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भारत में मधुमेह एक नई महामारी, तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता

भारत, जिसे पहले से ही कई वर्षों से दुनिया की मधुमेह राजधानी के रूप में जाना जाता है, में मधुमेह के प्रसार पर नये अपडेट ने देश में मधुमेह विस्फोट की ओर बढ़ रही खतरनाक स्थितियों का खुलासा किया है

भारत में मधुमेह एक नई महामारी, तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता
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- डॉ. ज्ञान पाठक

गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) का वास्तविक बोझ पहले के अनुमान से कहीं अधिक है, और देश में उभरती आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए नई योजना और निवेश की आवश्यकता में तेजी से वृद्धि हो सकती है। चूंकि, वर्तमान अनुमान मोटापे, उच्च रक्तचाप और हाइपर कोलेस्ट्रोलेमिया के प्रसार के विश्लेषण पर आधारित है, जो खराब कोलेस्ट्रॉल की उपस्थिति है।

भारत, जिसे पहले से ही कई वर्षों से दुनिया की मधुमेह राजधानी के रूप में जाना जाता है, में मधुमेह के प्रसार पर नये अपडेट ने देश में मधुमेह विस्फोट की ओर बढ़ रही खतरनाक स्थितियों का खुलासा किया है। आईसीएमआर-आईएनडीएबीके नवीनतम अध्ययन से पता चला है कि लगभग 11.4 प्रतिशत आबादी पहले से ही मधुमेह से पीड़ित है, जबकि 15.3 प्रतिशत प्री-डायबिटिक हैं, अर्थात् मधुमेह होने के कगार पर। जीवन शैली सुधार स्पष्ट रूप से जरूरी हो गया है, और उपचार और मधुमेह प्रबंधन की उच्च लागत कम करना भी, जो 2021 में प्रति रोगी प्रति माह 1265 रुपये अनुमानित थी, और तब से बढ़ रही है।

नये अपडेट का जो दिखाई देता है उससे भी बड़ा निहितार्थ है। इससे पहले अनुमान केवल छह महीने पहले उद्धृत किया गया था जब भारत 14 नवंबर, 2022 को मधुमेह दिवस मना रहा था, कि भारत में मधुमेह के करीब 800 लाख लोग थे। अब नये अनुमान में यह 2021 में 1013 लाख मधुमेह के रोगियों की संख्या बताई गई है, जबकि 1360 लाखप्री-डायबिटिक स्टेज में थे। यह कहा गया था कि दुनिया के सभी मधुमेह रोगियों में से 17 प्रतिशत भारत में रह रहे थे, और 2045 तक यह संख्या बढ़कर 1350 लाख हो जाने की उम्मीद थी। नये आंकड़े भयावह हंै क्योंकि अभी 2019 में ही केवल 700 लाख मरीज थे जो बढ़कर 1013 लाख हो गये हैं।

स्वाभाविक तौर पर गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) का वास्तविक बोझ पहले के अनुमान से कहीं अधिक है, और देश में उभरती आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए नई योजना और निवेश की आवश्यकता में तेजी से वृद्धि हो सकती है। चूंकि, वर्तमान अनुमान मोटापे, उच्च रक्तचाप और हाइपर कोलेस्ट्रोलेमिया के प्रसार के विश्लेषण पर आधारित है, जो खराब कोलेस्ट्रॉल की उपस्थिति है, भारत को एनसीडी के नियंत्रण और रोकथाम पर संपूर्ण योजना पर फिर से विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।

यूके मेडिकल जर्नल 'लैंसेट' में प्रकाशित नये आईसीएमआर-आईएनडीएबी अध्ययन ने देश भर में 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2008 और 2020 के बीच की अवधि का आकलन किया है। अध्ययन में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में मधुमेह का प्रसार अधिक पाया गया जो क्रमश: 16.4 प्रतिशत और 8.9 प्रतिशत था। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों की कीमत पर शहरी क्षेत्रों पर अधिक जोर देने के लिए मधुमेह प्रबंधन के योजनाकारों को गुमराह नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह एक और तथ्य को छुपाता है कि कुल शहरी आबादी और उनमें पूर्व-मधुमेह रोगियों की व्यापकता 15.4 प्रतिशत थी जो ग्रामीण भारत में केवल 15.2 प्रतिशत से थोड़ा ही अधिक है। इन सभी का मतलब है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र निकट भविष्य में मधुमेह के नये मामलों के विस्फोट की ओर बढ़ रहे हैं यदि लोग अपनी जीवन शैली में सुधार नहीं करते हैं, जिससे देश में चिकित्सा सुविधाओं में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है।

मधुमेह रोगियों के प्रतिशत के मामले में देश के दस सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य हैं गोवा (26.4), पुडुचेरी (26.3), केरल (25.5), चंडीगढ़ (20.4), दिल्ली (17.8), तमिलनाडु (14.4), पश्चिम बंगाल (13.7) हैं।), सिक्किम (12.8), पंजाब (12.7) और हरियाणा (12.2)।गोवा में प्री-डायबिटिक स्टेज के लोग 20.3 फीसदी, पुडुचेरी 25.8 फीसदी, केरल 18.3 फीसदी, चंडीगढ़ 15.6 फीसदी, दिल्ली 18 फीसदी, तमिलनाडु10.2 फीसदी, पश्चिम बंगाल 23.5 फीसदी, सिक्किम31.3 फीसदी, पंजाब8.7 फीसदी और हरियाणा में 18.2 फीसदी हैं।यह केवल देश में मधुमेह की महामारी के और बिगड़ने से पहले तैयारी के बड़े कार्य को दर्शाता है। इन सबसे खराब राज्यों में मधुमेह और पूर्व मधुमेह रोगियों का बोझ पंजाब में 21.4 प्रतिशत से लेकर पुडुचेरी में 52.1 प्रतिशत के बीच है।

यदि किसी भौगोलिक क्षेत्र में मधुमेह और पूर्व-मधुमेह के रोगी लगभग बराबर हैं, तो स्थिति को स्थिर माना जाता है, जैसा कि हम पुडुचेरी और दिल्ली में देखते रहे हैं, लेकिन इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि तेजी से बदलती जीवन शैली में परिवर्तन की दिशा ऐसी है कि बीमारी में और अधिक तेजी आ सकती है। मधुमेह के प्रति संवेदनशील परिदृश्य बदल सकता है और तो और, यह अभी भी उच्च स्तर पर है। जिसके कारण दवाओं की खरीद सामर्थ्य शक्ति तथा उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने की आवश्यकता है।

देश के कई राज्यों में मधुमेह रोगियों की संख्या खतरनाक स्तर पर नहीं है, जैसे उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और अरुणाचल प्रदेश। फिर भी, देश आसन्न मधुमेह महामारी के लिए तैयारियों के मामले में नजरअंदाज करने वाला सामान्य दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, उत्तरप्रदेश में वर्तमान में केवल 4.8 प्रतिशत मधुमेह रोगी हैं। हालांकि, प्री-डायबिटीज स्टेज के लोगों की संख्या 18 फीसदी तक है। यह इंगित करता है कि मधुमेह के कम प्रसार वाले ऐसे राज्य अगले कुछ वर्षों में तेजी से मधुमेह के मामलों के विस्फोट की ओर बढ़ रहे हैं, जिसकी चेतावनी अध्ययन में भी दी गई है।

अन्य गंभीर कारक भी हैं, जो कि अध्ययन से पता चला है। उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और मोटापे के बढ़ते स्तर, जो वर्तमान में पहले से ही उच्च हैं, ने कार्डियकअरेस्ट, स्ट्रोक, किडनी रोग और कई अन्य जोखिमों को बहुत बढ़ा दिया है। 35.5 फीसदी लोगों में हाइपरटेंशन और 81.2 फीसदी लोगों में कोलेस्ट्रॉल पाया गया। करीब 28.6 फीसदी लोग सामान्य मोटापा तथा जबकि 39.5 प्रतिशत असामान्य मोटापे से पीड़ित हैं। इसके अलावा मधुमेह और संबंधित चिकित्सा स्थितियों में 2020 में 7 लाख से अधिक मौतों पर भी ध्यान रखकर योजनाएं बनानी जानी चाहिए।


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