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सुप्रीम कोर्ट से हाथरस कांड के मद्देनजर एससी/एसटी पैनल नियुक्त करने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोगों के पूर्णकालिक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की

सुप्रीम कोर्ट से हाथरस कांड के मद्देनजर एससी/एसटी पैनल नियुक्त करने की मांग
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोगों के पूर्णकालिक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि दलित समुदायों पर होने वाले अत्याचारों पर संज्ञान लेने में संवैधानिक निकायों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

अधिवक्ता अमित पई के माध्यम से एनजीओ पीपुल्स सारथी संगठन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है, "यह प्रस्तुत किया गया है कि तत्काल मामले में चेयरमैन/चेयरपर्सन, उपाध्यक्षों और सदस्यों के भी कार्यालय खाली हैं और ऐसी स्थिति में महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की अनुपस्थिति का मतलब है कि ये आयोग नौकरशाहों द्वारा चलाए जा रहे हैं, जो उन्हें अप्रभावी बनाता है।"

याचिका में कहा गया है कि नतीजतन ये आयोग निर्थक और अल्पकालिक हो गए हैं और संवैधानिक उद्देश्यों और जनादेश में विफल रह जाते हैं, जिसके लिए वे स्थापित किए गए हैं।

हाथरस की घटना का हवाला देते हुए, दलील में कहा गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपराध दिन-प्रतिदिन जघन्य और भीषण होते जा रहे हैं और इन मामलों के आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए जांच और प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा बहुत कम संज्ञान लिया जाता है।

दलील में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 19 साल की एक लड़की के साथ भीषण और भयावह सामूहिक दुष्कर्म और अत्याचार हुआ। इसमें पीड़िता को गंभीर चोटें आईं और उसकी रीढ़ की हड्डा में चोट भी गंभीर चोट आई, जिससे वारदात के कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई।

याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1995 के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आयोग के लिए अध्यक्ष को नियुक्ति करने के संबंध में निर्देश देने की मांग की गई है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का हवाला देते हुए, दलील में कहा गया कि 2019 में एससी के खिलाफ लगभग 45,935 अपराध हुए, जो कि 2018 में हुए अपराधों से 7.3 प्रतिशत अधिक रहे। दलील में कहा गया है कि 2019 में अकेले उत्तर प्रदेश में ही एससी समुदाय के खिलाफ 11,829 मामले दर्ज किए गए हैं।


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