गीताश्री के उपन्यास 'हसीनाबाद' पर चर्चा
जागरण वातार्लाप में यहां शुक्रवार को गीताश्री के उपन्यास 'हसीनाबाद' पर चर्चा की गई। लेखिका ने कहा कि स्त्री किसान की तरह खुद की ही नहीं, बल्कि दूसरों की आंखों में भी सपने बोती है

वाराणसी। जागरण वातार्लाप में यहां शुक्रवार को गीताश्री के उपन्यास 'हसीनाबाद' पर चर्चा की गई। लेखिका ने कहा कि स्त्री किसान की तरह खुद की ही नहीं, बल्कि दूसरों की आंखों में भी सपने बोती है। पुरुष प्रधान देश में नारी मन में ममता, करुणा, दया का भाव रहता है। वह सदैव दूसरों की भलाई में काम करती रहती है। इस उपन्यास में स्त्री की भयावह दशा को जीवंत किया गया है। दैनिक जागरण की 'हिंदी हैं हम' मुहिम के तहत नदेसर स्थित दफ्तर सभागार में आयोजित जागरण वातार्लाप में लेखिका गीताश्री ने अपनी पुस्तक 'हसीनाबाद' के संबंध में कार्यक्रम का संचालन कर रहे बीएचयू के हिंदी विभाग के प्रो. सदानंद शाही से बातचीत की। लेखिका ने रचना और किरदारों से जुड़े तमाम बिंदुओं के साथ-साथ आयोजन में जुटे शहर के लोगों के सवालों के जवाब भी दिए।
ढाई दशक की पत्रकारिता के बाद साहित्य जगत में प्रवेश और झारखंड की बदनाम बस्ती पर लेखन की सार्थकता के संबंध में गीताश्री ने सधे अंदाज में बताया कि खतरनाक समय में कुछ लिखने की हिम्मत जुटाना बेहद कठिन था, लेकिन राजनीति से परे रचा गया यह साहित्य जन्म जन्मान्तर तक लोगों के जेहन में बना रहेगा।
उन्होंने उपन्यास की पृष्ठभूमि के संबंध में बताया कि झारखंड का छोटा सा कस्बा हसीनाबाद सामंतवादी सोच की पराकाष्ठा वाली जगह थी। अय्याशी के लिए कई मोहल्ले और गलियां तो बदनाम हैं, लेकिन पूरे कस्बे को बदनाम बना दिया जाना कहां का न्याय है? लेकिन सामंतवादियों ने ऐसा कर दिखाया। इसके कारणों का धरातल पर उतर कर आकलन के बाद सजीव चित्रण किया गया।


