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ममता बनर्जी के हिंसा को कमतर आंकने के बावजूद, टीएमसी के भीतर खींचतान !

पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अभूतपूर्व हिंसा और खून-खराबे के साथ समाप्त हो गया

ममता बनर्जी के हिंसा को कमतर आंकने के बावजूद, टीएमसी के भीतर खींचतान !
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कोलकाता। पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अभूतपूर्व हिंसा और खून-खराबे के साथ समाप्त हो गया। इस हिंसा में मरने वालों की संख्या 44 तक पहुंच गई है। हिंसा के मुद्दे पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के भीतर खींचतान दिख रही है।

तृणमूल कांग्रेस के भीतर एक वर्ग हताहतों की संख्या को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए अपने तर्क पर कायम है कि हिंसा छिटपुट थी और न्यूनतम संख्या तक सीमित थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्य तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष इस तर्क के पक्ष में दो सबसे मुखर आवाजें थीं।

दूसरी ओर, हाल के दिनों में पार्टी के भीतर बिना आवाज उठाए दिग्गजों का एक वर्ग मुखर हो गया है और इस हत्याकांड पर आत्मनिरीक्षण के मूड में दिख रहा है। बुधवार शाम को पंचायत चुनाव के रुझान स्पष्ट होने के बाद सीएम ममता बनर्जी ने पत्रकारों से बातचीत की। इस दौरान सीएम ममता ने हिंसा से संबंधित मौतों पर संवेदना व्यक्त की और मृतकों के परिवारों के लिए मुआवजे और होम गार्ड की नौकरियों की घोषणा की।

हालांकि, जल्द ही उन्होंने अपने सुर बदल लिए और कहा कि पश्चिम बंगाल को जानबूझकर खराब रोशनी में पेश किया गया है, जहां हिंसा की छिटपुट घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।

सीएम ममता ने यह भी कहा था कि 71,000 से अधिक बूथों पर मतदान हुआ है और अधिकतम 60 बूथ क्षेत्रों से हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं। वहां की हिंसा भी राज्य को खराब छवि में दिखाने की योजना थी। त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मतदान के दिनों में स्थिति बदतर हो जाती है।

वहीं, कुणाल घोष ने दावा किया कि चुनाव में छिटपुट हिंसा को भाजपा ने जानबूझकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है, ताकि मणिपुर से ध्यान भटकाया जा सके जो काफी समय से जातीय संघर्ष की आग में जल रहा है।

विपक्षी भाजपा, माकपा और कांग्रेस के नेताओं ने दावा किया है कि राज्य चुनाव आयोग की निष्क्रियता और वास्तविकता को स्वीकार करने से इनकार करने के राज्य प्रशासन के इनकार-मोड के कारण यह हिंसा और झड़पें बढ़ी हैं।

जहां शीर्ष नेतृत्व इस हत्याकांड को लेकर इनकार कर रहा है, वहीं सत्ताधारी पार्टी नेतृत्व के एक वर्ग की ओर से इस मुद्दे पर असहमति के स्वर सामने आ रहे हैं। पर्यटन विभाग के प्रभारी राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो का मानना है कि सत्ताधारी पार्टी की ओर से हिंसा की ऐसी घटनाएं अनावश्यक थीं, जबकि तृणमूल कांग्रेस वैसे भी ग्रामीण निकाय चुनावों में जीत हासिल कर सकती थी। उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की कि सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं के एक वर्ग द्वारा हिंसा के ऐसे कृत्य वास्तव में आने वाले चुनावों में विपक्ष को राजनीतिक लाभ देंगे।

तीन बार के तृणमूल कांग्रेस विधायक चिरंजीत चक्रवर्ती ने कहा कि यदि हिंसा के माध्यम से जीत हासिल की जाती है, तो यह लोगों में पार्टी के प्रति विश्वास पैदा नहीं कर पाता है। ऐसी जीतें निरर्थक हैं। ऐसी कार्रवार्ईयों के जरिए लंबे समय तक सत्ता में बने रहना असंभव है।

पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायक अब्दुल करीम चौधरी, जिन्हें हाल ही में असहमति जताने के कारण पार्टी में दरकिनार कर दिया गया है, का मानना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सत्तारूढ़ दल को जीत के लिए लोगों पर विश्वास करने के बजाय हिंसा पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि भले ही जीत हासिल हो गई हो, लेकिन इतने सारे लोगों की जान जाने के बाद यह निरर्थक हो जाती है।


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