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कार्यकर्ता के लिए लड़ने वाले नेता दिग्विजय

कांग्रेस पिछले साढ़े नौ साल से केन्द्र की सत्ता से बाहर है। और कांग्रेस नेताओं के तौर तरीकों से कभी लगता भी नहीं था कि वे वापसी के लिए कुछ कर रहे हैं

कार्यकर्ता के लिए लड़ने वाले नेता दिग्विजय
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- शकील अख्तर

कांग्रेस पिछले साढ़े नौ साल से केन्द्र की सत्ता से बाहर है। और कांग्रेस नेताओं के तौर तरीकों से कभी लगता भी नहीं था कि वे वापसी के लिए कुछ कर रहे हैं। मगर पिछले साल राहुल गांधी की संघर्षमय भारत जोड़ो यात्रा ने तस्वीर बदल दी। जनता को विपक्ष का लड़ता हुआ अंदाज ही भाता है। दिग्विजय सिंह इस यात्रा के संयोजक थे। उनके पास करीब इतनी ही बड़ी अपनी नर्मदा यात्रा का अनुभव था।

नेता ऐसा ही होना चाहिए। दिग्विजय सिंह ने सर्दी की रात खजुराहो थाने के बाहर खुले में सोते हुए निकाल दी। 17 नवंबर को मतदान के दिन छतरपुर की राजनगर विधानसभा के कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह उर्फ नाती राजा पर भाजपा प्रत्याशी अरविंद पटेरिया और उनके समर्थकों ने हमला कर दिया था। उन्हें बचाने कांग्रेस कार्यकार्ता सलमान खान आए तो उन पर धारदार हथियारों, कुल्हाड़ी से हमला कर दिया। और कई गोलियां मार कर सलमान को गाड़ियों से रौंदते हुए भाग गए।

दिग्विजय ने फोन पर वहां से बात करते हुए कहा कि ऐसी क्रूर हत्या नहीं देखी। कई गाड़ियां कांग्रेस कार्यकर्ता के ऊपर से निकाल कर ले गए। घटना के बाद पूरे मध्यप्रदेश और खासतौर से बुन्देलखंड में तहलका मच गया। मध्यप्रदेश में चुनाव में ऐसी घटनाएं नहीं होती हैं। इस बार कई जगह मतदान के दिन और फिर उसके बाद भी हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। मतदान के बाद सागर जिले के रहली विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति पटेल का घर घेर कर लगातार फायरिंग की गई।

छतरपुर की हिंसा बहुत भयानक थी। कांग्रेस का आरोप है कि वहां के भाजपा प्रत्याशी पटेरिया प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और वहीं खजुराहो के सांसद वीडी शर्मा के खास हैं। इसलिए पुलिस हत्या के आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही। सलमान का परिवार शव लेकर वहीं खजुराहो थाने के बाहर बैठा है। परिवार का कहना है कि जब तक गिरफ्तारी नहीं होगी वह अन्तिम संस्कार नहीं करेगा।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए दिग्विजय सिंह शनिवार को ही छतरपुर पहुंच गए। और सीधे परिवार से मिलने पहुंचे। चुनाव तक तो सारे नेता कार्यकर्ता के साथ होते हैं। मगर चुनाव के बाद कम ही नेता कार्यकर्ता और उसके परिवार के साथ खड़े होते हैं। दिग्विजय के साथ उनकी पत्नी अमृता राय भी हैं। वैसे किसी समारोह में वे साथ दिखें या नहीं दिखें मगर संघर्ष में वे साथ होती हैं। शनिवार से वे साथ ही धरने पर बैठी हैं। इससे पहले दिग्विजय की ऐतिहासिक नर्मदा यात्रा में वे पूरे साढ़े तीन हजार किलोमीटर पैदल चली थीं। आधे साल से ज्यादा।

उस नर्मदा यात्रा के बाद ही 2018 में कांग्रेस मध्य प्रदेश में सत्ता में वापस आई थी। 15 साल बाद। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के धोखे की वजह से 15 महीने में ही सरकार गिर गई। मगर जनता के मन में इस विश्वासघात से गहरी चोट लगी। खास तौर से ग्वालियर चंबल संभाग, बुंदेलखंड में। सिंधिया इसी इलाके का खुद को ठेकेदार मानते हैं। मगर जनता जब तक सम्मान देती है, देती है। मगर फिर जैसे ही उसे लगता है कि नेता हमारे साथ धोखा कर रहा है वह गुस्से में खड़ी हो जाती है। और फिर इस इलाके में तो इसे गद्दारी कहा जाता है। और गद्दारी को सबसे खराब चीज माना जाता है। जनता इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ भाजपा को कड़ा सबक देने के मूड में लगी।

उसी की प्रतिक्रिया में इस बार चुनाव में भाजपा की तरफ से ज्यादा हिंसा देखने को मिल रही है। लेकिन इसका प्रतिकार करके दिग्विजय ने एक नया इतिहास रच दिया है। सिर्फ मध्य प्रदेश में ही नहीं देश भर में एक संदेश गया है कि नेता हो तो ऐसा। जो अपने कार्यकर्ता और उसके परिवार के साथ ऐसे डट कर खड़ा हो जाए। रात खुले में निकाल दे।

कांग्रेस पिछले साढ़े नौ साल से केन्द्र की सत्ता से बाहर है। और कांग्रेस नेताओं के तौर तरीकों से कभी लगता भी नहीं था कि वे वापसी के लिए कुछ कर रहे हैं। मगर पिछले साल राहुल गांधी की संघर्षमय भारत जोड़ो यात्रा ने तस्वीर बदल दी। जनता को विपक्ष का लड़ता हुआ अंदाज ही भाता है। दिग्विजय सिंह इस यात्रा के संयोजक थे। उनके पास करीब इतनी ही बड़ी अपनी नर्मदा यात्रा का अनुभव था। राहुल के सारथी बन कर उन्होंने पूरी यात्रा संचालित की।

भारत के इतिहास में ऐसा कोई नेता नहीं हुआ जिसने साढ़े तीन-तीन, चार-चार हजार किलो मीटर की दो पैदल यात्राएं की हों। दूसरी यात्रा में भी अमृता राय कई जगह साथ चलती दिखीं।

राहुल तो बहुत ही संघर्षशील नेता हैं। यात्रा के बाद उनकी असली छवि निखर कर सामने आ गई है। जो हजारों करोड़ रुपया भाजपा ने राहुल को पप्पू बनाने में लगाया था वह पानी में बह गया। राहुल की मेहनत और साथ ही पार्टी अध्यक्ष खरगे जी और प्रियंका की करिश्माई छवि ने कर्नाटक से एक नया इतिहास रच दिया। जीत की वापसी का।

अब पांच राज्यों के चुनाव में खरगे जी राहुल और प्रियंका फिर वैसी ही मेहनत कर रहे हैं। अभी जिन तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में चुनाव हो गए वहां कांग्रेस की स्थिति अच्छी मानी जा रही है। और बाकी दोनों जगह जहां चुनाव होना है राजस्थान और तेलंगाना में वहां कांग्रेस का ग्राफ दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। पहले मुकाबला बराबरी का माना जा रहा था। अब कांग्रेस का पलड़ा भारी बताया जा रहा है।

अगर ऐसा ही रहा तो यह विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की पूर्व पीठिका साबित हो जाएंगे। मतलब 2024 का ट्रेलर होगा इन विधानसभा चुनावों का नतीजा। राहुल की मेहनत रंग ले आएगी।

राहुल के पास ऐसे नेता होंगे जो कार्यकर्ताओं में जोश जगा सकें। जनता मन बना रही है। मगर उसे मतदान केन्द्रों तक उसी मन से लाना कार्यकर्ताओं का काम होता है। और कार्यकर्ता जब उत्साह से दिल से यह काम करता है तो जनता अपने मन के साथ कार्यकर्ता का जोश भी जोड़ लेती है।

बड़े नेता की सर्वोच्च सफलता यह होती है कि वह अपने साथ के नेताओं में वही जोश और जज्बा पैदा कर सके जो उसके अंदर है। और फिर नेता उसी जोश को कार्यकर्ताओं में ट्रांसफर कर सके।

उमंग और उत्साह ऊपर से नीचे बहता है। 2014 में कांग्रेस के सब शिखर नेता ढीले पड़ गए थे तो बाकी नेता और कार्यकर्ता भी। और आज जब जोश बढ़ा हुआ है तो वह नीचे के कार्यकर्ता तक और बढ़चढ़ कर जा रहा है।

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के खजुराहो थाने के बाहर उमड़ पड़ी कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भीड़ बेमिसाल थी। जब दो बार के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह वहां आकर धरने पर बैठ जाएं, रात खुले में गुजार दें, तो आप समझ सकते हैं कि कार्यकर्ता का मनोबल कितना ऊंचा हो जाएगा। और जनता पर कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
दिग्विजय ने वहां से डीबी लाइव/देशबन्धु को इंटरव्यू देते हुए कहा कि-भाजपा सरकार जाने वाली है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की 130 से ज्यादा सीटें जीतेगी। उन्होंने चुनाव आयोग से भी कहा कि वह देखे कि कोई गड़बड़ नहीं होने पाए।

दिग्विजय का यह धरना ऐतिहासिक हो गया। कांग्रेस के कार्यकर्ता अब तीन दिसंबर मतगणना के दिन तक चार्ज रहेंगे। ईवीएम मशीनों की निगरानी करते हुुए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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