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नील नदी की दबी हुई शाखा की खोज

वैज्ञानिकों ने नील नदी की एक लंबे समय से दबी हुई शाखा की खोज की है जो कभी मिस्र में 30 से अधिक पिरामिडों के किनारे बहती थी.

नील नदी की दबी हुई शाखा की खोज
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इस खोज से इस रहस्य को सुलझाने की उम्मीद है कि प्राचीन मिस्रवासियों ने प्रसिद्ध स्मारकों को बनाने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों को वहां कैसे पहुंचाया.

मिस्र के पिरामिडों के बारे में सबसे आश्चर्यजनक सवालों में से एक यह है कि प्राचीन मिस्रवासी इतने भारी पत्थरों को ऐसी जगह कैसे ले जाने में सक्षम थे, जब इतने भारी पत्थरों को ले जाने के लिए कोई मशीन या वाहन नहीं थे.

अब वैज्ञानिकों को मिस्र के गीजा पिरामिड के पास नील नदी की दबी हुई शाखा मिली है. सदियों पहले नील नदी यहां से होकर गुजरती थी. गीजा पिरामिड के पास जो शाखा मिली है वह सहस्राब्दियों तक रेगिस्तान और खेत के नीचे दबी हुई थी.

इस पर शोध रिपोर्ट गुरुवार को प्रकाशित हुई है. विशेषज्ञों के मुताबिक नदी की यह शाखा यह भी बताती है कि 3,700 से 4,700 साल पहले इन पिरामिडों को एक विशेष श्रृंख्ला में क्यों बनाया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि तब नदी की मौजूदगी के कारण यह हरा-भरा इलाका था और आज जैसा रेगिस्तान नहीं था. यहां पर 31 पिरामिड एक श्रृंखला में बनाए गए थे.

कैसे हुई खोज

प्राचीन मिस्र की राजधानी मेमफिस के पास की पट्टी में गीजा का पिरामिड, दुनिया के सात अजूबों में से एकमात्र जीवित संरचना है. साथ ही खफरे, चेप्स और मायकेरिनोस पिरामिड भी शामिल हैं.

पुरातत्वविदों का लंबे समय से मानना था कि पिरामिडों के पास एक जलमार्ग रहा होगा, जिसका इस्तेमाल प्राचीन मिस्रवासी निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए करते थे.

इस शोध के मुख्य लेखक इमान घोनिम ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "लेकिन कोई भी इस विशाल जलमार्ग के स्थान, आकार या वास्तविक पिरामिड स्थल से निकटता के बारे में निश्चित नहीं था."

शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नदी के मार्ग का पता लगाने के लिए रडार सैटेलाइट इमेजरी का भी इस्तेमाल किया. रडार के माध्यम से रेत के भीतर नदी संरचनाओं की खोज की गई.

घोनिम ने कहा, "रडार ने उन्हें रेत की सतह में घुसने और दबी हुई नदियों और प्राचीन संरचनाओं समेत छिपी हुई विशेषताओं की छवियां बनाने की अनूठी क्षमता दी."

कम्युनिकेशन अर्थ एंड एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित शोध में पिरामिडों के पास रेत के नीचे दबी हुई नील नदी की मौजूदगी की पुष्टि की गई है.

शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि 4,200 साल पहले नदी में भयंकर सूखे के कारण नदी का यह हिस्सा सूख गया और रेत के नीचे दब गया था.


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