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विदेश नीति और कूटनीति में असफलता के नुकसान

32,87,263 वर्ग कि. मी क्षेत्रफल के साथ भारत दुनिया का भौगोलिक तौर पर सातवां बड़ा देश है और करीब 144 करोड़ की आबादी के साथ दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है

विदेश नीति और कूटनीति में असफलता के नुकसान
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32,87,263 वर्ग कि. मी क्षेत्रफल के साथ भारत दुनिया का भौगोलिक तौर पर सातवां बड़ा देश है और करीब 144 करोड़ की आबादी के साथ दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने क्वाड ('क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग') बैठक में हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का परिचय कराते हुए भारत के बारे में कहा कि यह एक छोटा देश है, जिसकी आबादी बहुत कम है।

दुनिया की एकमात्र महाशक्ति होने का दावा करने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति का सामान्य ज्ञान शायद इतना कम नहीं होगा, और हो सकता है यह बात उन्होंने मजाक में कही हो। क्योंकि अपने इस निकृष्ट स्तर के मजाक के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को अपना मित्र भी बताया। मोदी-बाइडेन के बीच अनुमानित मजाक के इन क्षणों का वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध है, जिसे पाठक देख कर समझ सकते हैं कि अमेरिका और भारत दोनों किस तरह कूटनीतिक तकाजों में चूकते जा रहे हैं। क्वाड का मंच अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सहयोग के लिए बना है, इस तरह के ओछे मजाक के लिए नहीं। अगर जो बाइडेन और नरेन्द्र मोदी में गहरी दोस्ती है, तब भी इसमें कूटनीतिक शिष्टाचार को परे नहीं किया जाना चाहिए। नरेन्द्र मोदी इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को केवल बराक कहकर या डोनाल्ड ट्रंप के लिए अबकी बार ट्रंप सरकार कहकर भारत की शर्मिंदगी का सबब बन चुके हैं, इस बार जो बाइडेन ने नरेन्द्र मोदी को टक्कर दे दी।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत के बारे में यह अभद्र टिप्पणी करने से पहले एक और गलती की थी, जब क्वाड देशों के राष्ट्राध्यक्षों का परिचय कराने के सिलसिले में वे प्रधानमंत्री मोदी का नाम ही भूल गए थे। अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत, इन चार देशों ने ही क्वाड का गठन किया है और इसमें जो बाइडेन को अपने अलावा तीन और लोगों का परिचय कराना था, जिसमें वे नरेन्द्र मोदी का नाम ही ऐन वक्त पर भूल गए और फिर उनके स्टाफ ने उनकी मदद की। इस भूल को छिपाने की कोशिश में ही शायद जो बाइडेन ने भारत के आकार और आबादी को लेकर टिप्पणी की। कारण जो भी हो, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति का यह व्यवहार किसी भी नजरिए से अंतरराष्ट्रीय मर्यादा के अनुकूल नहीं था। नरेन्द्र मोदी ने भी बाइडेन की इस टिप्पणी के बाद हंसते हुए केवल थैंक यू कह दिया, जबकि कायदे से उन्हें उसी वक्त पूरी शिष्टता और सौम्यता के साथ बता देना चाहिए था कि दुनिया में भारत का स्थान क्या है। अगर नरेन्द्र मोदी ऐसा करते तो इससे भारत की मजबूत छवि दुनिया के सामने बनती। अफसोस कि श्री मोदी ने इस मौके को गंवा दिया। अगर श्री मोदी की जगह राहुल गांधी होते और वे इसी तरह थैंक यू बोलते तो भाजपा के नेता इस पर राष्ट्रव्यापी हंगामा खड़ा कर चुके होते कि राहुल गांधी ने देश का अपमान होने पर शुक्रिया कहा। अब देखना होगा कि नरेन्द्र मोदी के थैंक यू को भाजपा नेता किन दलीलों के साथ सही ठहराते हैं।

वैसे बात केवल भारत के प्रधानमंत्री को सही या गलत साबित करने की नहीं है, यह मसला पूरे देश की साख के साथ जुड़ा है। अभी हाल ही में जिस तरह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने रूस के राष्ट्रपति के सामने बैठकर श्री मोदी की यूक्रेन यात्रा का ब्यौरा प्रस्तुत किया था, वह भी एक तरह से भारत का अपमान ही था। हमारी संप्रभुता को चुनौती थी। यह और अजीब बात है कि अभी अपने अमेरिका दौरे में फिर से श्री मोदी ने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की से भेंट की। क्या अब फिर से किसी को दूत बनाकर व्लादीमीर पुतिन के सामने बैठाया जाएगा या खुद नरेन्द्र मोदी इस बार अपनी सफाई पेश करेंगे, यह देखना होगा।

अमेरिका या दुनिया के किसी भी देश में जाकर मोदी-मोदी के नारे लगवाना और प्रवासी भारतीयों के मुंह से मोदी की तारीफ और भारत के अमृतकाल की तारीफ करवाना भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इस रणनीति में भारत की विदेश नीति को ठेस न पहुंचे, यह जिम्मेदारी भी सत्तारुढ़ दल होने के नाते भाजपा की है। लेकिन भाजपा और नरेन्द्र मोदी दोनों इसमें चूक रहे हैं। अभी अमित शाह के बांग्लादेशी घुसपैठियों के बयान पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने जो आपत्ति दर्ज कराई है, वह भी विदेश नीति में की जा रही भूल का नतीजा है। पाठकों को याद होगा कि 2014 में जब नरेन्द्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तो सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया था, ताकि आपसी संबंधों में प्रगाढ़ता आए। किंतु बीते 10-11 बरसों में श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान सभी के साथ कई ऐसे प्रसंग हो चुके हैं, जिनसे परस्पर संदेह का माहौल बना है। इसमें दोष केंद्र सरकार का ही है, लेकिन अब भी भाजपा नेता इस मामले में समझदारी का परिचय नहीं दे रहे हैं।

झारखंड चुनावों में भाजपा ने घुसपैठियों के मुद्दे को अहम बनाया हुआ है, इसी के तहत पिछले दिनों भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुन-चुनकर झारखंड के बाहर भेजने का काम भारतीय जनता पार्टी करेगी। ये हमारी सभ्यता को नष्ट कर रहे हैं। हमारी संपत्ति को हड़प रहे हैं। श्री शाह ने यह भी कहा था कि अगर झारखंड में भाजपा सत्ता में आई तो 'हर बांग्लादेशी घुसपैठिए को सबक सिखाने के लिए उल्टा लटका देगी।' इस बयान पर आपत्ति और दुख जताते हुए बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा, 'ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोगों की ओर से पड़ोसी देशों के नागरिकों पर की गई ऐसी टिप्पणियों से आपसी सम्मान और समझ की भावना कमज़ोर पड़ती है।'

बांग्लादेश की इस आपत्ति को वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करने की जरूरत है। हम अपने पड़ोसियों को बदल नहीं सकते हैं और न ही उन्हें नाराज करके अपनी शांति और सुरक्षा की आश्वस्ति कर सकते हैं। चीन जैसे ताकतवर और महत्वाकांक्षी पड़ोसी देश के रहते भारत को अन्य पड़ोसी देशों के साथ अतिरिक्त सावधानी के साथ कदम उठाने चाहिए, लेकिन मोदी सरकार के लिए शायद विदेश नीति जैसा गंभीर मसला भी चुनाव जीतने का एक टूल ही है।


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