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संसद में अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को शिक्षा के अधिकार कानून में लाने की उठी मांग

सांसद गिरी ने विधयेक पेश करते हुए कहा कि आज की स्थिति में अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों का इस कानून के अंतर्गत न आना समानता के अधिकार के विपरीत है

संसद में अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को शिक्षा के अधिकार कानून में लाने की उठी मांग
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नई दिल्ली। अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानो को शिक्षा के अधिकार कानून के अंतर्गत लाने के लिए पूर्वी दिल्ली के सांसद महेश गिरी ने संसद में इस मामले को उठाया और कहा कि शिक्षा के अधिकार का कानून सभी शिक्षा संस्थानों को समाज के गरीब एवं पिछड़े वर्ग विद्यार्थियों के लिए अपने संस्थान में 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के लिए बाध्य करता है। परंतु संविधान का अनुच्छेद 15(5) अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं को विशेषाधिकार प्रदान करता है, जिसके कारण शिक्षा के अधिकार के इस नियम से मुक्त हैं।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15(5) समाज के पिछड़े एवं शिक्षा से वंचित, अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के शैक्षिक विकास तथा विद्यालयों में प्रवेश की राह को आसान बनाने के लिए वर्ष 2006 में संविधान के 93 वे संशोधन के तहत को लाया गया था। किन्तु गौर करने वाली बात यह है कि अनुच्छेद अनुच्छेद 30(1) में परिभाषित अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को अनुच्छेद 15(5) के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया।

सांसद गिरी ने विधयेक पेश करते हुए कहा कि आज की स्थिति में अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों का इस कानून के अंतर्गत न आना समानता के अधिकार के विपरीत है, क्योंकि समाज के जिन वर्गो के लिए शैक्षिक विकास के लिए यह प्रावधान लाया गया है वह अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों में इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं। अत: यह आवश्यक है कि जाति एवं धर्म के नाम पर किसी तरह का भेदभाव न करते हुए सभी शिक्षण संस्थानों में एक समान रूप से 25 प्रतिशत सीटें समाज के वंचित वर्ग के लिए आरक्षित की जाएं।


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