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भारतीय समुद्री उत्पादों पर क्या है अमेरिकी व्यापार का प्रभाव? सरकार ने दिया जवाब

भारतीय समुद्री उत्पादों पर अमेरिकी व्यापार के प्रभाव का विषय संसद में उठा

भारतीय समुद्री उत्पादों पर क्या है अमेरिकी व्यापार का प्रभाव? सरकार ने दिया जवाब
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अमेरिकी व्यापार नीतियों पर भारत की प्रतिक्रिया: समुद्री उत्पादों की निर्यात नीति में सुधार

  • भारतीय समुद्री खाद्य निर्यात पर अमेरिकी प्रभाव: सरकार ने उठाए सस्टेनेबिलिटी और गुणवत्ता के कदम
  • भारत बना रहा है वैश्विक समुद्री निर्यात में स्थिरता की पहचान
  • अमेरिकी बाजार की चुनौतियों के बीच भारत का समुद्री क्षेत्र बना रहा है प्रतिस्पर्धात्मकता
  • मछुआरों की आजीविका और निर्यात स्थिरता के लिए सरकार की बहुआयामी रणनीति

नई दिल्ली। भारतीय समुद्री उत्पादों पर अमेरिकी व्यापार के प्रभाव का विषय मंगलवार को संसद में उठा। इस पर केंद्र सरकार के मत्स्यपालन विभाग ने लोकसभा में बताया कि भारत सरकार अमेरिका द्वारा भारत के समुद्री उत्पादों सहित कुछ वस्तुओं के आयात पर लगाए गए ट्रेड संबंधी पहलों से अवगत है। इनमें स्वच्छता अनुपालन और सस्टेनेबिलिटी संबंधी आवश्यकताएं शामिल हैं। सरकार का कहना है कि अमेरिका द्वारा उठाए गए ये कदम कई ट्रेडिंग पार्टनर्स पर लागू होते हैं और केवल भारत तक सीमित नहीं हैं।

मत्स्यपालन विभाग ने कहा कि आंध्र प्रदेश सहित भारतीय समुद्री खाद्य निर्यात पर समग्र प्रभाव कई कारकों से निर्धारित होता है। इनमें उत्पाद में भिन्नता, मांग की स्थिति, गुणवत्ता मानकों और निर्यातकों व आयातकों के बीच संविदात्मक व्यवस्था जैसे कारक शामिल हैं। केंद्रीय पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन ने लिखित जानकारी में बताया कि सरकार, समुद्री खाद्य निर्यातकों, उद्योग संघों, उद्यमियों और राज्य मत्स्यपालन विभागों के परामर्श से मछुआरों, समुद्री खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं और निर्यातकों के कल्याण को प्राथमिकता दे रही है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और फिशरीज एंड एक्वाकल्चर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट फंड के अंतर्गत सरकार फिशरीज इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और सुदृढ़ीकरण में सहयोग दे रही है। इसमें फिशिंग हार्बर्स और फिश लैंडिंग सेंटर्स का उन्नयन, मॉडर्न पोस्ट-हार्वेस्ट, कोल्ड चैन और प्रोसेसिंग सुविधाओं का विकास शामिल हैं। इसके अलावा री-सर्क्युलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम और बायोफ्लोक जैसी उन्नत तकनीकों को अपनाना, गुणवत्ता परीक्षण और डायग्नोस्टिक लैबोरेटरीज की स्थापना, निर्यातोन्मुखी प्रजातियों को बढ़ावा देना आदि भी इसमें शामिल है।

उन्होंने आगे बताया कि मरीन प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमपीईडीए) समुद्री खाद्य निर्यात को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके तहत निर्यातकों का पंजीकरण किया जाता है, गुणवत्ता मानक तय किए जाते हैं और विदेशी आयातकों से समन्वय स्थापित किया जाता है। एमपीईडीए क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों, प्रदर्शनियों और खरीदार-विक्रेता बैठकों में भागीदारी के माध्यम से भारतीय समुद्री उत्पादों को वैश्विक बाजार में बढ़ावा दिया जा रहा है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अमेरिकी बाजार सहित विभिन्न निर्यात बाजारों में भारतीय समुद्री खाद्य निर्यात की निरंतरता और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकार कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। अमेरिका सहित विभिन्न निर्यात बाजारों में आपूर्ति बनी रहे, इसके लिए समुद्री प्रजातियों के आकलन हेतु ‘मरीन मैमल स्टॉक असेसमेंट प्रोजेक्ट’ लागू किया जा रहा है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत झींगा ट्रॉलरों में टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस लगाने में सहयोग दिया जा रहा है, जिससे समुद्री कछुओं का संरक्षण संभव हो सके।

योजना के तहत सी रैंचिंग यानी समुद्री प्रजातियों को समुद्र में पुनः छोड़ने का कार्य किया जा रहा है। कृत्रिम रीफ की स्थापना की गई है तथा अन्य जैव विविधता संरक्षण उपाय भी अपनाए जा रहे हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल मछुआरों की आजीविका सुरक्षित करना है, बल्कि प्रजातियों और निर्यात बाजारों का विविधीकरण करते हुए भारत के समुद्री क्षेत्र की दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धात्मकता को भी सुनिश्चित करना है। इस तरह भारत वैश्विक स्तर पर एक सतत और जिम्मेदार समुद्री खाद्य निर्यातक के रूप में अपनी पहचान मजबूत कर रहा है।


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