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डीयू छात्रों के जाति प्रमाणपत्रों की फोरेंसिक लैब में जांच की मांग

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के जाति प्रमाणपत्रों की जांच कराने की मांग की गई है

डीयू छात्रों के जाति प्रमाणपत्रों की फोरेंसिक लैब में जांच की मांग
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दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के जाति प्रमाणपत्रों की जांच कराने की मांग की गई है, क्योंकि बीते 2 वर्षो से दिल्ली विश्वविद्यालय में अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स, सर्टिफिकेट कोर्स के अलावा एमफिल और पीएचडी जैसे कोर्सो के छात्रों के जाति प्रमाणपत्रों की जांच नहीं हो सकी है। फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार सिंह के समक्ष यह मांग रखी है। कुलपति से दिल्ली यूनिवर्सिटी से संबद्ध कॉलेजों और विभागों में शैक्षिक सत्र 2020-21 व 2021-22 के अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स, सर्टिफिकेट कोर्स के अलावा एमफिल और पीएचडी जैसे कोर्सो में दाखिले लिए छात्रों के जाति प्रमाणपत्रों की जांच कराने की मांग की है।

फोरम ने बताया है कि जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन दाखिला लिया था, बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनकी फोरेंसिक लैब में जांच व संबंधित अधिकारियों को एससी, एसटी और ओबीसी कोटे, ईडब्ल्यूएस के जाति प्रमाणपत्रों की जांच नहीं कराई है।

फोरम ने सेमेस्टर परीक्षाएं शुरू होने से पहले या आगामी शैक्षिक सत्र 2022-23 शुरू होने से पहले जाति प्रमाणपत्रों की जांच की मांग दोहराई है। दरअसल, 17 फरवरी 2022 से विश्वविद्यालय व कॉलेज खुल गए हैं। ऐसे में यह मांग की जा रही है कि पहले कॉलेज अपने स्तर पर जाति प्रमाणपत्रों की जांच करें, फिर उसके बाद फोरेंसिक लैब में जांच व संबंधित अधिकारियों से इनकी जांच कराई जाए।

फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाणपत्रों की जांच की मांग इसलिए कि जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षो से फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के आधार पर छात्र दाखिला पा जाते हैं और जो छात्र वास्तविक रूप से हकदार हैं, वे उससे वंचित रह जाते हैं।

डॉ. सुमन ने यह भी बताया है कि गत वर्ष जिन कोर्सो में छात्रों ने ऑनलाइन आवेदन किया था, उनमें उन्होंने प्राप्तांक के आधार पर ऑनलाइन ही कॉलेज में दाखिला ले लिया, जबकि ऑनलाइन अप्लाई करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी या संबंधित कॉलेज दाखिला प्रक्रिया पूरी होने के बाद सभी प्रमाणपत्रों की जांच कराने के लिए फोरेंसिक लैब और संबंधित अधिकारियों के पास जांच के लिए भेजते हैं।

कोरोना महामारी के चलते पिछले दो वर्षो से जाति प्रमाणपत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि इससे पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाणपत्रों की जांच कराता था, लेकिन अब केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त हो गई है।

डॉ. सुमन ने बताया है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाणपत्र पाएं गए। वह भी तभी संभव हो पाया, जब संदेह हुआ कि इन कॉलेजों के जाति प्रमाणपत्रों की जांच हो और जिनका जाति प्रमाणपत्र फर्जी पाया गया, उनका दाखिला रद्द कर दिया गया और कुछ दंड नहीं दिया गया। उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 और 2022 में छात्रों ने 17 फरवरी, 2022 से कॉलेज आना शुरू किया है। उनका कहना है कि एससी/एसटी या ओबीसी या ईडब्ल्यूएस कोटे के छात्रों के जाति प्रमाणपत्रों की जांच कॉलेज को अपने स्तर पर करनी चाहिए।


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