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ममता के लिए मुश्किल साबित हो रहा 'दीदी के बोलो' अभियान

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस द्वारा लोगों के लिए शिकायतों के साथ सरकार तक पहुंच सुलभ बनाने के लिए शुरू की गई हेल्पलाइन 'दीदी के बोलो' मुख्यमंत्री ममता के लिए मुश्किल भरी साबित हो रही है

ममता के लिए मुश्किल साबित हो रहा दीदी के बोलो अभियान
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कोलकाता। पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस द्वारा लोगों के लिए शिकायतों के साथ सरकार तक पहुंच सुलभ बनाने के लिए शुरू की गई हेल्पलाइन 'दीदी के बोलो' मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मुश्किल भरी साबित हो रही है। इस अभियान से पार्टी नेताओं के खिलाफ शिकायतों की भरमार मिल रही है, जो तृणमूल कांग्रेस के लिए परेशानी पैदा कर रहा है। यह अभियान चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के दिमाग की उपज है।

तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं जाहिर करने के आग्रह पर आईएएनएस से कहा कि ज्यादातर शिकायतें स्थानीय व जिला नेतृत्व के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि ज्यादा शिकायतें भ्रष्टाचार से जुड़ी हैं।

नेता ने कहा, "हमें यह तो अंदेशा था कुछ जिलों में नेता भ्रष्टाचार में शामिल हैं, लेकिन यह इस हद तक नहीं सोचा था।"

उन्होंने कहा, "कुछ मामलों में 'दीदी के बोलो' के शुरू होने के बाद हमें हमारे जिला नेताओं की सच्चाई का पता चला है, जिन्हें कोलकाता का नेतृत्व ईमानदार समझता था।"

तृणमूल कांग्रेस के एक अन्य नेता ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, "दीदी ने नेताओं को कट मनी को लेकर फटकार लगाई है और इन्हें लौटाने को कहा है। इसके बाद कई लोग रिश्वत में दिए पैसों की वापसी की मांग को लेकर सड़क पर उतर आए।"

उन्होंने कहा, "और भी बुरा यह हुआ कि पार्टी में कुछ नेताओं ने रिश्वत ली, लेकिन जिस काम के लिए पैसा लिया गया, वह नहीं किया गया। इसलिए बहुत से लोग काफी नाराज हैं।"

ममता बनर्जी खुद बताया कि उन्हें 'कट मनी' के संदर्भ में 5913 शिकायतें मिली हैं। उन्होंने इस बात को सभी के बीच माना कि उन्हें पता है कि लोगों के अंतिम संस्कार के लिए दिए जाने वाले दो हजार रुपये में से दो सौ रुपये कुछ पार्टी नेता ले लेते हैं। ममता की इन बातों के तुरंत बाद लोग हेल्पलाइन पर उमड़ पड़े और कुछ मामलों में तो अपनी मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।

जुलाई में तृणमूल कांग्रेस के छह नेताओं ने एक जिले में 1.5 लाख रुपये की राशि लौटाई थी।

मुश्किलों के बावजूद तृणमूल और ममता के लिए यह अभियान इस मामले में लाभकारी साबित हो रहा है कि इन्हें अब पता है कि समस्या कहां है और क्या कुछ किए जाने की जरूरत है।


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