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महिला सशक्तीकरण पर बेईमान रवैया

देश एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजनों का साक्षी बनने के लिए तैयार हो चुका है

महिला सशक्तीकरण पर बेईमान रवैया
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देश एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजनों का साक्षी बनने के लिए तैयार हो चुका है। सरकारी, गैर-सरकारी संस्थानों में महिलाओं का सम्मान करने के लिए कार्यक्रम किए होंगे। पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होंगे, जिनमें भारत में स्त्रियों को देवी का दर्जा दिए जाने की महान परंपरा की बातें होंगी। 21वीं सदी में देश में सेना, विज्ञान, शिक्षा, खेल-कूद, कारोबार, कला-संस्कृति हर क्षेत्र में महिलाओं ने कितनी उन्नति की है, इसके उदाहरण पेश किए जाएंगे।

महिला राष्ट्रपति से लेकर विभिन्न किस्म के उच्च पदों पर बैठी महिलाओं की जीवनगाथाएं प्रस्तुत होंगी। हर साल यही सब होता आया है और आगे भी होता रहेगा। स्त्री शक्ति को रेखांकित करते ऐसे आयोजनों में पीड़ित, शोषित और वंचित महिलाओं की बातें बड़े सुविधाजनक तरीके से किनारे कर दी जाती हैं। मौजूदा सरकार का भी यही तरीका है। अब 2014 वाला दौर नहीं रहा, जब निर्भया कांड के बाद सरकार के खिलाफ आक्रोश प्रकट करने के लिए जनता अगर सड़कों पर उतर आई तो तत्कालीन सरकार ने ऐसा करने से जनता को नहीं रोका, न ही इस मामले को दबाने की कोशिश की या इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा कि उनके कार्यकाल में एक जघन्य अपराध घटित हुआ है। बल्कि तब कांग्रेस सरकार ने निर्भया के इलाज की पूरी जिम्मेदारी उठाई, पीड़िता की मौत के बाद उसके परिवार को राहुल गांधी ने सहारा दिया, उनके भाई को पायलट बनाने में मदद की, लेकिन कभी इस का कोई प्रचार नहीं किया।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस बरसों-बरस मनाने और लैंगिक समानता का ढोल पीटने के बावजूद यह एक कड़वी हकीकत है कि महिलाओं के लिए बराबरी और सम्मान की सोच समाज में अब तक व्याप्त नहीं हो पाई है। किस्म-किस्म के भेदभाव और अत्याचार महिलाओं पर होते रहे हैं और इसके लिए किसी सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि इसका व्यापक संबंध समाज की मानसिकता से जुड़ा है। सरकारें अपने फैसलों और नीतियों से इस मानसिकता को सुधारने का काम अवश्य कर सकती हैं, साथ ही महिला सशक्तिकरण जैसे विस्तृत विषय को राजनीति से दूर रख सकती हैं। खेद है कि मौजूदा केंद्र सरकार में ऐसा नहीं हो रहा है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे एकाध नारे और दो-चार योजनाओं के साथ प्रधानमंत्री नारी सशक्तीकरण का श्रेय लेना चाहते हैं। नये संसद भवन में महिला आरक्षण पर विधेयक पारित करवा कर उन्होंने इतिहास रचने का दावा भी किया, हालांकि उनके दावों की हकीकत कई बार जनता देख चुकी है। महिला सुरक्षा और सम्मान को लेकर उनका दुचित्तापन भी अब सामने आ चुका है।

बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी प.बंगाल में थे, जहां हाल ही में उत्तरी 24 परगना जिले के संदेशखाली में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख पर लगा है। शाहजहां शेख फिलहाल कानून की गिरफ्त में है। प.बंगाल में भाजपा इस बार लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस से आगे निकलना चाहती है।

लिहाजा प्रधानमंत्री ने उत्तरी 24 परगना जिले के बारासात में भाजपा की नारी शक्ति अभिनंदन रैली की और इसमें कहा कि संदेशखाली में जो कुछ भी हुआ, उससे किसी का भी सिर शर्म से झुक जाएगा। लेकिन टीएमसी सरकार अपराधी को बचाने पर तुली हुई है। इसके बाद उन्होंने बताया कि उनके दस साल के शासनकाल में महिलाएं कितनी मजबूत हुई हैं। श्री मोदी ने संदेशखाली की पीड़ित महिलाओं से मुलाकात भी की। गनीमत है कि संदेशखाली की पीड़िताओं की व्यथा सुनने का वक्त प्रधानमंत्री को मिला। अन्यथा हाथरस, कठुआ, उन्नाव की पीड़िताएं अपने दर्द और अन्याय को भुगतते हुए चली गईं।

मणिपुर की महिलाओं के दर्द का जिक्र तो प्रधानमंत्री करना ही नहीं चाहते। वैसे दाद देनी पड़ेगी प्रधानमंत्री के बड़बोलेपन और मिथ्यालाप के दुस्साहस की, टीएमसी के शासन में महिलाओं पर क्या अत्याचार हुआ है, इस पर वे खूब बरस रहे हैं, लेकिन कानपुर में दो नाबालिग बच्चियों को सामूहिक बलात्कार के बाद मार दिया गया और अब उनमें से एक के पिता ने भी आत्महत्या कर ली है, क्योंकि आरोपी उन पर समझौते का दबाव बना रहे थे, इस पर प्रधानमंत्री शायद ही कुछ कहें, क्योंकि उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार है।

इसी तरह उत्तराखंड में पिछले साल अंकिता भंडारी नामक युवती की हत्या कर दी गई थी। जिस रिसार्ट में अंकिता काम करती थी, वहां के मालिक ने कथित तौर पर कुछ लोगों को विशेष सेवा देने का दबाव अंकिता पर बना रहे थे, और इंकार करने पर उसे मार ही दिया गया। कार्रवाई के नाम पर रिसार्ट का वो हिस्सा बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया, जहां से सबूत मिल सकते थे। इस पूरे मामले को प्रमुखता से उठाने और इस पर जनआंदोलन खड़े करने वाले पत्रकार आशुतोष नेगी को उत्तराखंड पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस का कहना है कि श्री नेगी लोगों को उकसा रहे थे। हालांकि उनकी गिरफ्तारी के बाद पौड़ी में बड़ी संख्या में लोगों ने जुलूस निकाल कर पुलिस को गलत साबित कर दिया है। अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए लोगों में बेचैनी और सरकार के लिए नाराजगी दिख रही है।

भाजपा के 10 सालों के शासनकाल में महिलाओं पर अत्याचार तो बढ़ा ही है, उससे ज्यादा दुख की बात यह है कि अपराधों को रोकने की जगह मामले को राजनैतिक लाभ-हानि के मुताबिक संभाला जा रहा है। प.बंगाल में राजनैतिक लाभ दिखा तो प्रधानमंत्री वहां महिला न्याय की बात करने पहुंच गए, लेकिन मणिपुर, उत्तराखंड या उत्तर प्रदेश के मामलों को अनदेखा कर गए। महिला सशक्तीकरण को लेकर अपनाई जा रही इस बेईमानी के बीच किस तरह अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता बची रहेगी, यह विचारणीय है।


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