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वंदे मातरम् पर राज्यसभा में दूसरे दिन की जोरदार बहस: भाजपा पर इतिहास को तोड़-मरोड़ कर राजनीति करने का आरोप

राज्यसभा में विपक्ष ने बुधवार को राष्ट्र गीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित चर्चा के दूसरे दिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर इस बहस के जरिये इतिहास को तोड़-मरोड़ कर राजनीति करने का आरोप लगाया जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरणा देने वाले इस गीत को राष्ट्र गीत के रूप में अपनाते समय कांग्रेस ने तुष्टीकरण की राजनीति के चलते इसके कई अंतरों को छोड़ दिया था

वंदे मातरम् पर राज्यसभा में दूसरे दिन की जोरदार बहस: भाजपा पर इतिहास को तोड़-मरोड़ कर राजनीति करने का आरोप
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वंदे मातरम् पर राज्यसभा में दूसरे दिन की बहस: सत्ता पक्ष पर ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप

नई दिल्ली। राज्यसभा में विपक्ष ने बुधवार को राष्ट्र गीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित चर्चा के दूसरे दिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर इस बहस के जरिये इतिहास को तोड़-मरोड़ कर राजनीति करने का आरोप लगाया जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरणा देने वाले इस गीत को राष्ट्र गीत के रूप में अपनाते समय कांग्रेस ने तुष्टीकरण की राजनीति के चलते इसके कई अंतरों को छोड़ दिया था।

भाजपा के नरहरि अमीन ने कहा कि स्वदेशी और वंदे मातरम् हमारे स्वाधीनता सेनानियों की रणनीति और प्रेरणा के स्रोत थे।

कांग्रेस के जयराम रमेश ने वंदे मातरम् को छोटा करने में पं. जवाहरलाल नेहरू की भूमिका को लेकर लगाये जाने वाले आक्षेपों को खारिज किया। उन्होंने 1937 से 1940 के बीच डॉ. राजेंद्र प्रसाद, गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर, आचार्य जे.बी. कृपलानी और सी राजगोपालाचारी और सुभाषचंद्र बोस जैसे कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं के बीच बंकिंमचंद्र चटोपाध्याय द्वारा लिखे गये इस गीत पर पत्रों के आदान-प्रदान का जिक्र किया और कहा कि 28 अक्टूबर 1937 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में कांग्रेस की कार्य समिति ने इस गीत के दो अंतरों को अपनाये और गाये जाने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया था।

रमेश ने कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति की उस बैठक में महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोष, सरदार वल्लभभाई पटेल, पं. नेहरू, गोविंदबल्लभ पंत, मौलाना अबूल कलाम आजाद और आचार्य कृपलानी जैसे नेताओं की उपस्थिति में वंदेमातरम् का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया। उन्होंने सत्ता पक्ष पर इस बहस के माध्यम से राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सत्ता में बैठे लोग "नेहरू का ही नहीं, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का भी अपमान कर रहे हैं।"

कांग्रेस सदस्य ने कहा कि बंकिमचंद्र चटर्जी की बात करते समय उस बंकिमचंद्र को भी याद किया जाना चाहिये जो अध्यात्म और विज्ञान में समन्वय करता था, जिसने 1876 में महेंद्र लाल सरकार के साथ मिलकर कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस नाम की संस्था बनायी थी और इसमें अध्ययन करने वाले सी.वी. रमण को भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला था। उन्होंने कहा, "यह बहस नेहरू को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है। उनके बारे में जो कुछ भी कहा जाता है उसका इतिहास में कोई आधार नहीं है।"

भाकपा के संदोष कुमार पी. ने भी कहा कि भाजपा पर गांधी और नेहरू का खौफ छाया रहता है और वह वंदे मातरम् के नाम पर लोगों को बांटना चाहती है। बीजू जनता दल के देवाशीष सामंतराय ने आजादी के आंदोलन में इस गीत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वंदे मातरम् और जन गण मन दोनों ही हमारे राष्ट्र गीत और राष्ट्रगान हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास को कोई बदल नहीं सकता।

भाजपा की रमिलाबेन विचारभाई बारा ने गुजराती में अपने संभाषण में स्वाधीनता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को आधी शताब्दी के बाद 2003 में जिनेवा से गुजरात में लाकर उनकी इच्छा पूरी किये जाने का उल्लेख किया।

बीजू जनता दल के मानस रंजन मंगराज ने वंदे मातरम् को एकता का गीत बताया। झारखंड मुक्ति मोर्चा की महुआ माजी ने सत्ता पक्ष पर 1937 के कांग्रेस कार्य समिति के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि सत्ता पक्ष उस समय के महान नेताओं पर आज दोषारोपण कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस के रीताब्रत बनर्जी ने अपना वक्तव्य बांग्ला में दिया।


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