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डिस्चार्ज

उसने चिठ्ठी लिखी। लिफ़ाफ़े में भरा और टेबुल पर रखकर पोस्ट ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा चिठ्ठी के बगल में ही मोबाइल आराम फरमा रहा था

डिस्चार्ज
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- मार्टिन जॉन

उसने चिठ्ठी लिखी। लिफ़ाफ़े में भरा और टेबुल पर रखकर पोस्ट ऑफिस जाने की तैयारी करने लगा चिठ्ठी के बगल में ही मोबाइल आराम फरमा रहा था। उसे देखते ही उसके होठों पर एक कुटील मुस्कान तैर गई , 'हेलो , अभी तक जिंदा हो ? ' उसने तंज कसा।
'क़यामत तक जिंदा रहूँगी !

'यह भी कई जीना !......कछुए की तरह !....वन जी से भी कम स्पीड !'
' आखिर में कछुए की ही जीत हुई थी।'
'हाऊ बोरिंग स्टोरी !....आउट ऑफ़ डेटेड !....मुझे देखो, फोरजी स्पीड !...ग्लोरियस लाइफ़ !'
'दूसरे के दम पर !'

'सो व्हाट ?....इसी दम पर तुम्हारे साथियों को कब्रिस्तान पहुँचा चुका हूँ . ......अब तेरी बारी है .'
'मुझे नेस्तनाबूत करने का ख्व़ाब मत देखो . जब तक तुम में ऊर्जा है , खूब बोलियाँ निकलेंगी ,दुनिया तेरी मु_ियों में रहेगी .......उसके बाद टाय- टाय फिस्स !'
'फ़ास्ट कम्युनिकेशन के ज़माने में जो प्रोग्रेस चाहता है वह उर्जा से प्यार करता है।....तरक्की और उर्जा में गहरा रिश्ता है।'
'कोई भी रिश्ता दिल का रिश्ता से बड़ा नहीं होता।

'व्हाट दिल विल ?...जेट युग में इसे कौन पूछता है !'
'तुम क्या जानो दिल की अहमियत !....दिल की बदौलत दुनिया बदसूरत होने से बची हुई है।......तुम तो बगैर रूह वाला जिस्म हो।
'फिर भी जमाना इस जिस्म का दीवाना है।'

'इस दीवानगी में ज़ज्बात की कोई जगह नहीं .....संवेदना का कोई मोल नहीं ....टोटली मेकानायिज्ड रिलेशन ।'
'और तुम्हारा रिलेशन?'

'मुझे नाज़ है सदियों पुराने रिश्ते पर . ........मेरे हर हर्फ में रूह बसती है . ......हर लफ़्ज में संजीदगी . पूरे वजूद में अपनेपन के एहसास की ख़ुशबू ....दिल की गहराई तक उतरने वाला अल्फाज।' इसी बीच मोबाइल के जिस्म से अजीब तरह की 'टूई-टूई' आवाज़ आने लगी . इससे बेख़बर चिठ्ठी अपने प्रवाह में बहती रही, ...मेरे स्पर्श से ही जिस्म के रेशे-रेशे में जल-तरंग बजने लगता है , जिसकी स्वर-लहरियां घर –आंगन को मौसिकी से भर देती है . ...चिठ्ठी लिखने वाला और पढनेवाला पूरी शिद्दत से गुफ़्तगू करने लगते हैं .....दोनों आंतरिकता की महक से सराबोर हो जाते हैं ......दूरियाँ आँसू बहाने लगती है ....नजदीकियां मुस्कराने लगती है... पुन: मोबाइल के जिस्म से पहली वाली आवाज़ आने लगी . क्यों भाई , तुम्हारी ज़ुबान को क्या हो गया .....लगता ज़वाब देते नहीं बन पा रहा है . इसलिए तुम्हारी ज़ुबान लड़खड़ा रही है. मुझे मालूम है , सच्चाई का सामना करने की कूबत तुझमे नहीं है।


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