बिना शोर की दिवाली
इस बार दीवाली की फिजा जितनी शांत थी उतनी पहले कभी देखने नहीं मिली

इस बार दीवाली की फिजा जितनी शांत थी उतनी पहले कभी देखने नहीं मिली। न शोर शराबा न आतिशबाजी न ही बाजा गाजा की भरमार लोगों के जीवन का महत्वपूर्ण त्यौहार मानो अचानक बदल गया। बाजार की चहल पहल केवल घरों की लक्ष्मी पूजा तक सीमित रही थोड़े बहुत बच्चों की खुशियां बाजार से जरूर खरीद लिए गए किंतु पूरे में देखेंं तो ऐसी शांत दीवाली इस सदी में पहली बार ही देखने मिली। इसके पीछे के कारणों में जाएं तो लोगों में प्रदूषण के प्रति जागरूकता के साथ-साथ सरकार की प्रतिबद्धता भी बहुत काम कर गई है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के चलते पटाखों की आवाज और फोड़ने की समय सीमा ने लोगों को अनुशासित बनाए भी रखा। शाम 6 बजे से आसमान में हर साल दिखने वाली रंग बिरंगी लड़ियां इस बार न के बराबर दिखी। पटाखों की धुआं और उससे उठने वाले जहरीले रसायन से विषाक्त होते वातावरण के लिए सबने सावधानी बरती है। इसके साथ ही पटाखों और बाजों की कानफोडू आवाज से भी जिंदगी को राहत मिली है।
दिल्ली में तो पटाखों की बिक्री पर ही प्रतिबंध लगा दिया गया था। पिछले सालों में दिल्ली में पटाखों की विषैली धुआं कई-कई दिनों तक वातावरण में लिपटी रही जिससे लोगों का स्वास्थ्य पर जबर्दस्त असर हुआ और कोर्ट को बंदिश लगानी पड़ी। किंतु भारतीय परंपराओं को एकदम से नहीं बदला जा सकता जैसे तैसे कुछ कम आवाज के पटाखे दिल्ली में भी बाहर से लाकर फोड़े गए। राज्य सरकार के पर्यावरण विभाग की लगातार पहल तथा प्रदेश सरकार के संकल्प से इस बार दीवाली में वायु प्रदूषण पिछले साल की तुलना में करीब 22 प्रतिशत कम रहा।
यह सरकार की अपील और आम जनता के सकारात्मक रवैये का परिणाम है कि हम अपने स्वास्थ्य व समाज के प्रति सजग रहें। रायपुर में ध्वनि प्रदूषण भी कम रहा पिछले साल 97.21 डेसीबल की जगह 91.33 डेसीबल रहा। रिपोर्ट है कि ऐसी स्थिति सभी जगह है। पर्यावरण संरक्षण मंडल के अध्यक्ष अमन कुमार सिंह ने प्रदूषण में आई गिरावट के लिए आम लोगों के सहयोग को सराहा है। पटाखों के कम होने से दुर्घटनाएं भी कम सुनने को मिली है। बच्चों में भी यह अवधारणा घर करने लगी है कि पटाखों और उंची आवाजों वाले बाजों के उपयोग से स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है अत: स्कूली जीवन से ही इस पर नियंत्रण जरूरी है।
वहीं इस बार शराब दुकान सरकार के हाथ में होने से शराब बिक्री काफी नियंत्रण में रही। चोरी छुपे गांवों में पहुंचने वाली शराब जुए फड़ भी कम ही पकड़े गए हैं। अगर आम जनता सुकुन की दीवाली के लिए इसी तरह शांत वातावरण बनाए रखे तो यह न केवल स्वास्थ्य के लिए अच्छा होगा बल्कि जीवन में अनुशासन भी आएगा अच्छा रहेगा अगर मिट्टी के दीए ही जलें किसी का दिल, घर बार न जले। पूरे देश में नोटबंदी और जीएसटी की मार के चलते 40 प्रतिशत कारोबार में गिरावट आई है। और मायूसी होने के बाद भी शांत वातावरण लोगों को अच्छा लगा।


