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जी-20 शिखर सम्मेलन में परमाणु हथियार उन्मूलन पर बातचीत न होना निराशाजनक

जी 20 में कुल नौ में से छह परमाणु हथियार रखने वाले देश थे। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के पास दुनिया के लगभग 90प्रतिशत परमाणु हथियार हैं

जी-20 शिखर सम्मेलन में परमाणु हथियार उन्मूलन पर बातचीत न होना निराशाजनक
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- डॉ. अरुण मित्रा

जी 20 में कुल नौ में से छह परमाणु हथियार रखने वाले देश थे। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के पास दुनिया के लगभग 90प्रतिशत परमाणु हथियार हैं। यह वह अवसर था जहां चर्चा का जोर परमाणु हथियारों को खत्म करने और अस्तित्व पर खतरे से बचने के लिए उठाये जाने वाले कदमों पर हो सकता था।

बहुत धूमधाम से प्रचारित जी 20 शिखर सम्मेलन निरस्त्रीकरण और परमाणु हथियारों के उन्मूलन की किसी प्रतिबद्धता के बिना समाप्त हो गया। इस शिखर सम्मेलन से कई उम्मीदें थीं क्योंकि यह रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की पृष्ठभूमि में आयोजित किया गया था; और यह भारत में आयोजित किया गया था जो परमाणु हथियार मुक्त दुनिया का एक मजबूत नायक रहा है। अत: यह महसूस किया गया था कि निरस्त्रीकरण एवं शांति के मुद्दों पर कुछ ठोस निर्णय लिये जायेंगे।

घोषणा में युद्ध के मानवीय परिणामों पर चिंता व्यक्त की गई है। घोषणापत्र के पृष्ठ 2 पर बिंदु 7 में कहा गया है- 'हम अत्यधिक मानवीय पीड़ा और दुनिया भर में युद्धों और संघर्षों के प्रतिकूल प्रभाव पर गहरी चिंता के साथ ध्यान देते हैं।' इसी पृष्ठ पर बिंदु संख्या 8 में घोषणा में उल्लेख किया गया है कि 'परमाणु हथियारों का उपयोग या उपयोग की धमकी अस्वीकार्य है'। इसलिए यह उम्मीद करना लाजमी था कि रूस यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने और परमाणु हथियारों के उन्मूलन के लिए कुछ ठोस कदम उठाये जायेंगे जो आज मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा बने हुए हैं।

जी 20 शिखर सम्मेलन राष्ट्रों के प्रमुखों या उनके प्रतिनिधियों की बैठक है। रूस यूक्रेन युद्ध ख़त्म करने के लिए ठोस निर्णय लेने का अधिकार उनके पास है। लेकिन जारी घोषणा पृष्ठ 2 बिंदु 8 पर लिखा है 'यूक्रेन में युद्ध के संबंध में... हमने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा (ए/आरईएस/ईएस-11/1 और ए) में अपनाये गये अपने राष्ट्रीय पदों और प्रस्तावों को दोहराया /आरईएस/ईएस-11/6)' ये प्रस्ताव रूसी आक्रमण की निंदा करते हैं लेकिन कहीं भी अमेरिका और नाटो की स्पष्ट भागीदारी का उल्लेख नहीं करते हैं जो युद्ध को जारी रखने और ऐसी स्थिति पैदा करने के लिए यूक्रेन को हथियारों की बड़ी खेप की आपूर्ति कर रहे हैं कि युद्ध ख़त्म करने के लिएकोई सार्थक बातचीत नहीं हो सके।

जी 20 में कुल नौ में से छह परमाणु हथियार रखने वाले देश थे। संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के पास दुनिया के लगभग 90प्रतिशत परमाणु हथियार हैं। यह वह अवसर था जहां चर्चा का जोर परमाणु हथियारों को खत्म करने और अस्तित्व पर खतरे से बचने के लिए उठाये जाने वाले कदमों पर हो सकता था।

परमाणु युद्ध की रोकथाम के लिए अंतरराष्ट्रीय चिकित्सकों (आईपीपीएनडब्ल्यू) द्वारा भौतिकविदों, जीवविज्ञानियों, जलवायु विज्ञानियों और अन्य वैज्ञानिकों के सहयोग से किये गये एक अध्ययन 'परमाणु अकाल' ने साक्ष्य के साथ दिखाया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 100 परमाणु हथियारों के उपयोग से भी दो अरब लोगों के जीवित रहने पर खतरा पैदा हो जायेगा। रूस और यूएसए-नाटो के बीच परमाणु आदान-प्रदान से 5 अरब से अधिक लोग मारे जायेंगे और इसका मतलब हजारों वर्षों के मानव श्रम के माध्यम से निर्मित आधुनिक सभ्यता का अंत होगा।

परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि (टीपीएनडब्ल्यू) 7 जुलाई 2017 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों के भारी बहुमत से पारित हुई और जो पहले ही लागू हो चुकी है, और यह एक अवसर था जिसे खोना नहीं चाहिए था। उपस्थित देश टीपीएनडब्ल्यू में शामिल होने का निर्णय ले सकते थे और परमाणु हथियारों को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठा सकते थे।

शिखर सम्मेलन छोटे हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए विस्तृत कदम उठाने में भी विफल रहा। विश्व के कई क्षेत्र विशेषकर अफ्रीकी महाद्वीप में बड़े पैमाने पर सशस्त्र संघर्षों में शामिल हैं। घोषणा में पृष्ठ 28 पर बिंदु 74, छोटे हथियारों और हल्के हथियारों की अवैध तस्करी और खेप पहुंचाने के बारे में चिंता व्यक्त करता है और निर्यात, आयात नियंत्रण और अनुरेखण सहित इन घटनाओं से निपटने के लिए देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सहयोग का आह्वान करता है। हालांकि, इसमें राज्य प्रायोजित आतंकवाद का कोई उल्लेख नहीं है, न ही कानूनी हथियारों की आपूर्ति को नियंत्रित करने पर एक शब्द भी है जो अंतत: दुनिया भर में हिंसा में उपयोग किया जाता है।

इस जी 20 बैठक में एकत्र हुए कई देशों की भूमि पर बंदूक उत्पादक उद्योग स्थित हैं। ये सरकारें छोटे हथियारों के प्रसार और व्यापार को रोकने के लिए बहुत अच्छे कदम उठा सकती हैं।

इस संबंध में अंतिम घोषणा अत्यंत निराशाजनक है। भारत आसानी से इस पर बढ़त ले सकता था क्योंकि भारतनॉन एलाइन्डमूवमेंट (नैम) का संस्थापक सदस्य था। 1983 में दिल्ली में आयोजित नैमके सातवें शिखर सम्मेलन में 117 राष्ट्राध्यक्ष और 20 पर्यवेक्षक शामिल थे। यह वर्तमान घटना से कहीं अधिक बड़ी घटना थी। नैमशिखर सम्मेलन में निरस्त्रीकरण, शांति, मानवाधिकार, फिलिस्तीन के मुद्दे और आपसी सहयोग के माध्यम से अविकसित दुनिया के आर्थिक विकास पर गंभीर चर्चा हुई। लेकिन जी 20 में बहस में ऐसे मुद्दों को तवज्जो नहीं दी गयी।

जी 20 सैन्य औद्योगिक परिसर द्वारा लाभ की बढ़ती लालसा का संज्ञान लेने में विफल रहा। कार्यक्रम से एक दिन पहले अमेरिकी राष्ट्र्रपति जो बाइडन ने अपने आगमन पर कहा कि भारत के साथ रक्षा सौदे के लिए यह अच्छा मौका है। संसद सदस्य मनीष तिवारी ने 8 सितंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच द्विपक्षीय बैठक के बाद भारत-अमेरिका संयुक्त बयान पर संदेह जताया है।

बयान में कहा गया है, 'नेताओं ने दूसरे मास्टर शिपरिपेयर एग्रीमेंट के सम्पन्न होने की सराहना की जिसके तरह अमेरिकी नौसेनाऔर मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स, लिमिटेड, ने अगस्त 2023 में समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। दोनों पक्षों ने आगे तैनात अमेरिकी नौसेना संपत्तियों और अन्य विमानों और जहाजों के रखरखाव और मरम्मत के लिए एक केंद्र के रूप में भारत के उद्भव को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्धता जताई'। इसके साथ ही भारत 'अग्रिम-तैनात अमेरिकी नौसेना संपत्तियों और अन्य विमानों और जहाजों के रखरखाव और मरम्मत के लिए एक केंद्र' के रूप में उभरेगा। अभी तक भारत ने ऐसी किसी भी गतिविधि के लिए अपनी जगह उपलब्ध नहीं कराई है।


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