तीन तलाक विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग
तीन तलाक पर चर्चा में भाग लेते हुये तृणमूल कांग्रेस की डाेला सेन ने कहा कि यह सरकार विधेयकों को बगैर संसदीय जांच के पारित कराने पर आमदा

नयी दिल्ली । तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, अन्नाद्रमुक, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने आज राज्यसभा में मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक से संबंधित विधेयक मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 को प्रवर समिति में भेजने की मांग करते हुये इस विधेयक का विरोध किया है।
इस विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुये तृणमूल कांग्रेस की डाेला सेन ने कहा कि यह सरकार विधेयकों को बगैर संसदीय जांच के पारित कराने पर आमदा है। पहले 60 से 70 विधेयकों की संसदीय जांच होती थी लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में यह संख्या घटकर 26 रह गयी। नयी मोदी सरकार के कार्यकाल में मात्र एक विधेयक ही संसदीय जांच से होकर सदन में आया है।
उन्होंने कहा कि बहुमत मिलने का मतलब देश में तानाशाही जैसा व्यवहार करना नहीं होता है। संसदीय लोकतंत्र की पंरपरा का पालन किया जाना चाहिए और इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक मुस्लिम महिलाओं की सशक्तीकरण का सवाल है तो उनकी पार्टी इस मामले में केन्द्र सरकार की तुलना में बहुत आगे हैं। यदि सरकार वास्तव में महिला सशक्तीकरण को लेकर बहुत गंभीर है तो उसे संसद के वर्तमान सत्र की अवधि एक दिन और बढ़ाकर महिला आरक्षण विधेयक लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिससे मुस्लिम महिलाओं पर बोझ बढ़ेगा क्योंकि जब उसका पति तीन तलाक के कारण जेल में होगा तब किस तरह से वह भरण पोषण भत्ता देगा।
समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान ने कहा कि मुस्लिम में विवाह एक सामाजिक अनुबंध है और यदि इसमें किसी को कोई कठिनाई या परेशानी है तो वह इस अनुबंध को समाप्त कर सकता है। इस अनुबंध को समाप्त करने को अपराध बनाने वाले इस विधेयक का वह विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि तलाक दिये जाने से समाज में कोई वैमनस्य या तनाव पैदा नहीं होता बल्कि प्रेम विवाह, अंतरजातीय विवाह, अंतरधर्म विवाह आदि से समाज में तनाव पैदा होता है और इस तरह के विवाह को अपराध घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से महिला सशक्तीकरण नहीं बल्कि राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की जा रही है।


