तीसरे आरा के चौथे भाग में एक तीर्थकर ऋषभदेव हुए और शेष चतुर्थ आरा में 23 तीर्थकर हुए। पावा पुरी में भगवान महावीर का अंतिम चातुर्मास हुआ।
उदयाचल की विजय वाटिका में आचार्य श्री ने अपने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में फरमाया कि पूर्ण निद्रा और पूर्ण जागृत अवस्था में स्वप्न नहीं आते। स्वप्न आते अधूरी निद्रा में, मोहनीय कर्म उदय होने के कारण और निद्रा आती है दर्शनावर्णीय कर्म के उदय होने के कारण। स्वप्न एक बहुत बड़ा शास्त्र है। 72 प्रकार के स्वप्न होते हैं। स्वप्न के माध्यम से पूर्वाभास हो जाता है। जिसकी मति अच्छी होती है, उसे सुमति कहा जाता है और सुमति की संगति सुसंगति होती है। दूध को फाड़ने का काम खटाई करता है। इसलिए दूध को खटाई से, कपड़े को कीचड़ से, आंख को धूल से और जीवन को गलत संगति से बचाना चाहिए। जिसका पुण्योदय होता है, उसी को संयम मिलता है। व्यक्ति को अच्छी संगति और संयमित जीवन जीना चाहिए।


