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केएलएफ 'भाव संवाद' में पुस्तक 'एक देश बारह दुनिया' पर हुई चर्चा

'भाव संवाद' श्रृंखला की इस कड़ी में लेखक से बातचीत कर रहे अनुराग द्वारी ने पुस्तक में से कई अंश पढ़ते हुए शिरीष से यह प्रश्न भी पूछा कि इस पुस्तक का फार्मेट क्या है

केएलएफ भाव संवाद में पुस्तक एक देश बारह दुनिया पर हुई चर्चा
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नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में 'कलिंगा साहित्य महोत्सव' द्वारा आयोजित ऑनलाइन 'भाव संवाद' श्रृंखला की कड़ी में 'एक देश बारह दुनिया' के लेखक शिरीष खरे से एनडीटीवी के रेसिडेंस एडिटर अनुराग द्वारी ने उनकी इस पुस्तक से जुड़े अनुभवों पर एक लंबी बातचीत की। बातचीत के दौरान शनिवार को शिरीष ने हाल ही में 'राजपाल एंड सन्स' से प्रकाशित अपनी पुस्तक के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 'एक देश बारह दुनिया' उनके रिपोर्ट और आलेखों का संकलन नहीं है, बल्कि समाचारों से इतर इस देश की ऐसी बारह जगहों की गहन पड़ताल का ब्यौरा है, जिनमें भारतीय गांवों से जुड़े मुद्दों को लंबे रिपोर्ताज की तर्ज पर अलग-अलग कहानियों की तरह बड़े इत्मीनान और सहजता के साथ नए सिरे से लिखा गया है। इन सच्ची कहानियों में असली घटनाएं और पात्र हैं, जिन्हें ज्यादातर जगहों पर उनके असल नामों के साथ ज्यों के त्यों विवरणों के साथ रखा गया है।

'भाव संवाद' श्रृंखला की इस कड़ी में लेखक से बातचीत कर रहे अनुराग द्वारी ने पुस्तक में से कई अंश पढ़ते हुए शिरीष से यह प्रश्न भी पूछा कि इस पुस्तक का फार्मेट क्या है। इस बारे में बात करते हुए शिरीष ने बताया कि पुस्तक में कहीं यात्रा-वृत्तांत, कहीं संस्मरण तो कहीं डायरी जैसी साहित्यिक विधाओं का भी प्रयोग किया गया है। लेकिन, यह सारी विधाएं आखिरकार होती कहानियां ही हैं तो इन्हें ऐसी कहानियों के रुप में समझा जाए जो पिछले एक-डेढ़ दशक में भारतीय गांवों, जिनमें हिंदी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, छत्तीसगढ़ी, बुंदेलखंडी, राजस्थान के थार और जनजातीय बोलियों से जुड़े लोगों की व्यथा है।

शिरीष खरे अपनी ग्रामीण पत्रकारिता से जुड़ी चुनौतियों को साझा करते हुए एक जगह कहते हैं, इसमें रिपोर्टिग के दौरान जुड़ी उन घटनाओं को विस्तार दिया गया है, जो रिपोर्टिग में शामिल नहीं हो सकती थीं, लेकिन जिनके बारे में कहना बहुत जरूरी लगता रहा था, इसलिए मैंने कुछ वर्षों के दौरान अपनी पत्रकारिता से संबंधित बारह जगहों को चुना और रिपोटिर्ंग के दौरान के तजुर्बों को इस तरह बुना, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी कहानी कहते हुए कई रोचक आयामों की तरफ ध्यान खींचता है, ज्यादातर जगहों पर ऐसे व्यक्ति हमें भावुक कर देते हैं।

इन दोनों पत्रकारों के बीच हुए इस आपसी संवाद में पुस्तक के बहाने यह बात भी स्पष्ट तरीके से सामने आई कि देश के विभिन्न स्थानों पर कई बातें एक समान और सामान्य दिखने के बावजूद जब उनकी कहानियां लिखी जाती हैं तो क्यों स्थान विशेष के संदर्भ के अनुसार उसकी दुनिया बदल जाती है। फिर कहीं मुद्दे, कहीं लोगों के जन-जीवन तो कहीं उनकी चुनौतियों और संघर्षों को लेकर एक देश के भीतर ही कई तरह की दुनियाएं नजर आती हैं।

उदाहरण के लिए, भूख को लेकर ही यदि कोई समाचार आधारित कहानी लिखनी है तो महाराष्ट्र में विदर्भ अंचल की मेलघाट पहाड़ियां हमें कुपोषण की समस्या की जड़ों की तरफ ले जाती है, जहां खासकर पिछले पांच दशकों में जंगलों से आदिवासियों को नागपुर और मुंबई जैसे शहरों की तरफ पलायन करने के लिए मजबूर किया गया है। इस तरह, व्यवस्थागत तरीके से जंगल से आदिवासियों के जुड़ाव तथा अधिकारों को समाप्त करके एक आत्मनिर्भर समाज को शहरी लोगों का मोहताज बना दिया गया है।


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