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मानव की उदासीनता ही मानवता के लिए खतरा

धर्मशाला ! तिब्बतीयों के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा है कि आज संसार में मानव जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उनके लिए स्वयं मानव ही उत्तरदायी है।

मानव की उदासीनता ही मानवता के लिए खतरा
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धर्मशाला ! तिब्बतीयों के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा है कि आज संसार में मानव जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उनके लिए स्वयं मानव ही उत्तरदायी है। उनमें एक ओर निरंतर हिंसा और हत्याएं शामिल हैं और दूसरी तरफ अकाल के कारण बच्चे भुखमरी से मर रहे हैं। एक मानव के रूप में हम इस ओर किस तरह उदासीन रह सकते हैं? चूंकि इनमें से अधिकतर समस्याएं मानव निर्मित हैं। तार्किक रूप से देखा जाए तो हमें उन्हें सुधारने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन हम उदासीन हैं। हमें करूणाशील होना चाहिए। दलाई लामा कार्यालय की ओर से जारी प्रेस नोट में अपने आसाम प्रवास के दौरान गुवाहाटी में आयोजित एक कार्यक्रम में दलाई लामा ने कहा कि इन सबके बावजूद सुखद समाचार यह है कि अपने शोध के फलस्वरूप वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। यह आशा का संकेत है। यदि यह अन्यथा होता और मानव स्वभाव क्रोधित होने का होता तो स्थिति निराशाजनक होती। अत: मैं लोगों से कहता हंू कि इंसान के रूप में हम सब एक समान हैं। हम शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से समान हैं। यहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों ने मां से जन्म लिया है और जब वे सूष्टि से विदा लेंगे तो एक ही तरह से जाएंगे। दलाई लामा ने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि अब जबकि हम जीवित हैं, हमें कठिनाइयां नहीं उत्पन्न करनी चाहिए, अपितु यह पहचानते हुए कि अन्य लोग हमारी तरह इंसान हैं, उनके कल्याणार्थ चिंता उत्पन्न करनी चाहिए। अगर हम ऐसा कर सकें तो धोखाधड़ी, धमकाने अथवा अन्य लोगों की हत्या करने का कोई आधार न होगा। लिहाजा हमें अपनी प्राकृतिक करुणा को बढ़ाने का प्रयास करना है।

मात्र प्रार्थना अथवा अच्छे शब्दों के निर्माण द्वारा नहीं, अपितु अपनी बुद्धि के सदुपयोग द्वारा। इसी तरह हम एक सुखी परिवार, एक सुखी समुदाय और एक खुशहाल विश्व में रहते हुए स्वयं में सुखी हो सकेंगे। एक चीज जो हमें मनुष्य के रूप में अलग करती है, वह अन्य मनुष्यों और अंतत: समूचे मानवता तक अपनी स्वाभाविक करुणा का विस्तार करने की हमारी क्षमता है। अपने प्रवास के दौरान चार अप्रैल को दलाई लामा अरूणाचल प्रदेश के लूमला में नवनिर्मित तारा मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। व पांच 5 से 7 अप्रैल तक यिगा छोजिन में कमलशील के भावनाक्रम और ज्ञलसे थोगमे संगपो के बोधिसत्व के 37 अभ्यास पर प्रवचन देंगे। सात अप्रैल यिगा छोजिन में रिगजिन दोनडुब की दीक्षा प्रदान करेंगे। दस अप्रैल को दिरंग में गेशे लंगरी थंगपा के चित्त शोधन के अष्ट पदों और गुरु योग पर प्रवचन देंगे और थुबसुंग दरज्ञेलिंग विहार में अवलोकितेश्वर अनुज्ञा प्रदान करेंगे।


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