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करोड़ों खर्च के बावजूद जल संरक्षण, संवर्धन का कार्य असंतोषजनक

 जिले में पिछले तीन वर्षो में जल संरक्षण एवं संवर्धन के तहत 6,303 कुंआ, डबरी, नाला बंधान, एवं स्टापडेम का निर्माण करवाया गया जिसके लिए करीब 3 अरब 80 करोड़ रूपए खर्च किए गए

करोड़ों खर्च के बावजूद जल संरक्षण, संवर्धन का कार्य असंतोषजनक
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बिलासपुर। जिले में पिछले तीन वर्षो में जल संरक्षण एवं संवर्धन के तहत 6,303 कुंआ, डबरी, नाला बंधान, एवं स्टापडेम का निर्माण करवाया गया जिसके लिए करीब 3 अरब 80 करोड़ रूपए खर्च किए गए, लेकिन जिले में फिर भी सूखा है। अभी तक जल संरक्षण एवं संवर्धन के लिए किए गए काम को किसी विशेषज्ञों से सलाह लेकर नहीं करवाया गया।

मनरेगा के तहत दी जाने वाली सभी कार्यो का उद्देश्य केवल लोगों की मांग के आधार पर रोजगार देना ही है यही कारण है कि करोड़ रूपए खर्च करने के बाद भी परिणाम संतोषजनक नहीं है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना के तहत वर्ष 2015-16 से जल संरक्षण व संवर्धन को प्राथमिकता से किया जा रहा है। इसके लिए शासन अरबों रूपए खर्च कर रही है। इस तरह यदि पिछले तीन वर्षो में मनरेगा के तहत जल संरक्षण व संवर्धन के लिए करीब 4 अरब रूपए खर्च कर दिए गए है, लेकिन इसका परिणाम हमें सूखा के रूप में मिला है। मनरेगा के तहत बनाए गए कुंए, डबरी, स्टाम डेम में आज के तारीख में सिर्फ 20 फीसदी में ही पानी है।

कुछ जगह पर तो एक से अधिक बार एक ही तालाब, डबरी, स्टापडेम मेें लाखों रूपए खर्च कर दिए गए है। मनरेगा के तहत स्वीकृत किए जाने वाले कार्यो का उद्देश्य सिर्प लोगों को रोजगार देना ही रह गया है। कोई विशेषज्ञों की टीम मनरेगा में नहीं है जो जलवायु, मिट्टी के आधार पर किसी काम को स्वीकृत करें।

पहले भी जल संरक्षण व संवर्धन पर फोकस

जिला पंचायत के तात्कालिन सीईओ डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे, व जेपी मौर्य ने जल संरक्षण एवं संवर्धन को प्राथमिकता से लिए, और जिले में मनरेगा के तहत करोड़ रूपए खर्च किए गए ताकि जलस्तर बने रहे किसानों को सिंचाई की सुविधा मिले साथ ही निस्तारी की कोई समस्या न हो। वर्तमान में मुख्य फोकस इसी बिन्दु पर है, लेकिन अभी भी कोई विशेषज्ञ टीम नहीं होने के कारण कहीं भी कुंए, डबरी, स्टापडेम का निर्माण करवाया जा रहा है और परिणाम शून्य है।

सिर्फ 15 हजार मजदूर कार्यरत

जिले में सूखे कि स्थिति के बावजूद मनरेगा के कार्यो में लोगों को कोई रूचि नहीं रह गई है। इसलिए जिले में 2.50 हजार मजदूर में सिर्फ 15 हजार मजदूर ही काम कर रहे है। हालांकि अधिकारियों का दावा है कि अभी फसल-कटाई मिसाई का समय होने के कारण मजदूर काम पर नहीं आ रहे है। अन्य वर्षो के अपेक्षा इस साल जिले में पलायन मजदूरों की संख्या भी बढ़ी है। मजदूरी भुगतान समय पर नहीं हो पाने के कारण भी मजदूर मनरेगा के कार्यो में रूचि नहीं लेते है।

फोन नहीं उठाया

जिले में मनरेगा के तहत करवाए जा रहे जल संरक्षण व संवर्धन के कार्यो के बारे में चर्चा करने के लिए जिला पंचायत सीईओ फरिहा आलम सिद्दीकी को फोन किया गया तब उन्होंने फोन नहीं उठाया।

अकाल से कोई संबंध नहीं

जल संरक्षण व संवर्धन का अकाल से कोई संबंध नहीं होता है। यह जरूर है कि यदि जल संरक्षण किया जाए तो अकाल का प्रभाव कम होगा। मनरेगा के तहत बनाए गए बहुत से तालाब, स्टापडेम एवं कुंआ में पानी स्टोरेज है। इस वर्ष की जल संरक्षण, संवर्धन के जो भी कार्य योजना बनेगी उसका विशेषज्ञों से सलाह लेकर जगह चयन किया जाएगा।

मनरेगा जगह का चयन मुख्य

मनरेगा मांग आधारित योजना है, लेकिन जल संरक्षण, संवर्धन में जगह का चयन मुख्य होता है जगह का चयन आवश्यक होता है जहां पानी रूक सके। कभी-कभी बेजा कब्जा व अन्य कारणों से जगह नहीं मिल पाती है। प्रयास रहता है कि सही जगह मिले।


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