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'बीमारू' का टैग हटाने का श्रेय शिवराज को देने के बावजूद भाजपा उन्‍हें सीएम उम्‍मीदवार बनाने को तैयार नहीं

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जोरदार ढंग से दावा कर रही है कि मध्य प्रदेश में समावेशी विकास हुआ है और मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली उसकी सरकार के पिछले दो दशकों के कार्यकाल में राज्‍य पर से 'बीमारू' का टैग भी हट गया है।

बीमारू का टैग हटाने का श्रेय शिवराज को देने के बावजूद भाजपा उन्‍हें सीएम उम्‍मीदवार बनाने को तैयार नहीं
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भोपाल । सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जोरदार ढंग से दावा कर रही है कि मध्य प्रदेश में समावेशी विकास हुआ है और मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली उसकी सरकार के पिछले दो दशकों के कार्यकाल में राज्‍य पर से 'बीमारू' का टैग भी हट गया है। हालाँकि, अधिकांश सीटों से उम्‍मीदवारों के नाम घोषित कर चुकी पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनावों के लिए चौहान को अपना मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है।

इसकी बजाय, भगवा पार्टी ने कहा है कि वह सामूहिक नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ेगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभियान के अगुआ होंगे। दरअसल, पार्टी ने प्रचार के लिए ''एमपी के मन मोदी'' का नारा गढ़ा है।

दिलचस्प बात यह है कि भले ही चौहान को किनारे कर दिया गया हो, लेकिन भाजपा उनकी प्रमुख योजनाओं, खासकर चुनाव से पहले शुरू की गई 'लाडली बहना योजना' पर सबसे अधिक भरोसा कर रही है। वास्तव में, पार्टी कार्यकर्ता और नेता यह कहने में संकोच नहीं करेंगे कि यह 'लाडली बहना योजना' ही थी जिसने भाजपा को लड़ाई में वापस ला दिया।

कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया कहते हैं, जबकि कुछ अन्य का मानना है कि चौहान को छाया में रखना सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने की भाजपा की रणनीति हो सकती है।

हालाँकि, राजनीतिक पर्यवेक्षक इस बात पर एकमत हैं कि चौहान को दरकिनार कर दिया गया है और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में यह उनका आखिरी कार्यकाल हो सकता है।

एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि चुनाव खत्म होने के बाद चौहान के लिए स्थिति और खराब हो सकती है। उन्‍होंने कहा, “वर्तमान में, केंद्रीय नेतृत्व को मध्य प्रदेश में हर कदम पर उनकी ज़रूरत है क्योंकि कोई दूसरा नेता नहीं है जो लोगों के साथ घनिष्ठ संबंधों के संदर्भ में उनकी बराबरी कर सके। लेकिन, चुनाव ख़त्म होने के बाद स्थिति बहुत अलग हो सकती है।''

चौहान ने मुख्य रूप से दो पहलुओं में मध्य प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत की है - उन्होंने अपनी प्रमुख योजनाओं के माध्यम से लोगों को जीत लिया है और दूसरा - पिछले दो दशकों में जिस किसी ने भी उनकी स्थिति को चुनौती दी, उन्हें राज्य की राजनीति में किनारे कर दिया गया। कैलाश विजयवर्गीय और पूर्व राज्य भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा इसके आदर्श उदाहरण हैं।

वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने कहा, “पिछले तीन दशकों से चौहान ने मध्य प्रदेश में भाजपा के दूसरे स्तर के नेतृत्व को पैर जमाने नहीं दिया। यही मुख्य कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व उनका विकल्‍प खोजने में विफल रहा है। लेकिन अब स्थिति अलग है क्योंकि अब वह काफी बदल गए हैं। चौहान अब वह नहीं रहे जो वह पहले हुआ करते थे।''

सिंह ने कहा कि शिवराज के देहाती व्यक्तित्व और अहंकार के कारण 2018 में नुकसान हुआ और वहां से भाजपा के भीतर उनके राजनीतिक विरोधियों को उन्हें घेरने का मौका मिल गया। सिंह ने कहा, "चौहान पार्टी के फैसले के खिलाफ बगावत करने वालों में से नहीं हैं, लेकिन वह वापसी के लिए सही समय का इंतजार करेंगे।"

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि चौहान ने खुद को लोगों के बीच स्थापित करने में सफल रहे क्योंकि वह उन लोगों की बुनियादी समस्याओं को समझते हैं जो न्यूनतम संसाधनों के साथ जी रहे हैं।दूसरी ओर, वह पूरी तरह से नौकरशाही पर निर्भर रहे और इससे शायद उनके और लोगों के बीच दूरियां पैदा होने लगीं।

मध्य प्रदेश के लोगों के चौहान से ऊबने का एक और मुख्य कारण आर्थिक विकास, उद्योग लाने और नई पीढ़ी के मतदाताओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने में उनकी विफलता है।


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